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'समान शिक्षा लागू कर दो, फिर आरक्षण जरूरी नहीं...' साहित्य आजतक में बोले दलित चिंतक कवितेंद्र इंदु

Sahitya Aaj Tak 2024: दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आगाज हो चुका है. यह तीन दिवसीय कार्यक्रम 24 नवंबर तक चलेगा. यहां किताबों की बातें हो रही हैं. फिल्मों की बातें हो रही हैं. सियासी सवाल-जवाब किए जा रहे हैं और तरानों के तार भी छेड़े जा रहे हैं.

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साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद अतिथि.
साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद अतिथि.

Sahitya Aaj Tak 2024: देश की राजधानी दिल्ली में आज 22 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आगाज हो चुका है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश के जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. यहां गीत-संगीत, शायरी-कविता और विचारों की महफिल सज रही है. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' के मंच पर 'संविधान के 75 बरस' सेशन में  संविधान और दलित समाज से जुड़े सवालों पर विशेष चर्चा की गई.

साहित्य और समाज में दलित विषय पर संवाद में देश के दलित चिंतक और लेखक शामिल हुए. इनमें लेखिका प्रो. रजत रानी मीनू और कवितेंद्र इंदु ने साहित्य, समाज और दलित विमर्श के नए आयामों पर बात की.

इस दौरान कवितेंद्र इंदु ने कहा कि एक देश के अंदर कई देश हैं. भारत एक ऐसा देश है, जहां ऊपर नजर उठाएं तो आपको हवाई जहाज उड़ता दिखेगा, और जमीन पर देखें तो बैलगाड़ी भी नजर आएगी. यहां बदलाव तो हुआ है, लेकिन रफ्तार धीमी है. यहां घरों में एलेक्सा मिल जाएगा और वहीं सिलबट्टा भी मिल जाएगा.

कवितेंद्रु इंदु ने कहा कि यहां ट्रेन में एसी क्लास भी है और जनरल डिब्बा भी. गांव में रहने वाले दलित की स्थिति अलग है, और शहरों में रहने वालों की स्थितियां अलग हैं. दलित तबके की मेजॉरिटी अभी भी जनरल डिब्बे जैसी है. नए संसाधनों ने बहुत कुछ बदला है. 

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दलित चिंतक कवितेंद्र इंदु.
दलित चिंतक कवितेंद्र इंदु.

उन्होंने कहा कि जातिगत भेदभाव की मोटी रेखा शहरों में नहीं देखने को मिलेगी. शहरों में जाति कहां दिखती है तो आप मैट्रिमोनियल देख सकते हैं. जोर इस पर होना चाहिए कि जहां स्थितियां बदली हैं, वहां भी इतनी नहीं बदलीं कि हम सुकून की सांस ले सकें. आज भी डिसीजन मेकिंग बॉडी में वंचित तबकों का कितना योगदान है, देखा जा सकता है.

रिजर्वेशन को लेकर उन्होंने कहा कि मैं रिजर्वेशन की प्रक्रिया का गंभीर आलोचक रहा हूं. ये उपाय किस समय किए गए थे. जब तक बेहतर स्थिति न हो जाए, तब तक रिजर्वेशन को कट करने का उपाय नहीं सोचना चाहिए. जब तक आरक्षण से बेहतर विकल्प नहीं लेकर आते, तब तक आरक्षण को खत्म कर देना समझ में नहीं आता. 

दलित चिंतक कवितेंद्र इंदु ने कहा कि मेरिट उच्च जातियों में ही पैदा होते हैं, क्या ऐसा है? हमारे समाज में ही लोगों के बीच गैर बराबरी है. जाति का सवाल और दलितों की स्थिति का सवाल रिजर्वेशन का सवाल नहीं है. जब एक समान शिक्षा सबको मिल जाए तो ऐसी स्थिति में रिजर्वेशन खत्म कर दिया जाए. यहां एक सरकारी शिक्षा है, एक प्राइवेट शिक्षा है. हिंदी मीडियम अलग है और अंग्रेजी मीडियम अलग है. बुनियादी बदलाव करें, जिससे आरक्षण की जरूरत ही न रहे. यहां हर जातियों की संख्या पता होनी चाहिए. जातिगत जनगणना होनी चाहिए.

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प्रो. रजत रानी.
प्रो. रजत रानी.

आरक्षण का मतलब हकमारी समझा जाता है, जबकि ऐसा नहीं हैः प्रो. रजत रानी

प्रो. रजत रानी मीनू ने कहा कि 75 साल हो गए और दलित की स्थिति कितनी सुधरी है. इस पर हम सामान्य तौर पर कह सकते हैं कि स्थिति कुछ सुधरी है. सिर्फ अंग्रेजों का जाना और भारतीयों का शासन पर काबिज होना ही आजादी नहीं है. जो दलित आज शिक्षा में दिख रहे हैं, वो एक अंश हैं. अपने संघर्षों से दिख रहे हैं. यह आसानी से नहीं आ पाए. शिक्षा से ही सबसे पहले रास्ता निकलता है, फिर स्वास्थ की बात आती है. पिछले कुछ सालों से शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ है.

रजत रानी ने कहा कि निजी क्षेत्रों में भी जातिगत भेदभाव है. हालांकि गवर्नमेंट में भी वही स्थिति है, लेकिन निजी क्षेत्रों में ज्यादा है. एक सर्वे में भी ये बात सामने आ चुकी है. शिक्षा का व्यवसायीकरण खत्म होना चाहिए. सभी को एक समान शिक्षा मिलनी चाहिए. गांव में 80 प्रतिशत लोग गरीब हैं. इनमें दलित हैं, पिछड़े हैं और आदिवासी हैं. अन्य जातियों की तुलनात्मक दृष्टि से संख्या कम है. दलितों का पिछड़ना देश का पिछड़ना है.

उन्होंने कहा कि ये राष्ट्र की समस्या है. आरक्षण का मतलब हकमारी समझा जाता है, जबकि ऐसा नहीं है. रजत रानी ने कहा कि यहां हर व्यक्ति के नाम के आगे जातिसूचक शब्द लगे हैं. वो भी इस देश का नागरिक है, वो यहीं जन्मा है तो वो जाएगा कहां पर.

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रजत रानी ने कहा कि दलित अगर चाट का ठेला लगाना शुरू कर दे, तो उसके पास कौन जाएगा? इस दौरान रजत रानी ने दलित साहित्य में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता सुनाई. उन्होंने कहा कि आज साहित्य में दलित अपनी वेदना लिख रहे हैं, सवाल उठता है कि उनको ये स्थितियां किसने दीं हैं. दलितों के साथ उनकी जो जीवन स्थितियां रही हैं, उन्हीं के कारण उनकी आर्थिक और शैक्षिक स्थितियां बिगड़ती हैं.

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