संविधान संशोधन (126वां) बिल मंगलवार को लोकसभा से पास हो गया. बिल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों के आरक्षण को दस वर्ष बढ़ाने का प्रावधान है. फिलहाल आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा है. बिल में इसे 25 जनवरी, 2030 तक बढ़ाने का प्रावधान है. वहीं संसद में एंग्लो इंडियन कोटे को भी खत्म करने का बिल में प्रावधान है. बता दें कि 70 साल से इस समुदाय के दो सदस्य सदन में प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं.
बिल को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पेश किया. रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 296 एंग्लो इंडियन हैं. उन्होंने कहा कि एंग्लो इंडियन के लिए एक प्रावधान भी है, लेकिन आज इस बिल में इसे नहीं लाया गया. हालांकि कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी और बीजेडी के सांसदों ने विरोध किया और कहा कि मंत्री का डेटा घोर अतिशयोक्ति है.
कांग्रेस की सांसद हिबी ईडन ने एससी/एसटी समुदायों के लिए आरक्षण के विस्तार का समर्थन तो किया लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि मंत्री ने सदन को गुमराह किया है. अकेले मेरे निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 20,000 से अधिक एंग्लो इंडियन हैं.
TMC का विरोध
तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि यह असंवैधानिक प्रवृत्ति का विधेयक है. इसमें संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन किया गया है जो सभी को समानता का अधिकार देता है. उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक के माध्यम से सदन में रातों-रात एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों का प्रतिनिधित्व समाप्त किया जा रहा है जो ठीक नहीं होगा.
बिल में क्या है
बिल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 10 साल तक बढ़ाने का प्रावधान है. एंग्लो-इंडियन समुदाय, एससी, एसटी को दिए जाने वाला आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा है. आगे के दस वर्षों के लिए, यानी 25 जनवरी, 2030 तक सीटों के आरक्षण को बढ़ाने के लिए विधेयक है.
आरक्षण को आर्टिकल 334 में शामिल किया गया है. आर्टिकल 334 कहता है कि एंग्लो-इंडियन, एससी और एसटी को दिए जाना वाला आरक्षण 40 साल बाद खत्म हो जाएगा. इस खंड को 1949 में शामिल किया गया था. 40 वर्षों के बाद इसे 10 वर्षों के विस्तार के साथ संशोधित किया जा रहा है.