भीमा-कोरेगांव लड़ाई की सालगिरह पर भड़की चिंगारी पूरे महाराष्ट्र में फैल रही है. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई थी, जिसके बाद पूरे राज्य में धीरे-धीरे हिंसा पुणे के बाद मुंबई तक फैली. राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं. वहीं इस मामले में कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बीजेपी सरकार पर हिंसा में हाथ होने का आरोप लगा रहा है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि कोरे गांव में जो घटना हुई है, उसको लेकर उसकी जांच लोकल ना करवाकर सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज करवानी चाहिए था. खड़गे ने कहा कि प्रधानमंत्री को भी सदन में आकर इस मुद्दे पर पक्ष रखना चाहिए था.
मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि उन्होंने महाराष्ट्र का मुद्दा उठाया, इस मुद्दे पर हम चर्चा चाहते थे. खड़गे के अनुसार यह दलित स्वाभिमान का प्रश्न था. जिस ढंग से कोरेगांव में पहले से यह समारोह होता रहा है. खड़गे के अनुसार पहले दलितों को शस्त्र धारण करने का, विद्या अभ्यास करने का, व्यापार करने का अधिकार नहीं था. उनसे बस सेवा करवाई जाती थी. ऐसा ही चलता रहा था, लेकिन शिवाजी के जमाने में दलितों को आर्मी में भर्ती किया गया था. हालांकि बाद में पेशवा के जमाने में बंद कर दिया गया था.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने आगे कहा कि इस चलन के खिलाफ दलितों ने विरोध किया, विद्रोह किया, लेकिन कुछ नहीं हो पाया था. जब ब्रिटिश सरकार में फिर से दलितों को आर्मी में शामिल करने का मौका मिला. तब 500 से अधिक दलित लड़ाई में मारे गए थे, लेकिन जीत हासिल करने के बाद. स्वाभिमान को व्यक्त करने के लिए हमेशा से यह प्रोग्राम होता रहा है. राज्य सरकार को मालूम था कि हर साल 3-4 लाख लोग इकट्ठा होते हैं. ऐसे में वहां पर पुलिस की व्यवस्था होनी चाहिए थी और सब को सुरक्षा देनी चाहिए थी. इसमें महाराष्ट्र सरकार फेल हुई है.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली कि किसी गांव के लोगों ने आकर कट्टर हिंदूवादी मराठा से झगड़ा करने की कोशिश की. यह जो साजिश चल रही है यह RSS और BJP के लोग कर रहे हैं. वे लोगों को तोड़ने, समाज को तोड़ने और एक ऐसा वातावरण तैयार करने में लगे हैं कि सिर्फ वही लोग देश भक्त हैं. लोगों में फूट डालने का कोशिश कर रहे हैं. यह सवाल लोकसभा में उठाया था और कहा था सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज को इसकी जांच दीजिए. किसने भडकाया यह पता चलना चाहिए. प्रधानमंत्री को आकर सदन में बयान देना चाहिए. प्रधानमंत्री सदन के बाहर बोलते हैं, लेकिन सदन में कभी नहीं बोलते हैं.
कब कैसे फैली हिंसा
भीमा कोरेगांव की लड़ाई की याद में हर साल नए साल के मौके पर महाराष्ट्र और अन्य जगहों से हजारों की संख्या में पुणे के परने गांव में दलित पहुंचते हैं, यहीं वो जयस्तंभ स्थित है जिसे अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. पुलिस के अनुसार विवाद 29 दिसंबर की रात से शुरू हुआ था. सूत्रों के अनुसार पुलिस की शुरुआती जांच से पता चला है कि 29 दिसंबर को वाडेबुडरुक गांव में गणेश महार की समाधि को राइट विंग द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया था. दलित गणेश महार ने ही छत्रपति शिवाजी के बेटे सांभाजी का अंतिम संस्कार किया था. स्थानीय पुलिस ने इस विवाद को हल कर लिया था. हालांकि इस संबंध में 1 जनवरी को कुछ लोगों ने प्रदर्शन मार्च किया. पुलिस को अभी उन लोगों की जानकारी हासिल नहीं हुई है. वहीं शुरुआती जांच में यह पता लगा है कि भगवे झंडे के साथ भी मार्च उसी समय किया गया जब दलितों का जश्न चल रहा था. वहीं जब दोनों दल आमने सामने हुए तो पत्थरबाजी हुई और हिंसक झड़पों की शुरुआत हुई. पुलिस उस ग्रुप के नेताओं का पता लगवाने में जुटी है, जिन्होंने भगवे झंडे का साथ मार्च किया और भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा में जिनका हाथ रहा.
आपको बता दें कि पुणे हिंसा की आग मुंबई तक पहुंच गई है. पुणे में हुई जातीय हिंसा का असर महाराष्ट्र के अन्य इलाकों में भी देखा जा रहा है. मंगलवार को मुंबई के अलावा, हड़पसर व फुरसुंगी में सरकारी और प्राइवेट बसों पर पथराव किया गया. लगभग 134 महाराष्ट्र परिवहन की बसों को नुकसान पहुंचा है.