कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में विश्वास मत खो दिया, जिसके चलते कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार गिर गई. जेडीएस के 3 और कांग्रेस के 13 विधायकों की बगावत के चलते राजनीतिक संकट पैदा हुआ और आखिरकार कुमारस्वामी को सत्ता गंवानी पड़ी है. यह सच है कि विधायकों के इस्तीफे के चलते गठबंधन सरकार चली गई. हालांकि कई और वजह भी हैं जिनके चलते कुमारस्वामी को यह दिन देखना पड़ा है.
त्रिशंकु विधानसभा
कर्नाटक के 2018 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. प्रदेश की कुल 224 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जो बहुमत से 9 सीटें कम थी. कांग्रेस को 78 सीटें (दो सीटें उपचुनाव में जीतने के बाद) और जेडीएस को 37 सीटें मिली थीं. इसके बाद बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर कुमारस्वामी सरकार बनवाने का फैसला किया.
कांग्रेस ने यह दांव एक साल के बाद होने वाले लोकसभा के लिए खेला था. वहीं, 12 साल से सत्ता से बाहर रही जेडीएस ने मौका का फायदा उठाया. यही वजह रही की 2018 में सरकार बनाने के बाद से लगातार कुमारस्वामी सरकार डगमगाती रही और 15 महीने के बाद उसे सत्ता गवांनी पड़ी.
कांग्रेस-जेडीएस का बेमेल गठबंधन
कांग्रेस का राजनीतिक आधार पूरे कर्नाटक में है जबकि जेडीएस की पकड़ ओल्ड मैसूर इलाके के जिलों में है. कांग्रेस राज्य के सभी जाति और धर्मों के वोट पर पकड़ रखती है. वहीं, जेडीएस वोक्कालिगा समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है, जो कि कर्नाटक में प्रमुख जमींदार जाति है. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे थे.
दोनों राजनीतिक दल एक दूसरे के विरोधी रहे हैं लेकिन धर्मनिरपेक्षता ही दुहाई देते हुए चुनाव के बाद मजबूरी में गठबंधन कर सरकार बनाया था. दशकों से एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले दोनों पार्टियों के नेताओं को अचानक समझौता करने के लिए कहा गया था. इसी का नतीजा है कि लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टी के नेता और कार्यकर्ता जमीन पर एकजुट नहीं रह सके. यही वजह है कि कांग्रेस-जेडीएस का बेमेल गठबंधन अपना लंबा सफर तय नहीं कर सका.
आंतरिक विरोध
कर्नाटक के कांग्रेस प्रभारी और महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पार्टी आलाकमान की सहमति से जेडीएस को समर्थन देने की घोषणा की. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को विश्वास में नहीं लिया गया. खासतौर से पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को, जो देवगौड़ा परिवार से नाता तोड़कर कांग्रेस में आए थे. कांग्रेस आलाकमान ने जेडीएस के साथ जाने का मन बना लिया था, जिसके चलते उस समय सिद्धारमैया के पास समर्थन करने के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा था.
यही वजह है कि कांग्रेस के जिन 13 विधायकों ने बगावत कर इस्तीफ दिए हैं, इनमें ज्यादातर सिद्धारमैया के करीबी हैं. इतना ही नहीं कुमारस्वामी ने भी कई बार सिद्धारमैया पर सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया है. वहीं, इस्तीफा देने वाले जेडीएस के 3 विधायकों ने सारा आरोप सिद्धारमैया पर मढ़ा था. इसके अंतरविरोध को समझा जा सकता है.
2019 का नतीजा बना बगावत की वजह
कर्नाटक में 90 के दशक से लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीएस के अच्छे प्रदर्शन से कांग्रेस पिछड़ती गई. इस बार के लोकसभा चुनाव में राज्य की सत्ता पर कांग्रेस-जेडीएस के विराजमान होने के बाद भी दोनों पार्टियां जीत नहीं सकी. जबकि प्रदेश की कुल 28 लोकसभा सीटों में से गठबंधन ने 22 सीटें जीतने की उम्मीद लगा रखी थी. लेकिन 23 मई को जब नतीजे आया तो सारे अरमान चूर हो गए. बीजेपी 25, कांग्रेस 2, जेडीएस और निर्दलीय एक-एक सीट जीतने में सफल रहे. कर्नाटक में बीजेपी से लड़ने के बजाय कांग्रेस और जेडीएस एक दूसरे को हराने पर लगे रहे. लोकसभा चुनाव की हार ने गठबंधन की स्थिरता पर संदेह का बीज बो दिया और कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों ने आखिरकर विद्रोह कर दिया.
बेंगलुरु की उपेक्षा
कर्नाटक का करीब आधा राजस्व राजधानी बेंगलुरु से आता है. इस बेल्ट में 28 विधानसभा सीटों (विधानसभा की कुल ताकत का 10 फीसदी से अधिक) हैं. बेंगलुरू में प्रौद्योगिकी कंपनियों के विकास के कारण राज्य में काफी अहमियत है. जेडीएस का ग्रामीण इलाके में आधार होने के चलते कुमारस्वामी ने उस पर ध्यान केंद्रित कर रखा था, जिसके चलते बेंगलुरु की उपेक्षा करने का आरोप लगा. बेंगलुरु के स्थानीय विधायक और बेंगलुरु डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन एसटी सोमशेखर, पूर्व गृह मंत्री रामालिंगा रेड्डी और बैराठी बसवाराजा ने बगावती रुख अख्तियार कर लिया.