बलात्कार पीड़िताओं के उपचार के लिए नए दिशानिर्देश तैयार करने वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 'टू फिंगर' टेस्ट को गैर कानूनी घोषित कर दिया है. इसके साथ ही अस्पतालों से कहा है कि वह पीड़ितों की फॉरेंसिक और मेडिकल जांच के लिए अलग कमरे बनाएं.
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर विशेषज्ञों की मदद से इस प्रकार के आपराधिक मामलों से निपटने के लिए ये राष्ट्रीय दिशानिर्देश तैयार किए हैं. ऐसी उम्मीद हैं कि ये दिशानिर्देश उस भयावह चिकित्सकीय प्रक्रिया को रोक देंगे, जिससे पीड़िता को यौन उत्पीड़न के बाद गुजरना पड़ता है.
डीएचआर ने यौन हिंसा के मानसिक-सामाजिक प्रभाव से निपटने के लिए भी एक नई नियमावली बनाई है. ये दिशानिर्देश उन स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को उपलब्ध कराए गए हैं, जो यौन हिंसा के पीड़ितों के साथ काम करते हैं. आईसीएमआर के महानिदेशक डा. वी एम कटोच ने नवंबर 2011 में लिंग एवं स्वास्थ्य पर विशेषज्ञों का एक समूह गठित किया था. इन दिशानिर्देशों को बनाने के लिए डा.एम ई खान (यौन हिंसा अनुसंधान पहल के सचिव) की अध्यक्षता में यह समूह बनाया गया था, ताकि जब एक बलात्कार पीड़िता प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में पहुंचती हैं तो इन निर्देशों का पालन किया जाए.
इसके बाद क्लीनिकल फॉरेंसिक मेडिकल यूनिट (सीएफएमयू) प्रभारी इंद्रजीत खांडेकर को ये दिशानिर्देश बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. ये दिशानिर्देश लोगों और विशेषज्ञों को उपलब्ध कराए गए और उनकी राय मांगी गई. इसके बाद 16 दिसंबर 2013 को इन्हें जारी किया गया. खांडेकर ने कहा, 'नए दिशानिर्देशों के अनुसार हर अस्पताल को बलात्कार के मामलों में मेडिको लीगल मामलों (एमएलसी) के लिए अलग से कमरा मुहैया कराना होगा और उनके पास दिशानिर्देशों में बताए गए आवश्यक उपकरण होना जरूरी है. दिशानिर्देशों के अनुसार पीडि़ताओं को वैकल्पिक कपड़े मुहैया कराने का प्रावधान होना चाहिए. इसके अलावा चिकित्सकों एवं अन्य चिकित्सा कर्मियों को इन दिशानिर्देशों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.'
खांडेकर ने बताया कि दिशानिर्देशों के अनुसार चिकित्सकीय जांच करते समय चिकित्सक के अलावा तीसरा व्यक्ति कमरे में नहीं होना चाहिए. यदि चिकित्सक पुरुष है तो एक महिला वहां होनी चाहिए. चिकित्सकों द्वारा किए जाने वाले टू फिंगर परीक्षण को गैर कानूनी बना दिया गया है और नियमावली में माना गया है कि यह वैज्ञानिक नहीं है.
चिकित्सकों से बलात्कार शब्द का इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है क्योंकि यह चिकित्सकीय नहीं अपितु कानूनी परिभाषा है. इससे पहले बलात्कार पीड़िताओं की जांच केवल पुलिस के कहने पर की जाती थी, लेकिन अब ऐसा आवश्यक नहीं है. यदि पीड़िता पहले अस्पताल के पास आती हैं तो प्राथमिकी के बिना भी चिकित्सकों को उसकी जांच करनी चाहिए. खांडेकर ने कहा कि दिशानिर्देशों के अनुसार चिकित्सकों को पीड़िता को जांच के तरीके और विभिन्न प्रक्रियाओं की जानकारी देनी होगी और जानकारी ऐसी भाषा में दी जानी चाहिए जिन्हें मरीज समझ सके.