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आजम खान सपा में रहें या बसपा में, यूपी की सियासत में उनके पास कितना दम बचा हैं?

खबर है क‍ि आजम खान के जेल से रिहा होने के 16 दिन बाद यानी 8 अक्‍टूबर को अखिलेश यादव उनसे मुलाकात करेंगे. कभी समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेताओं में शुमार रहे आजम खान के पास अब भी ऑफर करने के लिए कुछ ऐसा बचा है, जिसकी अखिलेश यादव को जरूरत है? मुसलमान वोटरों के बीच अपना प्रभाव बनाने के लिए समाजवादी पार्टी को आजम खान की कितनी जरूरत बची है?

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आजम खान और अखिलेश यादव
आजम खान और अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता रहे  हैं आजम खान. एक समय यूपी के मुस्लिम वोटों पर उनका बहुत प्रभाव था. 2012 में बनी सपा सरकार में उनके रसूख को अखिलेश यादव (तब के सीएम) से ज्‍यादा बड़ा कहा जाता था. लेकिन, अब संपत्ति हथियाने, फ्रॉड और भ्रष्‍टाचार के आरोपों में बुरी तरह फंसे आजम खान की सियासत भी उलझ कर रह गई है. करीब दो साल बाद उन्‍हें जमानत तो मिल गई है, लेकिन क्‍या उनकी सियासत को भी सांस मिलेगी, इस पर गंभीर सवाल बना हुआ है. खबर आई कि‍ 12 दिन बाद 8 अक्‍टूबर को उनकी अखिलेश यादव से मुलाकात होगी. लेकिन, इसमें दिलचस्‍प ये है क‍ि उसके अगले दिन 9 अक्‍टूबर को मायावती की रैली होने वाली है. जिनकी ओर आजम खान का ताजा झुकाव बताया जा रहा है. आइये, समझते हैं कि आजम खान के इर्द-गिर्द जो राजनीति चल रही है, वह किस करवट बैठेगी. समाजवादी पार्टी को आजम खान की अब कितनी जरूरत बची है?

8 अक्टूबर की सुबह अखिलेश यादव 10 बजे अमौसी एयरपोर्ट से बरेली के लिए उड़ान भरेंगे. उसके बाद सड़क मार्ग से वे सीधे रामपुर पहुंचेंगे. यहां आजम खान से उनकी करीब एक घंटे की मुलाकात तय हुई है. 22 सितंबर को जेल से छूटे आजम खान से अखिलेश 16 दिन बाद मिलेंगे. सवाल पूछे जा रहे हैं कि‍ एक समय सपा के शीर्ष नेताओं में शुमार आजम खान से मुलाकात के लिए अखिलेश इतना वक्‍त क्‍यों ले रहे हैं? 

चर्चा है कि अखिलेश यादव ने आजम से मुलाकात के लिए 8 अक्‍टूबर का दिन इसलिए चुना है क‍ि उसी के अगले दिन 9 अक्‍टूबर को कांशीराम की पुण्‍यतिथि पर बीएसपी की रैली होने वाली है. खबर ये आई थी कि आजम खान की पत्‍नी ने मायावती से मुलाकात की है. ऐसे में आजम खान के बसपा की ओर किसी झुकाव को न्‍यूट्रल करने के लिए अलिखेश उनसे ऐन मौके पर मुलाकात कर रहे हैं. क्‍योंकि, अलिखेश कभी नहीं चाहेंगे क‍ि अपने राजनीतिक वजूद कायम रखने के लिए छटपटा रही मायावती और आजम खान का किसी तरह गठजोड़ हो. आजम सपा में रहें, वैसे ही जैसे हैं.

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यूपी की राजनीति में दिलचस्‍पी रखने वालों के लिए आजम खान के प्रति अखिलेश यादव की बेरुखी कोई नई बात नहीं है. आजम खान कई बार इस बारे में व्‍यंग्‍य भरे लहजे में इशारा भी कर चुके हैं. हालांकि, ये भी सच है क‍ि जब उनसे बसपा के बारे में सवाल किया गया तो उन्‍होंने कहा कि 'मैं बेवकूफ हो सकते हैं लेकिन इतना बड़ा भी नहीं.' 

आजम खान समाजवादी पार्टी के हाशिये पर खड़े हैं, और यूपी की राजनीति में बसपा का भी आजम जैसा ही हाल है. लेकिन, देश के इस सबसे बड़े सूबे में जमीन तलाश रही भीम आर्मी और एआईएमआईएम को आजम खान में बारूद नजर आ रहा है. पर सवाल वही है क‍ि रामपुर और मुरादाबाद में कभी अजेय माने जाने वाले आजम अब कमजोर पड़ चुके हैं. कई मुकदमों, स्वास्थ्य समस्याओं, क्षेत्र में पकड़ ढीली होने से  उनकी साख को चोट पहुंची है. वे किसके और कितने काम आएंगे?

कई आपराधिक मुकदमों में जेल की सजा और चुनाव लड़ने की अपात्रता

आजम खान पर करीब 100 से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए हैं. 2023 में फर्जी जन्म प्रमाण पत्र केस में उन्हें सात साल की सजा मिली, और 2024 में रामपुर के डुंगरपुर कॉलोनी में जबरन घर खाली कराने के केस में दस साल की सजा हुई. इन सजाओं ने उन्हें जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत छह साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य कर दिया.

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जाहिर है कि उन पर हर वक्त जेल जाने का खतरा मंडराता रहेगा. कोर्ट से पैरोल और जमानत पर छूटे व्यक्ति से राजनीति में बहुत बयानबाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती है. अभी तक कुल 10 मामलों में उन्हें सजा हुई है. अभी दर्जनों मामलों के लिए कोर्ट में आना जाना लगा ही रहेगा.ऐसी स्थिति में उनसे ये उम्मीद करना कि वो किसी राजनीतिक पार्टी के लिए कुछ पॉजिटिव कर सकते हैं, एक भ्रम ही है. 

आजम के बिना भी समाजवादी पार्टी मजबूत

 2022 में रामपुर लोकसभा उपचुनाव में SP के आसिम राजा चुनाव हार गए और BJP के घनश्याम सिंह लोधी ने यह सीट आजम के पंजे से  छीन ली.  2024 लोकसभा चुनाव में आजम खान के विरोधी हो चुके मोहिब्बुलाह को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और सीट भी जीत ली. मतलब समाजवादी पार्टी ने दिखा दिया कि रामपुर सीट भी जो आजम खान की घरेलू सीट है , बिना उनकी मदद के जीता जा सकता है. एक्स पर एक हैंडल लिखता है कि आजम की रिहाई से सियासी हलचल तो मचाएगी, लेकिन उनकी सजा ने उनके घर रामपुर में ही उन्हें कमजोर कर दिया है.

मुलायम सिंह यादव के निधन (2022) के बाद SP में अखिलेश यादव का एकछत्र राज है. अखिलेश ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला अपना कर मुस्लिम नेताओं की भूमिका ही खत्म कर दी है.अखिलेश यादव खुद उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं.  2024 लोकसभा में SP ने यूपी में 37 सीटें जीतीं.

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आजम की अनुपस्थिति के बाद भी रामपुर और मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी को जीत मिली. हालांकि मुरादाबाद में आजम खान के सिफारिश पर रुचिवीरा को टिकट मिला था. फिर भी अखिलेश यादव आज की तारीख में मु्स्लिम समुदाय में इतना मजबूत हो चुके हैं कि उन्हें किसी आजम खान की जरूरत नहीं है. हालांकि अखिलेश यादव आजम खान जैसे नेताओं की उपेक्षा करके अपने मुस्लिम समर्थकों की भावना से खेलना भी नहीं चाहते हैं. यही कारण है कि आजम खान की अगुवाई के लिए अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव पहुंचे . अब स्वयं अखिलेश भी 8 अक्तूबर को आजम से मिलने रामपुर जा रहे हैं.

मुस्लिम वोट सपा और कांग्रेस जैसे बीजेपी विरोधी पार्टियों के पक्ष में एकजुट हो रहा

भारतीय जनता पार्टी के उभार के साथ उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की हार्डकोर हिंदुत्व की राजनीति के चलते उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का वोट अब किसी नेता की बपौती नहीं रह गया है. यहां तक असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पर से भी मुसलमानों का भरोसा कम हुआ है. मुसलमान उसे ही वोट देना चाहते हैं जो बीजेपी को हरा सके.  जाहिर है कि 2027 के उत्तर प्रदेश (यूपी) विधानसभा चुनावों के लिए भारतीय राजनीति में मुस्लिम वोटरों का रुझान भी कुछ ऐसा ही रहेगा.

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इसलिए आजम खान जैसे नेता अगर मुसलिम वोटर्स के हिसाब से नहीं सोचते हैं तो उन्हें भी मुंह की खानी पड़ेगी. मतलब साफ है कि अगर आजम खान बीजेपी को हराने वाली पार्टी के साथ हैं तब तो मुस्लिम उनके साथ रहेंगे अन्यथा उन्हें समर्थन नहीं मिलने वाला है. मुस्लिम वोटर्स का ये ध्रुवीकरण पिछले कुछ चुनावों में साफ देखा गया है.

मुस्लिम वोटर अब 'वोट कटवा' पार्टियों को छोड़ रहे, सपा-कांग्रेस जैसे बीजेपी के हार्डकोर विरोधियों पर उनका भरोसा बढ़ रहा है. बिहार में सीमांचल (किशनगंज, कटिहार) में मुस्लिम वोट (40-50%) पहले AIMIM की ओर बंटता था, लेकिन 2024 में ओवैसी की हार ने दिखाया कि मुस्लिम वोटर अब मुस्लिम नेताओं के झांसे में नहीं आने वाली है.

स्वास्थ्य समस्याओं से सियासी सक्रियता में बाधा

लंबे जेल प्रवास ने आजम खान (77 वर्ष) की सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाया. हृदय रोग, किडनी संक्रमण और बढ़ती उम्र से जुड़ी समस्याओं ने उन्हें कमजोर कर दिया है. रिहाई के बाद 23 सितंबर 2025 को डॉक्टरों ने उन्हें आराम की सलाह दी, जिससे वे रैलियों, जनसभाओं या प्रचार में सक्रिय नहीं हो सकते. पहले आजम की 'फायरब्रांड' भाषण शैली मुस्लिम और यादव वोटरों को जोड़ती थी.

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