नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने कश्मीर की धारा 370 के कई प्रावधान हटाकर यह दावा किया है कि इससे कश्मीर को एक नई सुबह मिलेगी. सरकार के इस फैसले का असर आने वाले समय में पता चलेगा. पर सहमत खान जैसी वीरांगनाओं की जीवनगाथा बताती है कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की साजिशों का जवाब देने के लिए कश्मीर के लोगों और वहां की लड़कियों ने कितनी कुर्बानी दी है.
'राज़ी' फिल्म की कहानी सहमत खान जैसी ऐसी ही वीरांगना के किरदार पर है. यह फिल्म रिटायर्ड नेवी ऑफिसर हरिंदर सिक्का की सच्चे पात्रों पर अंग्रेजी में लिखी हुई किताब 'कॉलिंग सहमत' पर आधारित थी. उनका यह नॉवेल एक लड़की की असल जिंदगी को बयान करता है. अंग्रेजी में जब यह किताब आई तो खूब बिकी. अब यह किताब हिंदी के पाठकों के लिए भी इसी नाम से आ रही.
इस नॉवेल को लिखने की प्रेरणा हरिदंर सिक्का को तब मिली जब वह कारगिल युद्ध के बारे में रिसर्च करने के दौरान सहमत खान नामक एक बहादुर कश्मीरी महिला के बेटे से मिले थे. दरअसल उन्हें सहमत के बेटे ने ही अपनी मां की देशभक्ति की नायाब मिसाल के बारे में बताया था. इसके बाद सिक्का सहमत से मिलने पंजाब के मलेरकोटला पहुंचे. सहमत से मिलकर सिक्का खुद भी यह यक़ीन नहीं कर पाए कि इतनी सीधी लगने वाली महिला जासूसी भी कर सकती है.
सिक्का के मुताबिक 1971 में हुए इंडिया-पाकिस्तान के युद्ध से पहले आर्मी को एक ऐसे जासूस की ज़रूरत पड़ गई थी, जो पाकिस्तान में रह कर उनकी हर हरकत पर नज़र रख सके. इसके लिए एक कश्मीरी बिज़नेसमैन अपनी बेटी सहमत को मनाने में कामयाब हो गए. सहमत वहां गई और कैसे लौटी 'राजी' फिल्म में इस कहानी का एक अंश ही दिखाया गया है.
सच तो यह है कि इस फिल्म देखने के बावजूद आपको इस बात का आभास नहीं हो सकता कि सहमत को पाकिस्तान में किस तरह के संघर्षों से दो चार होना पड़ा था या कि एक 20-21 साल की युवती ने कैसे दुश्मन के देश में रहकर अपने कर्तव्य को अंजाम दिया? या फिर सहमत का भारत लौटने के बाद क्या हुआ?
सहमत कॉलिंग ऐसे सभी सवालों के जवाब देती है. यह किताब अब हिंदी पाठकों के लिये आ रही है, जिसका विमोचन इसी माह होने वाला है. किताब के लेखक हरिंदर सिक्का का मानना है कि सहमत और देश के जासूसी जगत के कई ऐसे पहलू हैं जिनके बारे में देशवासियों को उनकी अपनी भाषा में पता होना चाहिए.
सहमत कॉलिंग किताब सिर्फ एक हिंदुस्तानी लड़की के सफल जासूस होने की कहानी नहीं बल्कि बहुत से सवालों का जवाब है. इस किताब में एक स्कूली छात्रा के देशप्रेम में सबकुछ न्यौछावर करने वाली युवती में बदलाव की कहानी है. साथ ही यह किताब लड़कियों को दायरे में बांधने की कोशिश करने वाली सोच पर प्रहार भी है.
यह किताब बताती है कि कश्मीर के लोगों को लेकर बन चुकी धारणा कैसे गलत है? कैसे मुट्ठी भर भटके हुए लोगों की वजह से धारणा विकृत होती जा रही है. इस किताब के लेखक खुद भी नौसेना में रह चुके हैं. वह इस किताब को हिंदी में लाने के पीछे की सोच को बेहद जरूरी और जायज मानते हैं.
लेखक हरिंदर सिक्का का कहना है कि राज़ी फिल्म इस किताब का महज एक हिस्सा भर थी, जबकि यह किताब सहमत के कई पहलुओं को सामने लाती है. किताब का आयाम काफी बड़ा है. हालांकि इस किताब का विवेचन इसी माह होगा, पर ऑनलाइन इसकी बिक्री शुरू हो चुकी है.
'कॉलिंग सहमत' किताब को पढ़ने के बाद हिंदी क्षेत्र के लोग भी सहमत खान के अदम्य साहस से परिचित होंगे, उसके अंदर के संघर्ष उसकी मनोस्थिति को जान सकेंगे. लेखक का मानना है कि सहमत एक प्रेरणा है, मिसाल है और ऐसी उत्प्रेरक है जिसके बारे में हर देशवासी को पता होना चाहिए.