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लाइफस्टाइल

जानें उस टेस्ट को जिसमें दिल्ली का हर चौथा व्यक्ति निकला कोरोना संक्रमित

जानें उस टेस्ट को जिसमें दिल्ली का हर चौथा व्यक्ति निकला कोरोना संक्रमित
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स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मंगलवार को दिल्ली में किए गए सेरोलॉजिकल सर्वे के नतीजे जारी कर दिए. 27 जून से 10 जुलाई के बीच किए गए इस सर्वे से पता चला है कि दिल्ली में 22.86 फीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी ( IgG antibodies) विकसित हुई है. इसका मतलब ये है कि इतने लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं.
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सेरोलॉजिकल सर्वे के लिए 21,387 लोगों के सैंपल लिए गए थे. स्टडी में इस बात की भी जानकारी सामने आई कि दिल्ली में बड़ी संख्या में लोग एसिम्टोमैटिक यानी बिना लक्षण वाले हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ये सेरोलॉजिकल सर्वे है क्या और कोरोना वायरस के संक्रमण का इससे कैसे पता लगाया जाता है?
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सेरोलॉजिकल सर्वे क्या है?

सेरोलॉजिकल सर्वे के जरिए वायरस के खिलाफ विकसित होने वाली एंटीबॉडी का पता लगाकर कर इस बात आकलन किया जाता है कि ये बीमारी कितनी आबादी में फैल चुकी है. सेरोलॉजिकल टेस्ट संक्रमण और ऑटोइम्यून बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जाता है. इससे ये भी जांच की जा सकती है कि किसी व्यक्ति के शरीर में किसी विशेष बीमारी से लड़ने के लिए इम्यूनिटी विकसित हुई है या नहीं.

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इस सर्वे में आईजीजी एंजाइम से जुड़ा एलीसा टेस्ट (ELISA) भी शामिल होता है. आईजीजी टेस्ट किसी खास संक्रमण का पता लगाने में उपयोगी नहीं है बल्कि इससे ये जानकारी मिलती है कि किसी शरीर में पहले कौन-कौन से संक्रमण हो चुके हैं. इस टेस्ट की विशेषता को ध्यान में रखते हुए ICMR ने इसे मंजूरी दी है.

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तमाम देश अपनी पूरी आबादी में पीसीआर टेस्ट नहीं करा सकते हैं. इसलिए सीरोलॉजिकल के जरिए ये अंदाजा लगाने की कोशिश करते हैं कि कितनी आबादी में कोरोना फैल चुका है. कुछ दिनों पहले ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने भी सेरोलॉजिकल ब्लड टेस्ट के आधार पर ईरान में संक्रमितों का आंकड़ा दिया था. हसन रुहानी के अनुसार ईरान के 2.5 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हैं और करीब 3.5 करोड़ लोगों के कोरोना से संक्रमित होने की आशंका है. हालांकि, ईरान के स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस आंकड़े को खारिज करते हुए कहा था कि सेरोलॉजिकल ब्लड टेस्ट से संक्रमित व्यक्ति की वर्तमान स्थिति का पता नहीं लगता है.

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हालांकि, ईरान के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा था कि सेरोलॉजिकल ब्लड टेस्ट से संक्रमित व्यक्ति की वर्तमान स्थिति का पता नहीं लगता है.


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ईरान की मीडिया में छपे स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि किसी बीमारी की वर्तमान स्थिति का आकलन करने के लिए सेरोलॉजिकल टेस्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
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दरअसल, सेरोलॉजिकल टेस्ट में ये देखा जाता है कि किसी शख्स में एंटीबॉडी विकसित हुई है या नहीं. अगर किसी व्यक्ति में एंटीबॉडी विकसित मिलती है तो उसे कोरोना वायरस से संक्रमित माना जाता है. हालांकि, कई बार ऐसा भी हो सकता है कि व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हुआ हो और उसमें एंटीबॉडी विकसित हो गई हो लेकिन वह अब पूरी तरह से ठीक हो चुका हो.
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सेरोलॉजिकल टेस्ट सिर्फ ये दिखाते हैं कि अतीत में कोई शख्स कोरोना वायरस के संक्रमण का शिकार हुआ था या नहीं. कोविड-19 बीमारी का सटीक तौर पर पता लगाने के लिए नाक और गले के सैंपल लेकर पीसीआर टेस्ट किया जाना जरूरी है.

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दिल्ली में किए इस सर्वे से क्या पता चलता है?

दिल्ली में किए गए सेरोलॉजिकल सर्वे में 22.86 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई. हालांकि यह दर दिल्ली की पूरी आबादी पर लागू नहीं होती है. चूंकि पूरी आबादी में सभी का टेस्ट करना संभव नहीं है, इसलिए सेरोलॉजिकल स्टडी के जरिए एक अनुमान लग जाता है कि किस स्तर पर कोरोना महामारी फऐल चुकी है.

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एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि घनी आबादी वाले कई क्षेत्रों में किए गए सर्वेक्षण में केवल 22.86 फीसदी लोग संक्रमित पाए गए. इससे पता चलता है कि सरकार द्वारा कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में सफल हुई है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि सरकार द्वारा चलाए गए प्रयासों जैसे कि लॉकडाउन, प्रभावी रोकथाम, सर्विलांस के उपाय, कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और ट्रैकिंग, साथ ही नागरिकों के सहयोग की वजह से दिल्ली को फायदा हुआ.

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क्या ऐसा सर्वे अन्य राज्यों में भी किया गया है?

अप्रैल में, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने 21 राज्यों के 83 जिलों में एक पायलट सेरोसेर्वे कराया था. इसके प्रारंभिक परिणाम में इस बात का संकेत मिला कि अतीत में संक्रमित होने वाली सामान्य आबादी की तुलना में ये 0.73 फीसदी था, शहरी क्षेत्रों में ये 1.09 फीसदी के उच्च स्तर पर दिखा. ICMR ने कहा है कि वह जल्द ही देश भर में एक फॉलोअप सेरोसर्वे लॉन्च करेगी.

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अब आगे क्या?

सरकार का कहना है कि सेरोलॉजिकल सर्वे के परिणाम बताते हैं कि जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण अनुपात अभी भी कोरोना वायरस संक्रमण के प्रति असुरक्षित है. सरकार का कहना है कि कोरोना को पूरी तरह से काबू में करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनने, हाथ धोने, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचने जैसे उपायों का सख्ती से पालन करने की जरूरत है.
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आपको बता दें कि इससे पहले एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी कह चुके हैं कि दिल्ली में कोविड का कर्व फ्लैट हो रहा है और संभव है कि यहां कोरोना का पीक (शीर्ष स्तर) बीत चुका हो.

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डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा, 'हालांकि कोरोना के चरम सीमा को पार करने का मतलब ये नहीं है कि आप अपनी सुरक्षा में किसी तरह की कमी करें. हमें अभी भी बहुत सचेत रहने की जरूरत है. अगर आप सोशल डिस्टेंसिंग या मास्क पहनने में किसी तरह की कोई लापरवाही करते हैं तो कोरोना वायरस की लहर फिर से आ सकती है.'

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