इसे एक ऐतिहासिक फैसला माना जाएगा जिसके जरिए तीनों जजों ने एक मत से यह माना है कि जहां पर रामलला की मूर्ति विराजमान है उसी जगह पर मूर्ति विराजमान रहे और इस जगह का अधिपत्य हिन्दुओं को दिया जाए.
हालांकि रामजन्मभूमि विवाद पर तीनों जज एक मत नहीं थें. जस्टिस एस यू खान के मुताबिक यह हिन्दुओं की मान्यता थी जो 1949 के कुछ दशकों पहले प्रबल हुई कि जहां पर रामलला की मूर्ति विराजमान हैं वहीं रामजन्मभूमि हैं. इसकी कोई पुख्ता सबूत नहीं है ऐसा जस्टिस खान का मानना है. जटिस खान ने यह भी कहा है कि विवादित ढ़ाचा एक मस्जिद के तौर पर बाबर के आदेशानुसार बनाया गया. लेकिन किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाया गया. हालांकि इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस स्थान पर जीर्णशीर्ण अवस्था में मंदिर के अवशेष थें और मस्जिद के निर्माण में मंदिर के कुछ अवशेषों का उपयोग हुआ होगा. लेकिन दोनों पक्ष चाहे हिन्दू हों या मुसलमान यह साबित नहीं कर सकें कि विवाददित जमीन पर मालिकाना हक किसका है.
जस्टिस अग्रवाल की राय में रामजन्म स्थान वहीं है जहां मूर्ति विराजमान हैं. हालांकि जस्टिस खान और जस्टिस अग्रवाल इस बात पर एकमत हैं कि विवादित रामजन्म भूमि स्थल के तीन हिस्से होने चाहिए. जिसमें एक हिस्सा हिन्दुओं का जहां मौजूदा स्थिति में रामलला विराजमान है. सीता रसोई और रमा चबूतरा निर्मोही अखाड़ा के देखरेख में रहे और मुसलमानों को पूजा करने के लिए इस क्षेत्र का कमसे कम एक तिहाई हिस्सा जरूर दिया जना चाहिए.
इस फैसले के बाद विवाद की कोई गुंजाइश बचती नहीं है. भले ही सुन्नी बक्फ बोर्ड इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए लेकिन हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद कई मसलों पर विववाद की गुंजाइश न के बराबर रह जाती है. कोर्ट ने इस बात पर खास तवज्जों दिया कि यह मसला हिन्दू आस्था से जुड़ा है और आपसी सौहार्द के लिए सभी पक्षों को इस फैसले पर अमल करना चाहिए.
कुल मिलाकर देखाजाए तो पिछले 60 सालों में ऐसे उलझे हुए विवादित मसले पर एक सटीक और पारदर्शी फैसला कम ही देखने को मिला है. अब यह भारतीय जनमानस पर निर्भर करता है कि लोकतांत्रिक परमपराओं और विवेक के अधीन शांतिपूर्वक तरीके से देश के सबसे बड़े विवाद का निपटारा हम नागरकि कैसे करते हैं.
(अजय कुमार आजतक न्यूज चैनल में एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं.)