मंदी का शब्द सुनसुनकर अब कान पक गए है. चाहे वो उद्योग हो या फिर आम आदमी सब ये ही चाहते है कि प्रणव दा कोई जादूई छड़ी घुमा दें और यह मंदी का भूत उतर जाए. कार के शोरूम में बड़ी-बड़ी चमचमाती गाड़ियां खड़ी हैं लेकिन खरीदार ही नही है ऐसे में आटो और कंजयूमर उद्योग भी अपनी झोली फैलाए खड़ा है.
एक कार मिल जाए, नया फ्रिज आ जाए, टीवी भी पुराना हो चुका और वाशिंग मशीन भी अब तंग करने लगी है, काश ये सब बदल जाएं, देशवासियों की यही छोटी-छोटी आशाएं है जिसको लेकर वो इस बार के बजट से उम्मीदे लगाए बैठे हैं. आम लोगों की तो उम्मीदें अपनी जगह हैं वही कंज्यूमर और आटो उद्योग की भी अपनी मांगे हैं. मंदी ने इस उद्योग की हालत पस्त कर दी है. इस उद्योग की उम्मीद है कि आम बजट में
1. छोटी और बड़ी कारों पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी का अंतर कम हो, (फिलहाल छोटी कारों पर 8 फीसदी और बड़ी कारों पर 20 फीसदी एक्साइज टैक्स)
2 .कंज्यूमर ड्यूरेबल सेक्टर की मांग है एक्साइज ड्यूटी 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी हो.
3- पूर्वी एशियाई देशों से और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हों.
माना जा रहा है कि प्रणव मुखर्जी खुद इस बात से सहमत हैं कि जब तक जनता की जेब भारी नही होगी देश आर्थिक संकट से नही उबर सकता. ऐसे में उद्योग जगत की मागें जायज हैं लेकिन वित्तीय घाटे के कारण प्रणव मुखर्जी की अपनी मजबूरियां हैं. आटो उद्योग ने तो अपनी मांगे रख दी. लेकिन सरकार के लिए ये सब इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि अगर टैक्स में छूट दी जाती है तो इसका सीधा असर सरकार की आय पर होगा. जिसका असर सरकार की दूसरी योजनाओं पर पड़ेगा.