17वीं लोकसभा के लिए जनता ने अपने सांसदों का चयन कर दिया है और आज गुरुवार को नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. इस शपथ ग्रहण के बाद नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने के लिए संतोष कुमार गंगवार को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है, जो नए सांसदों को शपथ दिलाएंगे.
किसी वरिष्ठतम सांसद को ही प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. इस बार संतोष गंगवार को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है. संतोष गंगवार 8वीं बार सांसद बने हैं और इस बार भी वह त्तर प्रदेश की बरेली संसदीय सीट से चुनकर आए हैं. उन्होंने समाजवादी पार्टी (सपा) के भगवत शरण गंगवार को 1,67,282 वोटों से पराजित किया.
1989 में पहली बार जीते संतोष
1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से संतोष कुमार गंगवार ने बरेली से पहली जीत हासिल की और इस जीत के बाद उन्होंने इसे अपना गढ़ बना लिया. 1989 से लेकर 2004 तक लगातार 6 बार उन्होंने यहां से चुनाव में जीत हासिल की.
हालांकि 2009 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 2014 के चुनाव में एक बार फिर बड़े अंतर से वह जीत कर लौटे और केंद्र में मंत्री बने.
2014 में कमलनाथ बने थे प्रोटेम स्पीकर
इससे पहले 2014 में 16वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव के बाद कांग्रेस सांसद कमलनाथ को लोकसभा के अस्थायी अध्यक्ष यानी प्रोटेम स्पीकर के रूप में चुना गया था. तब कमलनाथ लोकसभा के सबसे वरिष्ठ सांसद थे और उन्होंने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा संसदीय सीट से लगातार नौवीं बार आम चुनाव में जीत हासिल की थी.
कौन है प्रोटेम स्पीकर
प्रोटेम (Pro-tem) शब्द लैटिन भाषा के शब्द प्रो टैम्पोर (Pro Tempore) का संक्षिप्त रूप है. इसका अर्थ होता है- 'कुछ समय के लिए.' प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है और इसकी नियुक्ति आमतौर पर तब तक के लिए होती है जब तक लोकसभा या विधानसभा अपना स्थायी विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) नहीं चुन लेती.
प्रोटेम स्पीकर नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलवाता है और शपथ ग्रहण का पूरा कार्यक्रम इन्हीं की देखरेख में होता है. सदन में जब तक सांसद शपथ नहीं ले लेते, तब तक उनको सदन का हिस्सा नहीं माना जाता. इसलिए सबसे पहले सांसद को शपथ दिलाई जाती है.
जब सांसदों की शपथ हो जाती है तो उसके बाद ये लोग लोकसभा स्पीकर का चुनाव करते हैं. संसदीय परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति सदन में वरिष्ठतम सदस्यों में से किसी एक को प्रोटेम स्पीकर के लिए चुनते हैं. यही व्यवस्था लोकसभा के अलावा विधानसभा के लिए होती है.