प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में चेताया कि अगर वह भारत के खिलाफ दहशतगर्दी की गतिविधियों के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल को नहीं रोकेगा, तो उसके साथ बातचीत का सिलसिला बहुत आगे नहीं बढ़ पाएगा.
प्रधानमंत्री ने देश के 64वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लगातार सातवें वर्ष ध्वजारोहण के बाद राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, ‘‘हम अपने पड़ोसी देशों से अमन-चैन और खुशहाली चाहते हैं. पड़ोसी देशों से हमारे जो भी मतभेद हैं, उन्हें हम बातचीत के जरिये हल करना चाहते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक पाकिस्तान का ताल्लुक है कि हम उससे उम्मीद करते हैं कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ दहशतगर्दी की गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा. पाकिस्तान के साथ हमारी जो भी बातचीत हुई है, उसमें हम इस बात पर जोर देते रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता है तो बातचीत का कोई भी सिलसिला बहुत आगे नहीं बढ़ पाएगा.’’ इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर, माओवादियों और पूर्वोत्तर के उन व्यक्तियों तथा समूहों से बातचीत की पेशकश भी की जो हिंसा का रास्ता त्यागने को तैयार हैं.{mospagebreak}प्रधानमंत्री ने इस बार अपने भाषण में किसी नये कार्यक्रम की घोषणा से इनकार करते हुए कहा, ‘‘आज हमें अपने मकसद तक पहुंचने के लिए बहुत से नये कार्यक्रम शुरू करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जरूरत इस बात की है कि जो योजनाएं हमने शुरू की हैं उन्हें हम अधिक प्रभावी ढंग से लागू करें जिनसे उनमें भ्रष्टाचार और सरकारी धन के दुरुपयोग की गुंजाइश न रहने पाए.’’
नक्सलवाद को आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर समस्या बताते हुए प्रधानमंत्री ने जहां एक ओर हिंसा का रास्ता छोड़कर सरकार से बातचीत के लिए नक्सलियों से अपील की वहीं यह चेतावनी भी दी कि हिंसा का रास्ता अख्तियार करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा. उन्होंने पिछले कुछ दिनों में नक्सली हमलों में शहीद हुए सुरक्षा बलों के जवानों और अधिकारियों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘‘मैंने पहले भी कहा है और आज फिर कहता हूं कि हमारी सरकार अपने हरेक नागरिक की सुरक्षा की जिम्मेदारी को पूरा करने में कोई कमी नहीं आने देगी. हिंसा का रास्ता अख्तियार करने वालों से हम सख्ती से निपटेंगे. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कानून का राज कायम रखने के लिए हम राज्य सरकारों की हर तरह से मदद करेंगे.’’{mospagebreak}मनमोहन सिंह ने कहा, ‘‘मैं एक बार फिर नक्सलवादियों से अपील करता हूं कि वे हिंसा का रास्ता छोड़कर सरकार के साथ बातचीत करें और सामाजिक तथा आर्थिक विकास तेज करने में हमारा साथ दें.’’ उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत में नक्सलवाद से निपटने के लिए जो सहमति बनी है उस पर केंद्र सरकार पूरी तरह अमल करेगी.
प्रधानमंत्री ने कहा कि नक्सलवाद की चुनौती का सामना करने के लिए केंद्र और राज्यों को पूरी तरह से एकजुट होकर काम करना होगा. केंद्र के सहयोग और राज्यों के आपसी तालमेल के बिना इस गंभीर समस्या से निपटना किसी भी राज्य के लिए बहुत मुश्किल है. उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी को चाहिए कि अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर इस चुनौती का सामना करें.’’
पिछले कुछ दिनों से उग्र आंदोलनों के शिकार जम्मू कश्मीर के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘कश्मीर भारत का एक अभिन्न हिस्सा है. इस दायरे के अंदर हम हर ऐसी बातचीत को आगे बढ़ाने को तैयार हैं, जिससे जम्मू-कश्मीर के आम आदमी की सत्ता में हिस्सेदारी और सहूलियतें बढ़ें.’’ उन्होंने कहा कि उनकी सरकार जम्मू-कश्मीर में हर उस व्यक्ति या गुट से बातचीत करने को तैयार है जो हिंसा का रास्ता छोड़ दे.{mospagebreak}मनमोहन सिंह ने कहा कि अभी हाल में जम्मू-कश्मीर में खून-खराबे में कुछ नौजवानों की जानें गयीं हैं, जिसका उन्हें बेहद अफसोस है. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘बरसों के खून-खराबे का अब अंत होना चाहिए. इस खून-खराबे से किसी को कुछ हासिल नहीं होने वाला.’’ उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र में इतनी उदारता है कि वह किसी भी हिस्से और गुट की मुश्किलों को हल कर सके. सिंह ने कहा कि अभी हाल ही में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक की है और इस सिलसिले को वह और आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे.
प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के निवासियों से कहा कि वे लोकतांत्रिक तौर-तरीकों से अपनी और देश की बेहतरी के लिए हमारे साथ मिलकर काम करें. पूर्वोत्तर राज्यों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उनके प्रति उनकी सरकार की विशेष जिम्मेदारी है जिसे निभाने की पूरी कोशिश की जा रही है. सिंह ने पूर्वोत्तर के सभी राजनीतिक दलों और गुटों से कहा कि प्रांत या कबीलों के नाम पर विवाद करने से हम सबका नुकसान ही होगा. उलझे हुए मुद्दों को सुलझाने के लिए सिर्फ बातचीत ही एक तरीका है. उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक केंद्र सरकार का सवाल है हम ऐसी हर बातचीत के सिलसिले को बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं, जिससे समस्याओं को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके.’’{mospagebreak}महंगाई के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि पिछले कुछ महीनों से आप बढ़ती हुई कीमतों से परेशान हैं. बढ़ती कीमतों का सबसे ज्यादा असर हमारी गरीब जनता पर पड़ता है, खासतौर पर जब अनाज, दाल, सब्जी जैसी रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम महंगाई को कम करने की हर मुमकिन कोशिश में लगे हैं और मुझे भरोसा है कि हमें कामयाबी भी मिलेगी.’’ प्रधानमंत्री उच्च शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्रों में दो अलग-अलग परिषदें गठित किये जाने के लिए सरकार द्वारा शीघ्र ही संसद में विधेयक लाने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए उपायों के तहत ऐसा किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि ये दो क्षेत्र सरकार के समाहित विकास की सुधार रणनीति का महत्वपूर्ण अंग हैं. मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया कि आजादी के बाद से इन दो क्षेत्रों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितनी जरूरत थी. उन्होंने कहा कि इन दोनों क्षेत्रों के लिए उनकी सरकार ने जो नयी योजनाएं पिछले छह सालों में शुरू की हैं उन्हें पूरी मेहनत और ईमानदारी से राज्य सरकारों के सहयोग से लागू किया जाता रहेगा.{mospagebreak}प्रधानमंत्री ने धर्म, प्रांत, जाति और भाषा के नाम पर समाज में फूट डालने की घटनाओं से बचने को कहा. उन्होंने कहा, ‘‘हमें सकंल्प करना चाहिए कि हम किसी भी हालत में अपने समाज को बंटने नहीं देंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘उदारता और सहनशीलता हमारी परंपरा के अंग रहे हैं हमें इस परंपरा को और मजबूत करने की जरूरत है. आर्थिक विकास के साथ-साथ हमारे समाज की संवेदनशीलता भी बढ़नी चाहिए. हमारी विचारधारा आधुनिक और प्रगतिशील होनी चाहिए.’’
प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि कृषि विकास के लक्ष्य पूरे नहीं किये जा सके हैं. उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ सालों में हमारे कृषि विकास की दर में काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन हम अपने लक्ष्य से आज भी दूर हैं. भारत के कृषि विकास की दर को चार प्रतिशत तक पहुंचा सकने में हमें और कड़ी मेहनत करने की जरूरत है.’’ उन्होंने कहा कि हरित क्रांति के बाद देश के कृषि क्षेत्र में कोई बड़ा तकनीकी बदलाव नहीं आया है. उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा पुख्ता करने के लिए हमें शुष्क भूमि कृषि की जरूरतों को ध्यान में रखना होगा और बदलते मौसम, पानी के गिरते स्तर, भूमि की घटती गुणवत्ता जैसी नयी चुनौतियों से भी निपटना होगा.{mospagebreak}प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की पहली हरित क्रांति में गेहूं के नये और ज्यादा उत्पादक बीजों की खोज में नोर्मन बोरलॉग का विशेष स्थान रहा है और एक बार फिर भारत की कृषि में उछाल लाने के लिए बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया की स्थापना की जा रही है.
धर्मनिरपेक्षता को लोकतंत्र की आधारशिला बताते हुए सिंह ने कहा कि सभी धर्मों को बराबर का दर्जा देना और उनका आदर करना हमारे देश और समाज की परंपरा रही है. उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारी संवैधानिक जिम्मेदारी भी है और उनकी सरकार सांप्रदायिक सद्भाव और शांति बनाने के लिए वचनबद्ध है.
जलवायु परितर्वन के संदर्भ में उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का सावधानी और किफायत से इस्तेमाल करने की अपील करते हुए कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने जंगलों, नदियों, पहाड़ों की सुरक्षा करना हमारी खास जिम्मेदारी है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि देश के बुनियादी ढांचे में काफी कमियां हैं जिनका हमारे आर्थिक विकास पर बहुत बुरा असर पड़ता है और इसे दूर किये जाने की जरूरत है.