महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार के खिलाफ शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. तीनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन फाइल कर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के उस आदेश को रद्द करने की मांग की, जिसमें उन्होंने सरकार बनाने के लिए देवेंद्र फडणवीस को आमंत्रित किया था.
अब आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली तीन न्यायमूर्तियों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. इस बेंच में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल हैं.
अब यहां सवाल यह है कि आखिर शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी किस कानून के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं? क्या आम आदमी भी ऐसे शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी की तरह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं?
मौलिक अधिकारों का हनन, अनुच्छेद 32
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट प्रदीप कुमार राय का कहना है कि सभी नागरिकों को संविधान में मौलिक अधिकार दिए गए हैं. अगर किसी के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आ सकता है और रिट पिटीशन फाइल कर सकता है.
उन्होंने यह भी बताया कि यह अधिकार जूरिस्टिक पर्सन यानी कंपनी या किसी संगठन को नहीं होता है. अगर कोई जूरिस्टिक पर्सन अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट जाता है, तो उसकी याचिका खारिज हो सकती है. इसकी वजह यह है कि जूरिस्टिक पर्सन को नेचुरल पर्सन की तरह मौलिक अधिकार नहीं होते हैं. जूरिस्टिक पर्सन को सिर्फ कानूनी अधिकार होते हैं.
एक सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य प्रदीप कुमार राय ने बताया कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने अनुच्छेद 14 के तहत मिले मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को आधार बनाकर अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन दायर की है. यह इस तरह का पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं.
उन्होंने बताया कि अभी हाल ही में कर्नाटक में भी सरकार के गठन को लेकर काफी बवाल हुआ था जिसके बाद इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट प्रदीप कुमार राय ने यह भी बताया कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी व्यक्तियों को कानून की निगाह में समान माना गया है और कानून का समान संरक्षण प्रदान किया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि सभी पर एक समान कानून लागू होंगे. किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. अगर किसी के साथ भेदभाव किया जाता है तो यह उस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन माना जाता है.
उन्होंने बताया कि अगर किसी के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह व्यक्ति अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. उन्होंने बताया कि सिर्फ मौलिक अधिकारों के हनन पर ही अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट जाया जा सकता है. इसके अलावा मौलिक अधिकारों के हनन होने पर अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट का भी रुख किया जा सकता है.