असम विधानसभा चुनावों से पहले, राज्य की वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर सुधार किया गया है. भारत के चुनाव आयोग द्वारा किए गए एक स्पेशल रिवीजन एक्सरसाइज (SIR) के दौरान 10.56 लाख से ज़्यादा वोटरों के नाम हटा दिए गए हैं.
शनिवार को जारी किए गए अपडेटेड ड्राफ्ट लिस्ट से पता चलता है कि असम में अब 2.51 करोड़ रजिस्टर्ड वोटर हैं, जिसमें 93,000 से ज़्यादा 'डी-वोटर' शामिल नहीं हैं.
यह कैटेगरी उन लोगों के लिए है, जिनकी नागरिकता की स्थिति अभी भी सवालों के घेरे में है. ये वोटर उसी पर्सनल डिटेल्स के साथ ड्राफ्ट लिस्ट में दिखते रहेंगे, लेकिन उनके पास वोट देने का अधिकार नहीं होगा.
क्यों हटाए जा रहे नाम?
अधिकारियों ने बताया कि नाम हटाने के मुख्य रूप से तीन कारण हैं: मौतें, लोगों का अपने रजिस्टर्ड पते से कहीं और चले जाना, और डुप्लीकेट एंट्री. चुनाव आयोग के मुताबिक, वेरिफिकेशन के बाद करीब 4.8 लाख नाम हटा दिए गए क्योंकि पुष्टि हुई कि मतदाताओं की मौत हो गई थी, जबकि 5.23 लाख से ज़्यादा लोग कहीं और शिफ्ट हो गए थे. समानता के कारण डुप्लीकेशन का संदेह होने पर 53,000 से ज़्यादा एंट्री को फ्लैग करके हटा दिया गया.
यह संशोधन 22 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच चलाए गए एक बड़े वेरिफिकेशन कैंपेन के बाद किया गया. चुनाव कर्मचारियों ने राज्य भर में 61 लाख से ज़्यादा घरों को कवर करके ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं की जानकारी की जांच की.
अब जब ड्राफ्ट लिस्ट जारी हो गई है, तो मतदाताओं के पास 22 जनवरी तक आपत्तियां उठाने या सुधार करवाने का वक्त है. फाइनल वोटर लिस्ट 10 फरवरी को पब्लिश होने वाली है.
हाल ही में हुए रैशनलाइज़ेशन प्रोसेस के बाद, असम में अभी 31,486 पोलिंग स्टेशन हैं. जबकि चुनाव में जाने वाले कई दूसरे राज्यों- केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन हो रहा है. असम को स्पेशल रिवीजन के तहत रखा गया था, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि यह रूटीन सालाना अपडेट और पूरी तरह से इंटेंसिव रिवीजन के बीच का है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने पहले बताया था कि असम कानून के तहत नागरिकता से जुड़े अलग-अलग प्रावधानों का पालन करता है, और राज्य में नागरिकता वेरिफिकेशन का बड़ा प्रोसेस सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में पूरा होने वाला है.
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SIR क्या है?
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन या SIR एक गहन, ज़मीनी अभ्यास है, जिसमें बूथ-लेवल अधिकारियों (BLO) द्वारा सभी रजिस्टर्ड वोटर्स का वेरिफिकेशन किया जाता है. इस तरह के अभ्यास का मकसद डुप्लीकेट, मृत, पलायन कर चुके और वोटर्स को हटाना है. भारत में वोटर लिस्ट का ऐसा आखिरी रिवीजन दो दशक पहले किया गया था.
इस साल, बिहार में SIR राज्य में चुनाव से कुछ महीने पहले किया गया था, जो बड़े विवाद और ज़मीनी स्तर पर भ्रम की वजह बना रहा. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा लेकिन इस रोक नहीं लगी. हालांकि, कुछ बदलावों के साथ इस एसआईआर को आगे बढ़ने की इजाज़त दे दी.
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि SIR सिर्फ़ एक दिखावा था, जिसके पीछे लाखों लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा था. बिहार की आखिरी वोटर लिस्ट में 68.6 लाख नाम हटाए गए थे.
SIR एक्सरसाइज का दूसरा फेज़ नवंबर में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में शुरू किया गया था. असम में SIR का ऐलान अलग से किया गया था.
चुनाव अधिकारियों ने कहा कि इस रिवीजन का मकसद अहम चुनावों से पहले योग्य नागरिकों को एनरोल करके, गलतियों को सुधारकर और अयोग्य या डुप्लीकेट एंट्री को हटाकर एक साफ और सही वोटर लिस्ट तैयार करना था.