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माओवादियों को लेना होगा नेपाल से सबकः माले

वामपंथ को नये सिरे से व्यवस्थित करने की वकालत करते हुए भाकपा (माले) लिबरेशन ने कहा है कि माओवादियों के पास ज्वलंत मुद्दों से निपटने के लिए सशस्त्र लडाई के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, ऐसे में उन्हें नेपाल के माओवादियों की स्थिति से सबक लेना होगा.

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वामपंथ को नये सिरे से व्यवस्थित करने की वकालत करते हुए भाकपा (माले) लिबरेशन ने कहा है कि माओवादियों के पास ज्वलंत मुद्दों से निपटने के लिए सशस्त्र लडाई के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, ऐसे में उन्हें नेपाल के माओवादियों की स्थिति से सबक लेना होगा.

भाकपा माले के एक नेता ने कहा, ‘भारत में वाम राजनीति नया रूख अख्तियार करती नजर आ रही है. माकपा के नेतृत्व वाली मार्क्‍सवादी उत्कृष्टता और बुजरुआ प्रतिष्ठा की राजनीति जो समझौते और आत्मसमर्पण बनाम शासक वर्ग पर केन्द्रित है, बंगाल की धरती पर धराशायी हो गयी है.’ उनका कहना था कि कुछ लोग नेपाल में माओवादियों के अनुभव की मिसाल देते हुए कहते हैं कि भारत में भी ऐसा हो पाएगा. लेकिन नेपाल और भारत के परिप्रेक्ष्य एकदम अलग हैं. नेपाल में संवैधानिक गणराज्य स्थापित करने के लिए पूरा संघर्ष हुआ लेकिन भारत इस स्थिति से कहीं आगे निकल गया है.

उन्होंने कहा कि स्वाभाविक रूप से इसका पूरे भारत पर असर होगा. शक्तिशाली संघर्ष और लोकतांत्रिक धरातल पर पहल के जरिए ही वाम की खोई हुई धरती को फिर से हासिल किया जा सकता है.

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पार्टी नेता ने कहा, ‘वामपंथ के पुनरोत्थान के लिए हमें नये सिरे से एकजुट होना पडेगा, जन आंदोलन के आधार पर संघर्ष के लिए एकजुटता के नये मॉडल को अपनाना होगा. यह देखना बाकी है कि ये नये हालात कैसे पैदा होते हैं. भविष्य ही हमें बताएगा कि माओवादी भी एक आयामी सिद्धांत और व्यवहार के अपने दायरे से बाहर निकलकर वामपंथ के इस नये पुनःएकत्रीकरण में घटक या हिस्सेदार के रूप में अपने आपको नये सिरे से स्थापित करेंगे या नहीं.

{mospagebreak}माले ने कहा कि नेपाल में भी शाही शासन से संवैधानिक गणराज्य तक की संक्रमण की प्रक्रिया काफी उत्पीड़न भरी रही और माओवादी नये सिरे से जन आंदोलनों के जरिए अपनी ताकत को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत के माओवादी नेपाल के अनुभव से सीखने को तैयार नहीं हैं और उन्होंने नेपाली कामरेड के प्रयोगों को पहले ही नकार दिया है.

पार्टी ने कहा कि शासक वर्ग के राजनीतिक आधिपत्य को समाप्त करने के लिए कामकाजी वर्ग को वैकल्पिक एवं स्वतंत्र राजनीतिक ताकत के रूप में उभरना होगा. यह कोई छोटा और आसान रास्ता नहीं है. ‘क्या भारतीय माओवादी इसे महसूस करेंगे?’

माले के मुताबिक तमाम ज्वलंत मुद्दों पर सशस्त्र जरिये के अलावा माओवादियों के पास संघर्ष का और कोई रास्ता नहीं है. जब राजनीति की बात हो या चुनाव की बात हो तो माओवादियों का उसमें हस्तक्षेप का कोई स्वतंत्र एजेंडा नहीं है और हर जगह वे प्रभावशाली पार्टियों के हाथों इस्तेमाल होते हैं.

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पार्टी ने कहा कि माओवादियों की सशस्त्र कार्रवाई में भी ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी अन्य राजनीतिक दल के कार्यकर्ता या नेताओं या आम लोगों की हत्याएं की गयीं, बसों और ट्रेनों, रेलवे स्टेशनों पर हमले किये गये, जिससे जनता की परेशानी और बढी.

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