रेड्डी बंधुओं की जितनी अहमियत कर्नाटक की राजनीति में है, उससे कहीं ज्यादा अहमियत आंध्र प्रदेश की राजनीति में है. ये गिरफ्तारी भले ही जनार्दन रेड्डी और श्रीनिवास रेड्डी की हुई है, लेकिन इस गिरफ्तारी से आंध्र की राजनीति में एक अलग सी खलबली मचनेवाली है.
माना जाता है कि रेड्डी बंधु वाईएसआर के बेहद करीबी थे. और उनकी मौत के बाद जगन रेड्डी को इनका ही समर्थन मिला है.
आरोप लगे हैं कि वाई एस राजशेखर रेड्डी के शासनकाल 2004 से 2009 तक रेड्डी बंधुओं को खनन की पूरी छूट मिली थी. इस दौरान रेड्डी बंधुओं ने तमाम नियम कायदों को ताक पर रखकर खनन का काम किया.
आरोप ये भी हैं कि रेड्डी बंधुओं ने अपने फायदे के लिए राज्य की सीमा का भी ख्याल नहीं रखा. वैसे तो उनकी कंपनी आंध्र प्रदेश में है, लेकिन वो खनन कर्नाटक से भी किया करते थे.
सीबीआई को इसकी जानकारी तब मिली, जब उसने खनीज की जांच की. जांच में ये पाया गया कि रेड्डी बंधु जिस खनीज को ओबलापुरम का बताते थे, असल में उसके गुण बेल्लारी के खनीज से मिलते-जुलते थे. लेकिन इन गड़बड़झालों के बाद भी रेड्डी बंधु पर नकेल नहीं कसा जा सका क्योंकि उन्हें वाईएसआर का समर्थन मिला हुआ था.
उनकी मौत के बाद और विपक्ष के दबाव में रोसैया ने अवैध खनन पर सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. लेकिन रेड्डी बंधुओं ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट से इस जांच पर स्टे ले लिया. करीब एक साल तक स्टे के बाद आखिर रेड्डी बंधुओं के खिलाफ जांच शुरू हुई. जाहिर है, इस गिरफ्तारी के बाद अब आंध्र की राजनीति के कई बड़े चेहरे भी घेरे में आ सकते हैं.
कर्नाटक की राजनीति में रेड्डी बंधुओं की मौजूदगी बेहद खास और काफी विवादों भरी रही है. जनार्दन रेड्डी राज्य की बेहद अहम ओबलापुरम खनन कंपनी के मालिक हैं.
श्रीनिवास रेड्डी इसी कंपनी में डायरेक्टर के पद पर तैनात हैं. रेड्डी भाइयों पर खनन के कारोबार में गहरे आरोप लगते रहे हैं. फिर भी राज्य की राजनीति में इनका दखल कभी कम नहीं रहा. जनार्दन रेड्डी और श्रीनिवास रेड्डी कर्नाटक सरकार में मंत्री रह चुके हैं.