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बेबी वाइप्स शिशु और पर्यावरण दोनों के लिए है खतरनाक, जानें कैसे

आइए जानते हैं बेबी वाइप्स किस तरह बच्चों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है और इससे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.

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प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो

वाइप्स से होने वाली दिक्कत सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक खतरा है. प्लास्टिक के बने ये वाइप्स बायो-डिग्रेडेबल नहीं होते और उन्हें पूरी तरह नष्ट होने में लगभग 500 साल लग जाते हैं. वहीं ईको-फ्रेंडली वाइप्स पौधों के फाइबर से बने होते हैं और ये बहुत ही मुलायम होते हैं. साथ ही पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाते.

अगर यूरोपीय देशों की बात करें तो वहां प्लास्टिक वाइप्स को बैन करने की मुहिम छिड़ी हुई है क्योंकि वहां नाले जाम होने का मुख्य कारण ये वाइप्स हैं. आज के परिवेश में वाइप्स का इस्तेमाल जहां एक आम बात हो गई है वहीं वाइप्स से होने वाली परेशानियां भी बढ़ी हैं.

'हैल्थहंट डॉट इन' की संस्थापक पूजा दुग्गल के अनुसार, बच्चों की त्वचा बहुत पतली और कोमल होती है और कोई भी तरल पदार्थ उसके आर पार हो जाता है. इसलिए वाइप्स इस्तेमाल करने से पहले बच्चे की त्वचा पर किसी जेली या क्रीम से मालिश करने से उसकी परत वाइप्स से होने वाले रैशेस से बचाती है.

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बता दें, बेबी केयर मार्केट 17 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, इसका बाजार 2014 में जहां 14 अरब डॉलर का था, वहीं 2019 में यह 31 अरब डॉलर के पार होने की संभावना है. जहां स्थापित कंपनियां अपने नए उत्पाद ला रही हैं वहीं मदर स्पर्श, मामा अर्थ, मॉम जैसी नई कंपनियां पर्यावरण के साथ ही बच्चों की कोमल त्वचा का ध्यान रखकर ईको फ्रेंडली उत्पाद उतार रही हैं.

मदर स्पर्श की संस्थापक और ब्रांड स्ट्रेटेजी की प्रमुख रिशु गांधी ने कहा, आम या नामी वाइप्स ज्यादातर प्लास्टिक से बनते हैं जिनमें रसायनों की मात्रा भी बच्चों की त्वचा के अनुसार अधिक होती है. जब इन वाइप्स का इस्तेमाल ज्यादा होता है तो त्वचा में खुजली बढ़ जाती है और त्वचा संबंधी अन्य समस्याएं हो जाती हैं. ये खासकर तब बढ़ती हैं जब रसायन मिश्रित वाइप्स से हम बच्चे को पोंछ कर धूप में रख देते हैं तो ये सारे केमिकल्स सूर्य की रोशनी के संपर्क में आकर प्रतिक्रिया कर बच्चों को तकलीफ पहुंचाते हैं.

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