सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कांग्रेस नेता सज्जन कुमार की याचिका खारिज कर दी. याचिका में उन्होंने 1984 के विरोधी सिख दंगा मामले में अपने ऊपर लगे आरोपों को रद्द करने की मांग की थी.
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि सज्जन कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनके खिलाफ हत्या के ऐसे कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं हैं. लेकिन उनकी दलील के बावजूद न्यायमूर्ति एक. के. पटनायक और न्यायमूर्ति वी. गोपाल गौड़ा की पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया.
दंगा पीड़ितों की तरफ पेश हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के सुल्तानपुरी इलाके में दंगा सज्जन कुमार के आदेश पर हुआ था.
दवे ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सज्जन कुमार ने ही दंगाइयों का नेतृत्व किया था और उन्हें भड़काया था.
अदालत ने सज्जन कुमार की उस दलील को स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने सुल्तानपुरी इलाके में 1 नवंबर 1984 को दंगा भड़काने के आरोप में 153-ए के तहत सुनवाई का सामना कर चुके हैं और उसी इलाके में उसी आरोप के लिए दोबारा सुनवाई अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 300 की बंदिश का उल्लंघन होगा.
सज्जन कुमार ने दिल्ली हाई कोर्ट के 16 जुलाई के आदेश को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने आरोप तय करने को दी गई उनकी चुनौती को खारिज कर दिया था और कहा था कि वे अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 300 के तहत संरक्षण नहीं पा सकते. इस धारा के तहत कहा गया है कि एक अपराध के लिए सजा पाने या बरी होने वाले किसी व्यक्ति को दोबारा उसी आरोप में सुनवाई का सामना नहीं करना पड़ेगा.