पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) से बाहर हो गए 40 लाख लोगों के लिए आवाज उठा रही हैं और केंद्र सरकार पर जुबानी हमले भी कर रही हैं. लेकिन विडंबना यह है कि इसके लिए एक बड़ी वजह खुद ममता बनर्जी सरकार भी रही है.
असल में, एनआरसी के कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला और उनकी टीम के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जमा दस्तावेजों के मुताबिक सबसे ज्यादा लंबित मामले पश्चिम बंगाल के ही हैं.
बंगाल के मुकाबले अन्य राज्यों ने लंबित मामलों पर जवाब देने में सक्रियता दिखाई है. असम सरकार ने पश्चिम बंगाल को कुल 1,14,971 हजार मामले भेजे थे, लेकिन इसमें से पश्चिम बंगाल सरकार ने सिर्फ 7,438 के बारे में पुष्टि की कि वे उनके राज्य से गए लोग हैं या नहीं. बाकी 1,07,541 मामले अब भी लंबित हैं.
इस तरह पश्चिम बंगाल सरकार ने सिर्फ 6.46 फीसदी के बारे में जानकारी दी है. इसकी तुलना में दमन और दीव ने 100 फीसदी और दिल्ली ने 7.81 फीसदी मामलों में जानकारी वापस भेजी है.
इसकी वजह से लाखों लोगों की पहचान पुख्ता करने में निश्चित रूप से देरी हुई है. ऐसे तमाम मामले उन महिलाओं के हैं जो पली-बढ़ी तो पश्चिम बंगाल में हैं, लेकिन उनकी शादी असम में हुई है.
इस बारे में आजतक ने पश्चिम बंगाल सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारियों से सवाल किया, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया. इन लंबित मामलों को निपटाने में देरी क्यों हुई, यह साफ नहीं है. लेकिन जब इस मसले पर जमकर राजनीति हो रही हो, ममता बनर्जी लगातार केंद्र सरकार पर निशाना साध रही हैं, तो उन्हें तथ्यों की जानकारी देनी चाहिए कि आखिर एक लाख से ज्यादा लोगों के बारे में असम को जानकारी क्यों नहीं भेजी गई.
गौरतलब है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) का अंतिम ड्राफ्ट जारी हो गया है. इसके मुताबिक करीब 40 लाख लोगों की नागरिकता अवैध घोषित कर दी गई है.