बिहार में एसआईआर का विरोध और कर्नाटक के महादेवपुरा में वोट चोरी का आरोप लगाकर विपक्ष इस समय सत्ता पक्ष पर भारी पड़ता नजर आ रहा है. चुनाव आयोग को घेरने के बहाने कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को एनडीए के खिलाफ इंडिया गठबंधन को भी एक मंच पर लाने में फिर से सफलता मिली है. हालांकि आयोग पर जो भी आरोप राहुल गांधी ने लगाए हैं उनमें अधिकतर बहुत ही सतही हैं और कानूनी रूप से भी सही नहीं हैं. और न ही व्यवहारिक रूप से ही संभव हैं फिऱ भी विपक्ष की सफलता यह है कि वोट चोरी को उन्होंने मुद्दा बना दिया है.
इसमें सबसे बड़ी भूमिका बीजेपी नेताओं की रही. चुनाव आयोग को भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में एक स्वतंत्र निकाय का दर्जा हासिल है. बीजेपी ने आयोग के बारे में उठ रहे सवालों के जवाब देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली. विपक्ष से उठ रही आवाजों का जवाब चुनाव आयोग को देना चाहिए था पर मोर्चा संभाल लिया बीजेपी नेताओं ने . जाहिर है कि आम जनता के बीच इसका संदेश ठीक नहीं गया.
चुनाव आयोग का दशकों से दुरुपयोग होता रहा है
बीजेपी ने राहुल गांधी और विपक्ष के आरोपों को पहले दिन से ही बेबुनियाद बताना शुरू किया.हालांकि बीजेपी के लिए यह जरूरी भी था. क्योंकि कांग्रेस बीजेपी पर पहले से ही आरोप लगाती रही है कि पार्टी संवैधानिक संस्थानों को बरबाद कर रही है. चुनाव आयोग का दशकों से दुरुपयोग कर रहीं कांग्रेसी सरकारें अपनी मनमर्जी चलाती रही हैं. टीएन शेषन के चुनाव आयुक्त बनने के बाद यह पद कुछ जरूर मजबूत हुआ पर सरकारों का नियंत्रण बना रहा .
याद होगा किस तरह चुनाव आयुक्त रहे एमएस गिल को यूपीए सरकार में मंत्री बनाया गया था. जाहिर है कि बिना फायदे के यूं ही तो नहीं एक चुनाव आयुक्त को केंद्र में मंत्री पद मिला होगा. चुनाव आयोग जो कार्य बिहार में एसआईआर के जरिए कर रही वह केवल इसलिए ही जरूरी है ताकि बिहार में महादेवपुरा की तरह फर्जी वोटर्स को वोट देने का मौका न मिल सके.पर जैसा कर्नाटक के एक मंत्री की बर्खास्तगी से कांग्रेस की पोल पट्टी खुल गई है.कर्नाटक सरकार में मंत्री ने सरकार और पार्टी पर आरोप लगाया था कि जब लोकसभा चुनावों के पहले चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट का प्रॉरुप दिया उस पर पार्टी ने ध्यान ही नहीं दिया.
जाहिर है कि पार्टी को मिर्ची लग गई और मंत्री जी की बर्खास्तगी हो गई. हालांकि बीजेपी का चुनाव आयोग का बचाव रणनीतिक रूप से तर्कसंगत लगता है पर इसके कुछ संभावित नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं.
1-जनता के बीच अविश्वास को बढ़ावा देना
विपक्ष द्वारा बार-बार लगाए गए आरोपों ने मतदाताओं के एक वर्ग में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर संदेह पैदा किया है. आम जनता के मन में यह बात घर कर रही है कि कुछ तो जरूर हो रहा है. बीजेपी नेताओं के खुलकर आयोग का बचाव करने से पब्लिक की यह धारणा और बलवती हो रही है कि पार्टी आयोग को नियंत्रित कर रही है. कांग्रेस ने दावा किया कि चुनाव आयोग BJP-RSS की तरह बात कर रहा है. जिससे यह संदेश गया कि आयोग बीजेपी के दबाव में काम कर रहा है.
2- विपक्ष को और आक्रामक होने का मौका
बीजेपी के बचाव ने विपक्ष को और आक्रामक होने का अवसर दिया है. बिहार में एसआईआर मुद्दे पर विपक्ष को मिले रिस्पांस से कांग्रेस ने उत्साहित होकर इसे राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाने की कोशिश की. राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग की जगह बीजेपी क्यों जवाब दे रही है? यह बयान बीजेपी को रक्षात्मक स्थिति में लाने के कोशिश थी. जाहिर है कि बीजेपी राहुल गांधी का ठीक से जवाब नहीं दे सकी. अन्यथा हर कोई जानता है कि बिहार में चुनाव आयोग जो कर रहा है वह जरूरी है. राहुल गांधी महादेवपुरा में जो आरोप लगा रहे हैं आयोग उसका ही समाधान एसआईआर के जरिए कर रहा है. अगर बीजेपी के बजाए चुनाव आयोग ने यही बातें बार बार पीसी करके और और प्रचार माध्यमों का इस्तेमाल करके बताती तो विपक्ष को इतना आक्रामक होेने का मौका नहीं मिलता. आयोग के समर्थन में बीजेपी के उतरने से विपक्ष को एक मुद्दा मिल गया. विपक्ष ने बीजेपी को एक ऐसी पार्टी के रूप में दिखाया जो आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वालों को दबाने की कोशिश कर रही है.
3-बीजेपी की छवि पर प्रभाव
लंबे समय में बीजेपी पर आरोप लग रहा है कि वह संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का काम कर रही है. इसके पहले भी आरोप लगा था जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक निष्पक्ष समिति बनाने का आदेश दिया था. इस समिति में मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का प्रावधान किया गया था.पर सरकार ने इसे बदलकर गृह मंत्री को शामिल कर लिया. जाहिर है कि सरकार की इस फैसले की जबरदस्त आलोचना हुई थी. आयोग की स्वतंत्रता पर सवाल उठे थे. अब बीजेपी चुनाव आयोग का जिस तरह से बचाव कर रही है उससे यही संदेश जाएगा कि पार्टी आयोग को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है.
4-पार्टी ठीक ढंग से रख नहीं सकी अपनी बात
बीजेपी ने राहुल गांधी और विपक्ष को अराजकता फैलाने और झूठ बोलने का आरोप लगाकर उनके नैरेटिव को कमजोर करने की कोशिश की. पर यह कोशिश उस स्तर पर नहीं जा सकी जिससे ये लगे कि विपक्ष की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे.
खासकर पूरा देश जानता है कि राहुल गांधी जो कुछ भी कह रहे हैं उसके लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है. बीजेपी चाहती तो घर घर में इस मुद्दे को ले जा सकती थी. हालांकि बीजेपी ने यह भी तर्क दिया कि अगर विपक्ष को गड़बड़ी की जानकारी थी, तो उन्होंने समय पर शिकायत क्यों नहीं की, जिससे विपक्ष डिफेंसिव हो गया है.
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी-नीत महायुति गठबंधन ने 230 सीटें जीतीं, जो उनकी मजबूत स्थिति को दर्शाता है. चुनाव आयोग का बचाव करके बीजेपी अपनी जीत की वैधता को मजबूत करती है और यह संदेश देती है कि उनकी जीत जनता की इच्छा का परिणाम है, न कि किसी हेरफेर का.