पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपने भाषण में संयम बरतने की सलाह देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने न्यायपालिका पर टिप्पणी करने के आरोप में स्वत: संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से इनकार कर दिया.
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से इनकार करने का मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि उनकी हरकत को मंजूरी मिल गयी है. मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की सदस्यता वाली खंडपीठ ने कहा कि वह वरिष्ठ वकील विकास भट्टाचार्य की इस दलील से संतुष्ट नहीं हैं कि मुख्यमंत्री के भाषण ने आलोचना की ‘लक्ष्मणरेखा’ लांघ दी. पीठ ने कहा कि वह अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अपना अधिकार मुख्यमंत्री के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करना चाहती.
अदालत ने कहा, ‘लिहाजा हम अवमानना कार्यवाही शुरू करने से इनकार करते हैं. आखिरकार वक्ता राज्य की मुख्यमंत्री हैं. उनके भाषण में संयम का पुट होना चाहिए.’ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के मौखिक अनुरोध की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने सोमवार को इस बाबत फैसला सुरक्षित रख लिया था कि ममता ने जो टिप्पणी वह न्यायपालिका की भलाई के लिए थी या फिर टिप्पणी के जरिए न्यायपालिका के प्रति अनादर व्यक्त किया गया था. पीठ ने कहा था कि मुख्यमंत्री ने 14 अगस्त को एक सेमिनार के दौरान यह भाषण दिया था और हर किसी का अपना विचार हो सकता है. अदालत ने यह भी कहा कि ममता ने किसी खास मामले या किसी खास अदालत के बारे में टिप्पणी नहीं की थी.
ममता ने अगस्त में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा था, ‘यह मैं क्या देख रही हूं. आज बहुत सारे फैसले पैसे के लिए क्यों दिए जा रहे हैं? क्यों? मुझे ऐसा कहते हुए दुख हो रहा है.’ मुख्यमंत्री ने कहा था कि न्यायपालिका का काम न्याय देना है. लेकिन न्यायपालिका से लोकतंत्र तक भ्रष्टाचार क्यों है? यह हमारी बदकिस्मती है.