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आजतक पर हमले की राजनीतिक पार्टियों ने की निंदा

एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने आजतक के सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे के दफ्तर पर हमले की निंदा करते हुए इसे मीडिया की आवाज दबाने का प्रयास बताया है.

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एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने आजतक के सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे के दफ्तर पर हमले की निंदा करते हुए इसे मीडिया की आवाज दबाने का प्रयास बताया है. गिल्ड ने एक बयान में कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता में भरोसा रखने वाले सभी संगठनों को ऐसे कायराना और असभ्‍य आचरण का विरोध करना चाहिए. न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने भी इस घटना की निंदा की है.

आजतक के दफ्तर पर आरएसएस कार्यकर्ताओं के हमले को राजनीतिक दलों ने लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. सबका आरएसएस से एक ही सवाल है कि क्या विरोध जताने का उसे लोकतांत्रिक तरीका नहीं आता.

कुछ पसंद न आए, तो उसके विरोध में जमकर तोड़फोड़ और मारपीट कर देना यह किस अनुशासन और लोकतंत्र का हिस्सा है. यह सवाल इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि तथाकथित अनुशासन का लबादा ओढ़नेवाले आरएसएस के कार्यकर्ताओं को जब एक खबर पसंद नहीं आई, तो उन्होंने आजतक के दफ्तर पर हमला कर दिया. पुलिस ने इस मामले में 9 लोगों को गिरफ्तार किया है.

शुक्रवार शाम को आरएसएस के कार्यकर्ता हाथों में पोस्टर और डंडे लिए टीवी टुडे नेटवर्क के दफ्तर में तोड़फोड़ करने पहुंचे थे. सब के सब पहुंचे थे आजतक के सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे की एक खबर का विरोध करने के लिए. हजार से ज्यादा की तादाद में भीड़ ने प्रदर्शन के बहाने हमला बोला और जमकर तोड़फोड़ की.

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शाम के करीब पांच बजे का वक्त था. आरएसएस के कार्यकर्ता वीडियोकॉन टावर के आसपास जमा होने लगे. थोड़ी देर में ही नारेबाजी शुरू हुई. कार्यकर्ता दफ्तर के अंदर घुसने की कोशिश करने लगे. पहले से पहुंची पुलिस ने उन लोगों को रोकने की कोशिश की, तो देखते ही देखते ये भीड़ हिंसक हो गई और जिसे जो मिला, वही लेकर तोड़फोड़ करने लगे.{mospagebreak}दरवाजों से लेकर कॉफी शॉप तक, प्रदर्शनकारियों ने सब तहस-नहस कर डाला. बेकाबू संघ कार्यकर्ताओं को पहले समझाने की कोशिश हुई, फिर उन्हें रोकने की, लेकिन इसके बाद भी जब ये नहीं माने, तो आखिरकार पुलिस को भी लाठियां भांजनी पड़ीं.

दरअसल, आरएसएस के कार्यकर्ता टीवी टुडे के चेनल हेडलाइंस टुडे की खबर पर भड़के हुए थे. हेडलाइंस टुडे ने उग्र हिंदूवाद के बारे में एक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया था. संघ के कार्यकर्ता इसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने आए थे.

प्रदर्शन के नाम पर ये मीडिया की आजादी पर तानाशाही मानसिकता वाले लोगों का हमला है. सवाल ये है कि लोकतंत्र में विरोध का ये कैसा तरीका है. आखिर ये कैसी तानाशाही है, जो मीडिया की अभिव्यक्ति को भी खत्म करने पर आमादा है.

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