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कैसे चीन ने 10 भारतीय सैनिकों की रिहाई तीन दिन तक लटकाए रखी?

10 भारतीय सैनिकों को सौंपने को लेकर चीनी सेना का कोई विरोध नहीं था, लेकिन वो भारतीयों को इंतजार कराती रही. सुरक्षा प्रतिष्ठान के कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह कुछ और नहीं, बल्कि माइंड गेम था, जो चीनी खेल रहे थे.

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भारत-चीन के बीच तनाव जारी (Photo- PTI)
भारत-चीन के बीच तनाव जारी (Photo- PTI)

  • 15 जून को भारत-चीन के बीच खूनी संघर्ष, 20 भारतीय सैनिक हुए शहीद
  • हताहत सैनिकों को ढूढ़ने के लिए दोनों पक्ष एक-दूसरे के क्षेत्र में घूमते पाए गए
  • भारतीय सैनिकों ने अगली सुबह एक दर्जन चीनी सैनिकों को दूसरे पक्ष को सौंपा

गलवान नदी घाटी में 15 जून को खूनी संघर्ष के बाद भारत और चीन, दोनों के सैनिक एक-दूसरे के दावे वाले क्षेत्र में घूमते पाए गए, जिससे अपने-अपने घायल सैनिकों को ढूंढा जा सके. इस दौरान कुछ सैनिकों के शवों की भी पहचान की गई. उस पूरी रात ये बेरोकटोक एक दूसरे के क्षेत्र में जाने वाला मामला था. दोनों तरफ से अपने हताहत सैनिकों की पहचान की जल्दी थी.

एक लंबी तलाश के बाद, भारतीय सैनिकों ने करीब एक दर्जन चीनी सैनिकों को अगली सुबह कुछ घंटों में ही दूसरे पक्ष को सौंप दिया. कुछ अकाउंट्स के मुताबिक, जो चीनी सैनिक सौंपे गए, उनमें कर्नल रैंक का भी एक अधिकारी था. घायल चीनी कर्नल जो भारतीय सैनिकों के कब्जे में था, उसे बिना किसी विलंब लौटा दिया गया.

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गलवान घाटी में झड़प वाली जगह से 1 KM पीछे हटी चीन की सेनाः सूत्र

हालांकि, चीन ने ऐसा नहीं किया. उसने 50 से अधिक भारतीय सैनिकों को लौटाने में करीब 24 घंटे का वक्त लिया. ये वो भारतीय जवान थे जो संघर्ष के दौरान घायल हो गए थे और चीनी क्षेत्र में ही रह गए थे. सूत्रों के मुताबिक, इनमें से कुछ भारतीय जवानों को मामूली चोटें आईं और कुछ गंभीर रूप से घायल हो गए.

सभी भारतीय सैनिकों को नहीं लौटाया

बारीक डिटेल्स से अवगत सूत्रों ने बताया, 'चीन ने फिर भी सभी भारतीय सैनिकों को नहीं लौटाया था. उसने 4 अधिकारियों समेत 10 भारतीयों को रोके रखा.' अगले तीन दिन तक गहन वार्ता हुई, जिससे कि ये सुनिश्चित किया जा सके कि चीन ने जिन 10 भारतीयों को रोक रखा था, उनकी सुरक्षित वापसी हो सके.

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सूत्रों ने बताया, 'चीनी सेना ने इस बात से कभी इनकार नहीं किया कि भारतीय सैनिक उसके कब्जे में है. उसकी ओर से यही आश्वासन दिया जाता रहा कि भारतीय सैनिक सुरक्षित हैं, लेकिन साथ ही उन्हें भारतीय पक्ष को सौंपने में भी देर करता रहा.'

सूत्रों के मुताबिक, 10 भारतीय सैनिकों को सौंपने को लेकर चीनी सेना का कोई विरोध नहीं था, लेकिन वो भारतीयों को इंतजार कराती रही. एक सूत्र ने बताया, 'चीनी सेना की ओर से विलंब के लिए प्रक्रियाओं का हवाला दिया जाता रहा, एक या दूसरे बहाने बनाकर चीजों को लटकाए रखने के लिए उसने कुछ और समय मांगा.'

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16, 17 और 18 जून को मेजर जनरल स्तर की वार्ता

सुरक्षा प्रतिष्ठान के कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह कुछ और नहीं था, बल्कि 'माइंड गेम' था जो चीनी खेल रहे थे. चीन और भारत की सेनाओं के बीच 16, 17 और 18 जून को मेजर जनरल स्तर की वार्ता हुई थी, जिसमें भारतीयों को मुक्त कराने पर ध्यान केंद्रित किया गया था. अंत में, 18 जून को 10 भारतीय सैनिकों को छोड़ा गया. न तो भारत और न ही चीन ने आधिकारिक तौर पर कहा कि 10 भारतीय सैनिक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की हिरासत में थे.

18 जून को, जिस दिन भारतीय सैनिकों को छोड़ा गया, उस दिन भारतीय सेना ने कहा कि कोई भी सैनिक कार्रवाई में लापता नहीं था. तीन दिन तक चीनी सेना के कब्जे में रहे 10 भारतीय सैनिकों की रिहाई के साथ दोनों देशों के बीच LAC पर और आगे तनाव घटाने के लिए बातचीत हुई. 22 जून को दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की बैठक भी हुई.

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पेट्रोल पाइंट 14 (PP14) के खूनी टकराव की नौबत तब आई थी जब भारतीय सेना ने वहां चीनी निगरानी चौकी स्थापित किए जाने पर आपत्ति जताई थी. चीनी सेना की ओर से घात लगाकर भारतीय सैनिकों पर किए गए हमले के बाद घंटों तक संघर्ष चला. चीनी सैनिकों ने लोहे से जड़ी छड़ें, कंटीले तारों वाले डंडों और पत्थरों से हमला किया.

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16 बिहार रेजिमेंट के भारतीय सैनिकों ने क्रूर हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन अपने कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू को खो दिया. इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए. चीनी पक्ष की ओर से भी कई सैनिक हताहत हुए. चीन ने उस संख्या का आधिकारिक तौर पर खुलासा नहीं किया.

5 मई से क्षेत्र में तनाव, सैनिकों पर था दबाव

एक अधिकारी ने बताया, ‘इस साल 5 मई से ही क्षेत्र में तनाव होने की वजह से दोनों पक्षों के सैनिकों पर दबाव था, यही 15 जून को फूट पड़ा.' जैसे ही 16 बिहार रेजीमेंट के सैनिक हमले की चपेट में आए, वैसे ही क्षेत्र में भारतीय सैनिकों को अधिक संख्या में भेजा गया. इसमें आर्टिलरी की टुकड़ी और पंजाब रेजिमेंट की तीसरी बटालियन के इंफैंट्री सैनिक भी शामिल थे. बड़ी तोपों को संभालने वाले आर्टिलरी के सैनिकों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वो चीनियों के साथ मध्य युग की तरह हाथों से संघर्ष करेंगे.

गनर्स जिनका अमूमन इस्तेमाल शत्रु के क्षेत्र के भीतर गोले दागने के लिए होता है, उन्होंने न सिर्फ हाथों से बहादुरी से लड़ाई लड़ी, बल्कि एक चीनी कर्नल को पकड़ने में भी कामयाब हुए. 16 बिहार रेजीमेंट के सैनिकों से चीनी सैनिक संख्या में कहीं अधिक थे, इसलिए आर्टिलरी की टुकड़ी और पंजाब रेजीमेंट वे इंफैंट्री सैनिक को वहां भेजा गया.

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ऐसा नहीं है कि 15 जून को ये अतिरिक्त भेजे गए जवान चीनी सैनिकों की संख्या से मेल खाते थे, लेकिन वहां भारतीय सैनिकों ने जिस जज्बे और बहादुरी के साथ चीनियों का मुकाबला किया, वो इतिहास में सुनहरे अध्याय के तौर पर शामिल होगा.

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PP 14 पर फिर फोकस वापस आ गया है. चीनी सैनिकों ने संघर्ष वाली जगह पर फिर टेंट खड़ा कर दिया है. इंडिया टुडे ने सबसे पहले रिपोर्ट किया था कि PP14 के पास हजारों सैनिक आमने-सामने थे. ये स्थिति 22 जून को भी थी जिस दिन दोनों देशों की सेनाओं में कमांडर स्तर की बातचीत हुई थी. दोनों तरफ बड़ा बिल्ड-अप बना हुआ है, इससे स्थिति एक बार फिर वहीं पहुंच गई है जहां से शुरू हुई थी.

सिर्फ गलवान ही नहीं, पैंगॉन्ग झील भी एक और फ्लैश प्वॉइंट बनी हुई है. सूत्रों का कहना है कि यदि पैंगॉन्ग झील और गलवान PP14 के मुद्दों को हल कर लिया जाए तो चीजें शांत हो जाएंगी, लेकिन इस बीच चीन की ओर से पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी के उत्तर और देपसांग के मैदानी इलाके में भी मोर्चे खोलने के मंसूबे नजर आ रहे हैं.

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