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अखिलेश यादव को क्यों सता रही है मंदिरों की चिंता? बेमानी है बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट का विरोध

वृंदावन स्थिति बांके बिहारी मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए सुधार की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी. अखिलेश यादव का बांके बिहारी मंदिर के लिए बने नए ट्रस्ट का विरोध यह बताता है कि उन्हें मंदिर की चिंता कम बीजेपी के हिंदुत्व नैरेटिव को चुनौती देना ज्यादा फायदेमंद दिख रहा है.

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वृंदावन में स्थिति बांके बिहारी मंदिर
वृंदावन में स्थिति बांके बिहारी मंदिर

मथुरा और वृन्दावन की यात्रा जिन लोगों ने की होगी उन्हें पता होगा कि बांके बिहारी मंदिर में भगवान कृष्ण के दर्शन करना कितना कठिन है. यहां की दुर्व्यवस्था और भीड़ को देखकर हर किसी के मन में तुरंत एक बात आती है कि मोदी-योगी की सरकार में हिंदुओं के सबसे बड़े तीर्थों में से एक स्थान की ये हालत है तो फिर दूसरी सरकारों में क्या ही सुधार की उम्मीद होगी. पर जब सुधार की कोशिश शुरू हुई तो विरोध भी उसी लेवल का शुरू हो गया है. 

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समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में मथुरा के बांके बिहारी मंदिर के लिए गठित ट्रस्ट और मंदिरों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को लेकर बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला है. हो सकता है कि उनके विरोध की कुछ बातें नागवार हों पर कुछ पर विचार आवश्यक हो जाता है. पर अचानक मंदिरों की उनकी चिंता बहुत लोगों को पच नहीं रही है.

कुछ लोग यह कहें कि उन्हें हिंदू मतदाताओं के छिटकने की चिंता सता रही है. इसलिए वो इस तरह की बातें कर रहे हैं. पर जो यूपी की राजनीति को जानते हैं उन्हें पता है कि अखिलेश यादव को मंदिरों की चिंता कम और बीजेपी के हिंदुत्व नैरेटिव को चुनौती देना ज्यादा फायदेमंद दिख रहा है. दरअसल अखिलेश यादव इसी बहाने बांके बिहारी ट्रस्ट विवाद, सरकारी हस्तक्षेप, पारंपरिक प्रबंधकों के हटने, कॉरिडोर योजना आदि पर सवाल उठाकर बीजेपी को घेरने का मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं. बीजेपी ने अखिलेश की चिंता को पाखंड कहकर खारिज किया, जबकि सपा इसे हिंदू हित से जोड़ रही है.

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क्यों यह विवाद 2027 के चुनावों में बड़ा मुद्दा बन सकता है?

अखिलेश यादव ने 27 मई 2025 को X पर 51-सेकंड का एक वीडियो साझा कर बीजेपी पर मंदिरों पर प्रशासनिक कब्जा करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार उत्तर प्रदेश के प्रमुख मंदिरों, विशेष रूप से बांके बिहारी मंदिर, के प्रबंधन पर नियंत्रण कर रही है. उन्होंने दावा किया कि पारंपरिक प्रबंधक, जो सदियों से सेवा-भाव और आस्था के साथ मंदिरों का संचालन करते थे, से उनके अधिकार छीने जा रहे हैं, और प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किए जा रहे हैं. यह चिंता मंदिरों की स्वायत्तता और धार्मिक परंपराओं के संरक्षण से जुड़ी है. अखिलेश यादव ने इसे मंदिरों में भ्रष्टाचार और श्रद्धालुओं के दान के दुरुपयोग से जोड़ा, जिससे उनकी चिंता धार्मिक संवेदनशीलता को दर्शाती है.

अखिलेश ने बीजेपी पर धर्म को कमाई का जरिया बनाने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, धर्म भलाई के लिए होता है, कमाई के लिए नहीं. उन्होंने उदाहरण दिया कि मंदिरों में चढ़ाए गए बेलपत्र तक बेचे जा रहे हैं, जो भ्रष्टाचार का प्रतीक हैं. मंदिरों में दान का उपयोग दर्शन, प्रसाद, सुरक्षा और धर्मशालाओं के लिए होना चाहिए, लेकिन सरकारी नियंत्रण से अव्यवस्था बढ़ गई है. अखिलेश यादव की यह चिंता धार्मिक स्थलों की पवित्रता को बनाए रखने की उनकी कोशिश को दर्शाती है, जो श्रद्धालुओं की भावनाओं से जुड़ा है.

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बीजेपी मंदिरों पर सरकारी कब्जे का विरोध करती रही है

बीजेपी और उसका वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि हिंदू मंदिरों का प्रबंधन सरकारी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए, ताकि हिंदू समुदाय अपनी धार्मिक संस्थाओं को स्वतंत्र रूप से संचालित कर सके. बीजेपी का तर्क है कि भारत में केवल हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लिया जाता है, जबकि मस्जिदों और चर्चों का प्रबंधन समुदायों द्वारा किया जाता है. दस राज्यों में 1,10,000 से अधिक हिंदू मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है. 

बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्रों और नेताओं के बयानों में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का वादा किया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी तेलंगाना में एक रैली में कहा था कि तमिलनाडु में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लूटा जा रहा है, और बीजेपी इसे मुक्त करना चाहती है. 

हालांकि बीजेपी शासित राज्यों में मंदिर प्रबंधन को लेकर नीतियां भिन्न रही हैं, और कई बार स्थानीय विरोध के कारण इन्हें वापस लेना पड़ा. उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने 2019 में चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम पारित किया, जिसका उद्देश्य बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे मंदिरों का प्रबंधन सरकारी बोर्ड के तहत करना था. लेकिन पुजारियों और स्थानीय लोगों के विरोध के बाद 2021 में इसे रद्द कर दिया गया.

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पर काशी विश्वनाथ और वैष्णो देवी में बोर्ड बनते ही सूरत बदल गई

अखिलेश यादव भले ही विरोध कर लें पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि धार्मिक स्थलों की देखरेख के लिए सरकार जब कोई बोर्ड और ट्रस्ट बना देती है तो व्यवस्था में सुधार तो हो ही जाता है. काशी विश्वनाथ धाम बोर्ड इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है. वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने भी तीर्थयात्रियों के लिए बहुत कार्य किए हैं. शायद यही सोचकर उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड की स्थापना की थी. पर पुजारियों के विरोध के बाद में इसे भंग कर दिया गया. बांके बिहार मंदिर कॉरिडोर बनाने के लिए जरूरी था कि इस काम के लिए समर्पित एक ट्रस्ट बने. उम्मीद की जा सकती है काशी विश्वनाथ धाम जैसे वृंदावन धाम का भी कल्याण हो जाएगा.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रत्यक्ष निगरानी में बीते पांच वर्षों में छह और परिषदें स्थापित की गईं हैं. अयोध्या धाम, विन्ध्याचल धाम (मिर्जापुर), शुक तीर्थ (मुज़फ्फरनगर), चित्रकूट धाम, देवीपाटन धाम (गोंडा) और नैमिषारण्य धाम (सीतापुर). हालांकि इनमें से अधिकांश परिषदें अभी सक्रिय नहीं हैं, लेकिन ब्रज तीर्थ विकास परिषद पूरी तरह क्रियाशील है. 

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