क्या आप यकीन करेंगे कि दिल्ली में 16 दिसंबर को हुए गैंगरेप के बाद लड़की और उसके दोस्त को चलती बस से नीचे धक्का नहीं दिया गया था, बल्कि दोनों को करीब-करीब उठा कर हवा में उछालते हुए नीचे फेंका गया था. अगर ऐसा नहीं होता तो दोनों सड़के किनारे पड़े होते जबकि जिन तीन लोगों ने सबसे पहले उन दोनों को देखा और जिन्होंने दोनों की मदद की उनकी मानें तो वो दोनों सड़क से करीब-करब सात-आठ फुट दूर झाड़ियों में पड़े थे.
एक तरफ वो 6 वहशी जिन्होंने दिल्ली क्या पूरे देश को शर्मसार कर दिया और दूसरी तरफ हैं इंसानियत के ये तीन मददगार. ये वही तीन लोग हैं, जिन्होंने 16 दिसंबर की रात को सबसे पहले गैंगरेप की शिकार लड़की और उसके दोस्त को सड़क किनारे लहुलुहान देखा और फिर सबसे पहले पुलिस को खबर दी और फिर दोनों को पुलिस के साथ अस्पताल ले गए. ज़ाहिर है उस रात दर्द के उस मंज़र और चीखते ज़ख्मों के ये तीनों ना सिर्फ चश्मदीद हैं बल्कि आज भी उस रात की याद भर इन्हें सहमा जाती है.
एनएच आठ की देखभाल करनेवाली कंपनी के इन तीन मुलाज़िमों जीत, सुरेंद्र और राजकुमार के मुताबिक रोज़ की तरह उस रात भी तीनों पेट्रोलिंग पर थे. तभी सड़क से करीब सात-आठ फुट दूर किनारे झाड़ियों से कराहने और बचाओ बचओ की आवाज सुनाई दी. अंधेरे में आवाज की तरफ देखा तो पाया कि एक लड़का जमीन पर गिरा हाथ उठा कर मदद मांग रहा है. लेकिन पत्थरों की ओट में पहुंचते ही उन्होंने जो कुछ देखा, उनके होश उड़ गए. झाड़ियों में लड़के के साथ कही ज़मीन पर एक लड़की बुरी तरह लहूलुहान पड़ी थी. दोनों के जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था.
लड़की के जिस्म में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वो पूरी तरह बेहोश थी और खुद लड़के को भी तब तक अंदाजा नहीं था कि लड़की के साथ बस मे क्या हुआ? तीनों ने सबसे पहले तो अपने कुछ कपड़े उतार कर दोनों को ढका फिर नजदीक के ही एक होटल से भाग कर चादर लाए. चादर के दो टुकड़े करने के बाद उससे दोनों को ढका. इस बीच वो पीसीआर को 100 नंबर पर रॉल कर चुके थे. करीब दस मिनट बाद पीसीआर भी पहुंच गई.
इन तीनों ने तो अपनी इंसानियत दिखाई लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी बताई कि इस दौरान वहां से कई गाड़ियां गुजरीं, कुछ रुकीं कुछ चली गईं, पर उनमें से किसी ने भी मदद के दो हाथ नहीं बढ़ाए.