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नए आपराधिक कानूनों को हुआ एक साल, औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति की ऐतिहासिक मिसाल

महिला अपराधों के मामलों में त्वरित न्याय की जो मिसालें सामने आई हैं, वे कानून लागू होने के बाद आए बदलाव की गवाही देती हैं. गुजरात के सूरत जिले में एक बेटी के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घटना के सिर्फ पंद्रह दिनों के अंदर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

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भारत में परिवर्तन के प्रतीक बने नए आपराधिक कानून
भारत में परिवर्तन के प्रतीक बने नए आपराधिक कानून

1 जुलाई 2024 , यह दिन भारतीय गणराज्य के इतिहास में परिवर्तन का प्रतीक बन गया है. इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ने दशकों पुरानी औपनिवेशिक कानून व्यवस्था से खुद को मुक्त करते हुए भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम नाम से तीन नए आपराधिक कानून लागू किए.

इन तीनों विधियों का उद्देश्य केवल शब्दों की अदला-बदली या धाराओं में फेरबदल नहीं है. यह भारत की न्याय प्रणाली को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कर उसे भारतीय संस्कृति, संवेदनशीलता और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप पुनः स्थापित करने का साहसिक निर्णय है.

पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा कि अंग्रेजी शासन द्वारा बनाए गए दंड कानून जनता को नियंत्रित करने, दंडित करने और ब्रिटिश हुकूमत की रक्षा करने के लिए थे, न कि भारतीय नागरिकों को समय पर न्याय दिलाने के लिए.

पीड़ित न्याय के लिए भटकने को विवश थे, न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ लगातार बढ़ता गया, न्याय में होने वाली यह अनावश्यक विलंबता स्वयं में अन्याय का स्वरूप धारण कर चुकी थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दीर्घकालीन समस्या को गंभीरता से समझा. उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत की न्याय प्रणाली भारतीयता की भावनाओं के अनुरूप होनी चाहिए, न कि औपनिवेशिक दासता के भावों से भरी हुई.

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इसी सोच के साथ तीनों नए आपराधिक कानून लागू किए गए, जिनका प्रभाव अब इसके लागू होने के एक वर्ष पूर्ण होने पर स्पष्ट रूप से धरातल पर दिखने लगा है.

महिला अपराधों के मामलों में त्वरित न्याय की जो मिसालें सामने आई हैं, वे इस बदलाव की जीवंत गवाही देती हैं. गुजरात के सूरत जिले में एक बेटी के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घटना के मात्र 15 दिनों के भीतर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. क्या कभी किसी ने सोचा था कि भारत में न्याय इतनी गति से मिलेगा?

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में भी एक नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में केवल 30 दिन के भीतर दोषी को 20 साल की कठोर सजा दी गई. वहीं कोलकाता में नाबालिग से बलात्कार के प्रकरण में 80 दिनों के अंदर न्यायालय ने दोषसिद्धि कर दी. यह घटनाएं केवल आंकड़े नहीं, बल्कि प्रमाण हैं कि नई न्याय संहिता केवल कागजों पर नहीं, बल्कि जनजीवन में बदलाव ला रही है.

महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को सर्वोपरि रखते हुए नई व्यवस्था में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी पुलिस थाने में महिला अपराधों से संबंधित प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराना अनिवार्य है. इससे पीड़िता को दर-दर भटकने की पीड़ा नहीं सहनी पड़ेगी और अपराधी को कानून का भय रहेगा.

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न्याय में केवल त्वरितता ही नहीं, बल्कि पारदर्शिता और तकनीक का समावेश भी हुआ है. नए कानूनों में ई-साक्ष्य, ई-समन जैसी व्यवस्थाएं शुरू हुई हैं, जिससे अपराधों की सूचना, साक्ष्य संग्रहण और दोषियों की निगरानी अत्यधिक सशक्त हुई है. अब अपराधी यह कल्पना नहीं कर सकता कि वह वर्षों तक कानून की पकड़ से बचा रहेगा.

आंकड़ों की दृष्टि से देखें तो इस परिवर्तन का असर पूरे देश में स्पष्ट दिखाई दे रहा है. उदाहरणस्वरूप नए कानून लागू होने के बाद संघ शासित पुडुचेरी में न्यायालयों के समक्ष लाए गए 654 मामलों में से 337 का निपटारा हो चुका है और 319 मामलों में दोषियों को सजा मिल चुकी है. पुराने कानूनों के तहत जहां दोष सिद्धि की दर 75 प्रतिशत थी, वहीं अब यह बढ़कर 95 प्रतिशत तक पहुंच गई है.

इसी प्रकार केंद्र शासित चंडीगढ़ में नए कानूनों के अंतर्गत दर्ज 78 मामलों में से 71 में दोषसिद्धि हुई है, जो कि 91.1 प्रतिशत की अभूतपूर्व दर है. महत्वपूर्ण बात यह है कि जहां पहले औसतन 300 दिनों में न्याय मिलता था, अब वह अवधि घटकर मात्र 109 दिनों तक सीमित हो गई है.

न्याय प्रणाली में यह तीव्रता और सुदृढ़ता यूं ही संभव नहीं हुई. इसके पीछे प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की ठोस योजना और दूरदृष्टि है.

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बीते एक वर्ष में लगभग 15 लाख पुलिसकर्मियों, 42 हजार जेलकर्मियों, 19 हजार न्यायिक अधिकारियों और 11 हजार लोक अभियोजकों को नए कानूनों का प्रशिक्षण दिया गया है. 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने शत-प्रतिशत कानूनी ढांचे का निर्माण पूर्ण कर लिया है.

यह तीनों नए कानून न केवल तकनीकी दृष्टि से उन्नत हैं, बल्कि इनमें भारत की आत्मा की झलक भी मिलती है. जहां पुराने कानून विदेशी शासकों के हित साधन का माध्यम थे, वहीं नए कानून भारतीय समाज, संस्कृति और संविधान की मूल भावना के अनुरूप न्याय की स्थापना करते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन बिलकुल उचित है कि यह केवल कानूनों में संशोधन नहीं, बल्कि भारत की न्यायिक व्यवस्था का पुनर्जन्म है. इन कानूनों के माध्यम से भारत ने औपनिवेशिक दासता की मानसिकता से स्वयं को मुक्त कर एक स्वाभिमानी, सशक्त और न्यायप्रिय राष्ट्र के रूप में स्वयं को स्थापित किया है.

इन नए कानूनों को लागू करने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा बिल्कुल स्पष्ट है. इन कानूनों का उद्देश्य जनता को न्याय देना है, न कि उसे डराना. इसलिए व्यवस्था को सरल, पारदर्शी और तकनीक-सक्षम बनाया गया है. न्याय, जो कभी जनता से दूर था, आज उनके द्वार तक पहुंच रहा है. अपराधियों को दंड और पीड़ितों को शीघ्र न्याय अब मात्र सपना नहीं, सच्चाई बन चुका है.

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निश्चित ही, यह बदलाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और माननीय गृह मंत्री अमित शाह के उस मजबूत संकल्प का हिस्सा है, जिसके तहत भारत को हर क्षेत्र में औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकालना है. चाहे संसद की नई भव्य इमारत हो, चाहे जी-20 सम्मेलन में भारत की वैश्विक पहचान, चाहे चंद्रयान-3 की सफलता, हर उपलब्धि के साथ भारत पुराने गुलामी के प्रतीकों को पीछे छोड़ता जा रहा है.

वस्तुतः ये तीन नए आपराधिक कानून भारत की न्याय व्यवस्था का पुनर्जन्म हैं. वे केवल किताबों में लिखे नियम नहीं, बल्कि आम आदमी के जीवन में न्याय, सुरक्षा और सम्मान का नया भरोसा हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारत एक न्यायसंगत, सशक्त और विकसित राष्ट्र बनने की ओर बढ़ चुका है.

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