scorecardresearch
 

पाकिस्‍तान सेना की सरपरस्ती में चली चार तहरीकें कैसे बन गईं 'भारतीय'

पाकिस्‍तान की सरकार ने तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) पर बैन लगाने की तैयारी कर ली है. इस संगठन ने पिछले दिनों इजरायल-गाजा पीस प्‍लान को  लेकर शाहबाज शरीफ सरकार और सेना के रवैया के खिलाफ जमकर बवाल काटा था. कभी पाकिस्‍तानी सेना के लाड़ले रहे इस संगठन पर अब भारत के इशारों पर नाचने का आरोप लगा है.

Advertisement
X
पाकिस्‍तानी सेना के समर्थन से पनपे TLP, तालिबान, पीटीआई जैसी पार्टियां और संगठन आज उसी के सामने सिर उठाकर खड़े हो गए हैं. (फोटो- AP)
पाकिस्‍तानी सेना के समर्थन से पनपे TLP, तालिबान, पीटीआई जैसी पार्टियां और संगठन आज उसी के सामने सिर उठाकर खड़े हो गए हैं. (फोटो- AP)

2017 में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) ने इस्लामाबाद के फैजाबाद चौराहे पर धरना दिया. तब एक पाकिस्‍तानी जनरल को प्रदर्शनकारियों को पैसे देते देखा गया था. उस धरने को सेना का समर्थन हासिल था. जिसका मकसद था तब की नवाज शरीफ की पार्टी वाली सरकार को कमजोर करना. पिछले दिनों लाहौर में उसी TLP ने बवाल काटा. आरोप लगाया कि  पाकिस्‍तानी सरकार और सेना ट्रंप के दबाव में इजरायल के आगे झुक गई है. नतीजे में पाकिस्‍तानी रेंजरों ने TLP के प्रदर्शनकारियों पर न सिर्फ गोलियां बरसाईं. उसके लाहौर हेडक्‍वार्टर पर मारे गए छापे में दावा किया गया कि वहां भारतीय करेंसी बरामद हुई है. यानी ये संगठन भारत के इशारे पर पाकिस्‍तान में अराजकता फैला रहा था.

पाकिस्‍तान के पंजाब राज्‍य की इनफॉर्मेशन मिनिस्‍टर अजमा बुखारी ने गुरुवार को कहा कि उनकी सरकार ने मजहबी द्वेष फैलाकर अराजकता करने वाली पार्टी के खिलाफ केस बनाकर सेंट्रल गवर्मेंट को भेजा है. आशंका जताई जा रही है कि ये TLP पर बैन लगाने का इशारा है. खबर यह भी आई है कि शाहबाज शरीफ की अध्‍यक्षता में हुई फेडरल गवर्नमेंट की बैठक में TLP पर बैन लगाने को अंतिम मंजूरी दे दी गई है. ये वही TLP है, जिसका 2015 में खादिम रिजवी और अफजल कादरी जैसे बरेलवी मौलानाओं ने गठन किया था. इस संगठन को पंजाब के तत्‍कालीन गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी ने जमीन मुहैया करवाई थी. तासीर पाकिस्‍तान के ईशनिंदा कानून का व‍िरोध करते थे और ऐसे ही एक आरोप में फंसाई गई ईसाई युवती आसिया बीबी का समर्थन कर रहे थे. उनके हत्‍यारे सुरक्षाकर्मी कादरी को फांसी क्‍या हुई, TLP वालों ने उसकी कब्र पर मजार बना दी. और उसे हीरो की तरह पेश किया.

Advertisement

पिछले दस सालों में TLP वालों ने ईशनिंदा के नाम पर सैकड़ों हत्‍याएं कीं. इसमें एक श्रीलंकाई कारोबारी भी शामिल रहा. यही संगठन 2021 में हिंसा पर उतर आया और पुलिसवालों की हत्या हुई, तो इस संगठन का पोषण करने वाली सेना बोली - 'भारत ने TLP में घुसपैठ कराई है, RAW ने दंगे कराए हैं.' कभी जिन्हें सड़कों पर भेजा गया, अब उन्हीं पर विदेशी साजिश का ठप्पा लगा दिया गया. 

पाकिस्तान के इतिहास में एक अजीब सिलसिला चलता आया है. सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई जो संगठन खुद बनाती है,
वही बाद में उसके गले की हड्डी बन जाते हैं. और जब हालात काबू से बाहर हो जाते हैं, तो पर्चे, प्रेस कॉन्फ़्रेंस और टीवी स्क्रीन पर बस एक ही नाम उछाला जाता है - 'भारत की साजिश!'

ऐसे में सिर्फ तहरीक-ए-लब्‍बैक ही क्‍यों, पाकिस्‍तानी सेना के द्वारा शुरू गई कुछ और तहरीकों पर नजर डालें तो वहां भी अंजाम मिलता जुलता ही नजर आता है.

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI): 'सेना की पसंदीदा पार्टी' से 'विदेशी साजिश' तक

1996 में इमरान खान ने PTI बनाई थी, लेकिन पार्टी का असली उभार 2011 के बाद हुआ जब सेना और आईएसआई ने तय किया कि नवाज शरीफ और जरदारी को रोकने के लिए एक 'नया चेहरा' लाया जाए. 2014 का डी-चौक धरना सेना के सॉफ्ट सपोर्ट से चला, और 2018 के चुनाव में तो पूरा माहौल इमरान के पक्ष में 'मैनेज' किया गया. यह सब इतना खुलेआम हुआ कि कहा जाने लगा-  'इमरान खान इलेक्‍टेड नहीं, सिलेक्‍टेड प्राइम मिनिस्‍टर हैं.'

Advertisement

पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. 2022 में जब इमरान ने फौज से टकराव शुरू किया, तो हालात बदल गए. 9 मई 2023 को जब PTI के समर्थक फौजी ठिकानों तक पहुंच गए, तो ISPR ने बयान जारी किया - 'इस हिंसा के पीछे भारत की RAW है.' जो 'कप्तान' कभी सेना का पोस्टर बॉय था, अब उसी पर विदेशी एजेंट होने का आरोप था. आज हालात ये हैं कि करीब दो साल से अडियाला जेल में बंद इमरान खान के बारे में कहा जाता है कि उनका ट्विटर अकाउंट भारत से संचालित होता है. इतना ही नहीं, इमरान की पार्टी पर TTP की हिमायती होने का भी आरोप है.

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तानी (TTP): अपनी ही औलाद से जंग

अमेरिका के साथ मिलकर जब पाकिस्तान ने 2004 के बाद कबाइली इलाकों में अल-कायदा के खिलाफ ऑपरेशन शुरू किए, तो वही लड़ाके निशाना बन गए जिन्हें कभी आईएसआई ने जिहाद के लिए तैयार किया था. नतीजा ये हुआ कि उन्‍होंने भी अपनी बंदूकें पाकिस्तान की ओर मोड़ दीं. और इसी के साथ दिसंबर 2007 में बैतुल्लाह महसूद के नेतृत्व में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) बनी. ये वही लोग थे जिन्हें कभी 'अफगान जिहाद' के नाम पर फंड और हथियार मिले थे.

जब TTP ने GHQ और पेशावर स्कूल पर हमले किए, तो पाकिस्तान ने फिर वही पुराना कार्ड खेला - 'RAW फंडिंग कर रही है, और अफगानिस्तान से साजिश चल रही है.' पर दुनिया जानती थी कि ये सब पाकिस्तान की ही पुरानी नीति का उल्टा असर था.

Advertisement

TTP और पाकिस्‍तान सेना एक दूसरे के साथ खूनी जंग लड़ रही हैं. पिछले दिनों पाकिस्‍तान के खैबर-पख्‍तूनख्‍वा इलाके में TTP ने सेना के बड़े अफसरों को मौत के घाट उतारा है. जबकि पाकिस्‍तानी सेना ने इस  संगठन केसरपरस्‍तों को निशाना बनाने के नाम पर अफगानिस्‍तान के भीतर जाकर हवाई हमले किए हैं. जंग अब भी जारी है.

तहरीक-ए-तालिबान अफगान: आईएसआई की पहली क्रिएशन, जिस पर लग गया भारतीय ठप्‍पा

साल 1994 में कंधार की धूल भरी जमीन पर मुल्ला उमर के नेतृत्व में 'तहरीक-ए-तालिबान अफगानिस्तान' बनी. लेकिन इसके पीछे का असली दिमाग था पाकिस्तान की आईएसआई. उस समय पाकिस्तान की सोच थी कि अगर अफगानिस्तान में एक इस्लामी, देवबंदी सरकार बैठा दी जाए तो भारत के खिलाफ 'स्ट्रैटेजिक डेप्थ' मिल जाएगी.

ISI ने क्वेटा और पेशावर के मदरसों से हजारों लड़ाके तैयार किए. उन्हें हथियार, गाड़ियां और ट्रेनिंग दी. 1996 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया, तो पाकिस्तान ने खुशी-खुशी उन्हें मान्यता दी. 1999 में भारतीय विमान अपहरण कांड के कंधार एपिसोड में इसी तालिबान ने आतंकी मसूद अजहर की रिहाई में पाकिस्‍तान की भी मदद की.

लेकिन 2001 के बाद, जब पूरी दुनिया तालिबान को आतंक का प्रतीक मानने लगी, तो पाकिस्तान ने अफगानिस्‍तान से मुंह चुराना शुरू कर दिया. उसने अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्‍तान पर कई बार हमले किए. कई तालिबानियों को पकड़कर पाकिस्‍तान ने अमेरिका को सौंप दिया. कहा तो यहां तक गया कि मुल्‍ला उमर के खात्‍मे में भी अमेरिका को इंटेलिजेंस पाकिस्‍तान ने ही मुहैया कराई. और अब जब तालिबान सत्‍ता में लौटा है, पाकिस्‍तान से अपने हिसाब चुकता कर रहा है तो पाकिस्‍तान  कहने लगा है  कि- 'भारत अफगान धरती से पाकिस्तान अस्थिर कर रहा है!' यानी अब तक जिसने आग लगाई, वही फायरब्रिगेड बन गया है.

Advertisement

एक ही पैटर्न: 'बनाओ, इस्तेमाल करो, और प्रोजेक्‍ट फेल हो जाए तो भारत को दोष दो'

पाकिस्तान की फौज की रणनीति तीन दशकों से यही रही है. कभी तालिबान को जिहाद के नाम पर, कभी लब्बैक को मजहब के नाम पर,
कभी इमरान खान को 'ईमानदार नेतृत्व' के नाम पर आगे बढ़ाया. और जब वही ताकतें नियंत्रण से बाहर हो गईं, तो पूरा दोष 'भारतीय साजिश' पर डाल दिया गया.

इस 'नियंत्रित अराजकता' की नीति ने पाकिस्तान को न तो स्थिरता दी, और न लोकतंत्र, न ही सुरक्षा. कुछ मिला तो वह था सेना को अपना वजूद बनाए रखने का एक और बहाना. जिसके लिए हर बार एक नए मोहरे की कुर्बानी  दी गई. एक पुराने बहाने के साथ कि 'ये भारत के प्रॉक्‍सी हैं'.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement