मध्यप्रदेश में श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से चीतों को लाकर बसाया जाएगा. यहां आसपास रहने वाले लोग चीतों से डरकर उन्हें नुकसान न पहुंचाएं, इसके लिए सरकार ने यहां 'चीता मित्र' बनाए हैं. कुल 90 गांवों के 457 लोगों को चीता मित्र बनाया गया है और इनमें से सबसे बड़ा नाम है रमेश सिकरवार का, जो पहले डकैत थे और उनपर करीब 70 हत्याओं का आरोप था.
रमेश सिकरवार ने अक्टूबर, 1984 को सरेंडर किया था, लेकिन उनका रुतबा आज भी इलाके में कायम है. इसलिए उन्हें चीता मित्र बनाया गया है ताकि वह लोगों को चीता के प्रति जागरूक करें तो लोग उनकी बात मानें.
कूनो नेशनल पार्क से करीब 55 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच Aajtak चीता मित्र रमेश सिकरवार के घर पहुंचा. मूंछों पर ताव, हाथों में बंदूक और सीने पर गोलियों वाला बेल्ट पहने रमेश सिकरवार घर के आंगन में बैठे थे. आजतक से बात करते हुए रमेश सिकरवार ने कहा, ''भले ही जान दे दूंगा लेकिन चीतों को कुछ नहीं होने दूंगा...मुझे चीता मित्र बनाया गया है, इसकी बेहद खुशी है, मैं वन्य प्राणियों की रक्षा के लिए पहले भी कार्य करता रहा हूं और अब इस जिम्मेदारी को भी निभाऊंगा.''
पूर्व दस्यु रमेश सिकरवार ने कहा, नेशनल पार्क के आसपास बड़ी संख्या में पारदियों के परिवार हैं जो कि वन्यजीवों का शिकार करते हैं. पहले इन लोगों ने वन विभाग के डिप्टी रेंजर की हत्या भी कर दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई न होने से उनके हौसले बुलंद होते चले गए. अब जब चीते आ रहे हैं तो फिर उनकी सुरक्षा को लेकर की भी रमेश सिकरवार फिक्रमंद हैं. चीता मित्र की सरकार से मांग है कि नेशनल पार्क के आसपास जितने भी पारदियों के पास हथियार हैं, उनके लाइसेंस जब्त कर लिए जाएं.
रमेश सिकरवार गांव-गांव घूमकर यहां रहने वालों को जागरूक कर रहे हैं कि चीता मनुष्यों को नुकसान पहुंचाने वाला जानवर नहीं है, इसीलिए उससे डरें नहीं और न ही उसे नुकसान पहुंचाएं.
दरअसल, इस इलाके में बड़ी संख्या में तेंदुए भी पाए जाते हैं और गांववाले तेंदुए को देखकर उसे चीता न समझ लें, इसलिए रमेश सिकरवार तेंदुए और चीते के बीच का अंतर भी गांववालों को समझा रहे हैं. रमेश सिकरवार 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनके जन्मदिन पर मिलने वाले हैं.
रमेश सिकरवार क्यों हुए थे बागी?
'Aajtak' से बात करते हुए रमेश सिकरवार ने बताया, चाचा ने पिता के हिस्से की जमीन पर कब्जा उन्हें घर से निकल दिया. वे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो गए थे. पिता के साथ हुई इस नाइंसाफी के लिए बेटे ने बंदूक उठाई और चाचा की हत्या करने के बाद बीहड़ में कूद गया. बागी बनकर चंबल-ग्वालियर संभाग में 70 से ज्यादा लोगों की हत्याएं और 250 से ज्यादा डकैती की वारदातों को अंजाम देने वाले पूर्व दस्यु सिकरवार अब आदिवासियों के मददगार बन गए हैं. जिनके नाम से कभी चंबल कांपता था, अब उन्हीं के पास ग्रामीण फरियाद लेकर जाते हैं. वे अब तक आधा सैकड़ा से अधिक आदिवासियों की जमीनों को दबंगों से मुक्त करा चुके हैं.
पूर्व दस्यु सिकरवार अब 71 साल के हो चुके हैं और कराहल तहसील के गांव लहरोनी में खेती करके जीवनयापन कर रहे हैं. 1974 में अपने चाचा की हत्या करने के करीब 10 साल बाद 27 अक्टूबर, 1984 को 18 शर्तों के साथ उन्होंने आत्मसमर्पण किया था, लेकिन 2012 में डबल मर्डर केस के बाद वे एक बार फिर से चर्चा में आ गए. हत्या के आरोप में वे करीब 10 माह तक फरार भी रहे.
इस दौरान एकता परिषद के संपर्क में आने के बाद उन्होंने दूसरी बार समर्पण कर दिया. हालांकि कोर्ट ने 2013 में उन्हें इस डबल मर्डर केस से बरी कर दिया. जेल से बाहर आने के बाद वे आदिवासियों के लिए काम करने वाली समाजसेवी संस्था एकता परिषद से जुड़ गए. यहीं से उनके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आया और वे गरीब-आदिवासियों की मदद करने लगे.
चीता प्रोजेक्ट की तैयारियों में जुटे अफसरों ने बीते जून महीने में चीतों से लोगों को परिचित कराने में मदद करने के लिए लोग ढूंढने शुरू किए. इस काम के लिए पूर्व दस्यु सिकरवार सहर्ष तैयार हो गए.
रमेश सिकरवार ने अपने कुछ साथी चीता मित्रों के साथ गांव गांव पहुंचकर जागरूकता मिशन शुरू भी कर दिया है. सिकरवार ने फोन पर बताया कि कूनो सेंचुरी में चीते आने से इलाके की तरक्की होगी और श्योपुर को दुनियाभर में पहचान मिलेगी.