scorecardresearch
 

क्या कंगना की इमरजेंसी के लटकने के पीछे फिल्म में इंदिरा गांधी का महिमामंडन है?| Opinion

फिल्म की राइटर और एक्टर बीजेपी की नेता कंगना रनौत हैं इसलिए जाहिर है कि लोगों के मन में यही आता है कि इस फिल्म में इंदिरा गांधी के जीवन के नकारात्मक पहलुओं को ही दिखाया गया होगा. पर बताया जा रहा है कि फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है. तो फिर फिल्म में क्या है जिसके चलते फिल्म के रिलीज होने में देरी हो रही है?

Advertisement
X
बताया जा रहा है कि कंगना की इस मूवी को देखकर इंदिरा गांधी के प्रति सहानुभूति पैदा होती है.
बताया जा रहा है कि कंगना की इस मूवी को देखकर इंदिरा गांधी के प्रति सहानुभूति पैदा होती है.

फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत बीजेपी की सांसद हैं. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है. पर रनौत की मूवी इमरजेंसी को सेंसर बोर्ड ने लटका दिया है. हालत यह है कि कंगना को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा है. फिर भी सेंसर बोर्ड बिना कांट छांट के रिलीज करने को तैयार नहीं है. इमरजेंसी फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर बनी फिल्म है. जिस तरह कंगना बीजेपी विरोधियों पर आग उगलती रही हैं उससे यही लग रहा था कि फिल्म इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के कार्यकाल को ध्यान में रखकर बनाई गई होगी. अर्थात फिल्म में इंदिरा गांधी का मान मर्दन ही किया गया होगा. पर इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट की माने तो फिल्म में इंदिरा गांधी का जमकर महिमा मंडन किया गया है. आम तौर पर अभी तक ये संदेश जा रहा था कि इमरजेंसी मूवी में रिलीज में देर होने का कारण सिखों की आपत्तियां हैं. पर अब इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि इमरजेंसी में रुकावट की वजह इंदिरा गांधी के प्रति जनता में सहानुभूति पैदा होने का डर तो नहीं है? 6 सितंबर को फिल्म की रिलीज होनी थी, सेंसर बोर्ड की आपत्तियों की वजह से फिल्म लेट  हो गई है. हालांकि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने गुरुवार को बॉम्बे हाई कोर्ट को सूचित किया कि उसकी पुनरीक्षण समिति ने रिलीज से पहले कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी में कुछ कट का सुझाव दिया है. 

फिल्म इंदिरा गांधी के लिए सहानुभूति पैदा करती है

अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत की इमरजेंसी पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर बनी फिल्म है. चूंकि फिल्म की राइटर और एक्टर एक बीजेपी की नेता है इसलिए जाहिर है कि लोगों के मन में यही आता है कि इस फिल्म में इंदिरा गांधी के जीवन के नकारात्मक पहलुओं को ही दिखाया गया होगा. पर इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में इतिहासकार मक्‍खन लाल बताते हैं कि इंदिरा गांधी के जीवन पर इससे बेहतरीन फिल्म कांग्रेस भी नहीं कर सकती थी. प्रोफेसर लाल कहते हैं कि फिल्म में फैक्ट्स से छेड़छाड़ नहीं हुई है.और सबसे बड़ी बात प्रोफेसर लाल जो बताते हैं वो यह है कि फिल्म देखने के बाद इंदिरा गांधी के लिए सहानुभूति पैदा होती है. गौरतलब है कि फिल्म अभी सबकी सामने नहीं आ सकी है. न ही इस फिल्म का कोई प्रेस रिव्यू ही हुआ है. दरअसल केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने एक्सपर्ट व्यू के लिए प्रोफेसर लाल को आमंत्रित किया था. 

Advertisement

18 सितंबर को, सीबीएफसी ने बॉम्बे हाई कोर्ट को सूचित किया कि उसकी जांच समिति ने, "फिल्म की कहानी और विषय के कारण", स्क्रीनिंग के दौरान एक "विषय विशेषज्ञ" को आमंत्रित किया था, और इस उद्देश्य के लिए लाल की उपस्थिति का अनुरोध किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए लाल कहते हैं कति कांग्रेस जानती है कि मैं पार्टी का बहुत बड़ा प्रशंसक नहीं हूं. लेकिन फिर भी तथ्यों को स्वीकार करना होगा. इंदिरा गांधी के कद के व्यक्तित्व का सम्मान किया जाना चाहिए. लाल कहते हैं कि जब मैंने फिल्म देखी तो मेरी प्रतिक्रिया यह थी कि कांग्रेस भी श्रीमती गांधी पर इससे बेहतर ऐतिहासिक फिल्म नहीं बना सकती थी. यह किसी राजनीतिक नेता पर बनी अब तक की सबसे सहानुभूतिपूर्ण फिल्मों में से एक है.  

इंदिरा के महिमांडन से सिख संगठन खफा

फिल्म के ट्रेलर में दो सीन ऐसे हैं जिससे कुछ सिख संगठनों में नाराजगी है. एक दृश्य है जिसमें कुछ सिख उग्रवादियों को निर्दोषों पर गोलियां चलाते हुए देखा जा सकता है, और दूसरा जहां भिंडरावाले को संजय गांधी के साथ सौदा करते हुए और एक अलग सिख राज्य के बदले इंदिरा गांधी की पार्टी के लिए वोट लाने का वादा करते हुए देखा जा सकता है. कई सिख संगठनों ने सीबीएफसी को पत्र लिखा है और सिखों के चित्रण पर चिंताओं का हवाला देते हुए फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाया है.

Advertisement

हालांकि इतिहासकार प्रोफेसर मक्‍खन लाल कहना है कि यह विवाद पूरी तरह से अनुचित है. लाल पूछते हैं कि क्या भिंडरावाले पूरे सिख समुदाय का प्रतिनिधि है? लाल कहते हैं कि भिंडरावाले एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है, समूहवाचक संज्ञा नहीं. तो सिखों को गलत तरीके से पेश करने का सवाल ही कहां है? 

पर अगर फिल्म को केवल इस आधार पर रोका जा रहा है यह बात भी गले नहीं उतरती है. क्योंकि कुछ सेकंड के इन दृश्यों को हटाकर फिल्म रिलीज करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी. जैसा कि सभी जानते हैं कि सेंसर बोर्ड में वही लोग होते हैं जिस पार्टी की केंद्र में सरकार होती है. और खुद बीजेपी अपने सांसद को अपने हितों के अनुरूप मना भी लेती. पर ऐसा कुछ होते नहीं दिख रहा है.

इमरजेंसी लगाने वाली इंदिरा का थोड़ा भी यशोगान बीजेपी को हजम नहीं होगा

लोकसभा चुनावों के पहले से ही भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस संविधान बदलने का आरोप लगा रही थी. कांग्रेस के संविधान बचाओ नारे का ही परिणाम रहा कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. बीजेपी ने कांग्रेस के संविधान बचाओ आंदोलन के खिलाफ ही जिस दिन इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी (25 जून) को केंद्र सरकार ने हर साल संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया था. आम तौर पर ऐसा लग रहा था कंगना की फिल्म इमरजेंसी बीजेपी के लिए कोई एजेंडाधारी फिल्म होगी. पर जैसा प्रोफेसर मक्‍खन लाल कह रहे हैं उससे लगता है कि फिल्म बीजेपी की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement