दिल्ली उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया है कि किसी आरोपी की उम्र का पता लगाने के लिए उसकी हड्डियों की जांच किसी एकल सदस्य द्वारा नहीं, बल्कि मेडिकल बोर्ड द्वारा की जानी चाहिए. इसने निचली अदालत से एक हत्यारोपी के आवेदन पर नए सिरे से फैसला करने को कहा कि जिसने खुद के किशोर होने का दावा किया है.
आवेदन पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने कहा कि ‘‘किशोर न्याय कानून कहता है कि हड्डियों की जांच के आधार पर आरोपी की उम्र का पता लगाने के लिए, रिपोर्ट यथायोग्य रूप से गठित मेडिकल बोर्ड से आनी चाहिए, न कि एकल सदस्यीय टीम से जो अकेले सही राय देने में सक्षम नहीं हो सकती.’
उच्च न्यायालय ने कहा कि इसलिए मामला इस निर्देश के साथ निचली अदालत को वापस भेजा जाता है कि वह यथायोग्य रूप से गठित सरकारी अस्पताल के मेडिकल बोर्ड से ताजा रिपोर्ट मांगे जिसमें कम से कम एक दंत विशेषज्ञ, एक जनरल फिजीशियन और एक रेडियोलॉजिस्ट शामिल हो.
अदालत ने यह आदेश हत्यारोपी की याचिका पर दिया. उसने अपनी याचिका खारिज किए जाने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी जिसने उसे किशोर न्याय कानून के तहत राहत देने से इनकार कर दिया था और उसके स्कूल प्रमाण पत्र में दर्ज उम्र को नहीं माना था. इस प्रमाण पत्र के अनुसार वह नाबालिग है.
निचली अदालत ने 12 अक्तूबर 2010 को उसके स्कूल प्रमाण पत्र को खारिज करते हुए उसकी हड्डियों की जांच का आदेश दिया था, ताकि उसकी उम्र के बारे में पता लगाया जा सके. हड्डियों से संबंधित जांच में वह 20 साल का पाया गया था.