राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मंगलवार को कहा कि कई राज्यों में होने वाली फर्जी मुठभेड़ों में से ज्यादातर पुलिस की होती हैं, सेना की नहीं होती.
आयोग के सदस्य सत्यब्रत पाल ने कहा, 'अफस्पा (सशस्त्र बल विशेष शक्तियां कानून) के कारण बड़े पैमाने पर नाराजगी पैदा हुई है और यह धारणा है कि इसे वापस लेने, संशोधित करने से फर्जी मुठभेड़ों पर अंकुश लगेगा. लेकिन हमारी जांच में उभरकर आया है कि इस प्रकार की हत्याएं बड़े पैमाने पर राज्यों की पुलिस द्वारा की जाती हैं और पुलिस को अपनी राज्य सरकारों का संरक्षण मिला होता है.'
उन्होंने कहा, 'पुलिस बल को अनुशासित होना चाहिए और दोषी पुलिस अधिकारियों को दंड देकर ही इस प्रकार के मामलों में कमी लाई जा सकती है.'
सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का जायजा लेने और फर्जी मुठभेड़ों की शिकायतों को देखने के लिए एनएचआरसी ने हाल ही में कई राज्यों का दौरा किया और मणिपुर का भी दौरा किया. आयोग ने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन पाया.
एनएचआरसी ने कहा कि उसने 2005 से 2010 के बीच हुई 44 फर्जी मुठभेड़ों की शिकायतों की जांच की, जिसमें पाया कि राज्य सरकार ने केवल तीन मामलों में वित्तीय सहायता दी. एनएचआरसी के अनुसार फर्जी मुठभेड़ के मामलों में असम और मणिपुर में हालत चिंताजनक है, बाकी अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में हालात सामान्य हैं.