प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक साल पहले प्रवासी भारतीयों को मताधिकार देने का वादा किया था लेकिन यह प्रस्ताव अब भी सरकार और चुनाव आयोग के बीच भारतवंशियों के नाम शामिल करने के तौर तरीकों पर मतभेद को लेकर अटका हुआ है.
संसद के मानसून सत्र के दौरान भारत में होने वाले चुनावों में एनआरआई को मतदान का अधिकार देने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करने संबंधी विधेयक को तो मंजूरी दे दी गयी लेकिन उनके नामों को मतदाता सूची में शामिल करने की प्रक्रिया को लेकर सरकार और चुनाव आयोग के बीच एक राय नहीं बन पायी है .
सरकार के शीर्ष सूत्रों ने कहा, ‘चुनाव आयोग उन एनआरआई के प्रत्यक्ष सत्यापन पर जोर दे रहा है जो अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज कराना चाहते हैं लेकिन हम इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं क्योंकि हमारे दूतावासों के लिए यह कवायद करना एक तरह से असंभव होगा.’ विदेश मंत्रालय और प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की चुनाव आयोग के साथ अनेक दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई सहमति नहीं हुई.{mospagebreak}
प्रधानमंत्री ने पिछले साल जनवरी में प्रवासी भारतीय दिवस पर अपने संबोधन में कहा था कि विदेश में रहने वाले भारतीय पासपोर्ट धारकों को मताधिकार दिया जा सकता है.
नौवां प्रवासी भारतीय सम्मेलन शुक्रवार से यहां होगा और प्रधानमंत्री शनिवार को संबोधित करेंगे.
विदेश मंत्रालय ने चुनाव आयोग से कहा है कि एनआरआई का भौतिक सत्यापन संभव नहीं होगा क्योंकि अकेले सउदी अरब में ही भारतीयों की संख्या तकरीबन पंद्रह लाख होगी. अनिवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यालार रवि ने कहा कि तौर तरीकों को अंतिम रूप देने का काम चुनाव आयोग पर निर्भर करता है लेकिन उन्होंने साथ ही कहा कि दिशा निर्देश व्यवहारिक होने चाहिए.
रवि ने कहा कि चुनाव आयोग इस मुद्दे पर काफी सकारात्मक है ओर मुझे आशा है कि आयोग जल्द से जल्द तौर तरीकों को अंतिम रूप दे देगा.
तकरीबन एक करोड़ दस लाख प्रवासी भारतीय दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे हें और ये लोग लंबे समय से मतदान के अधिकार की मांग कर रहे हैं.
कानून में किये गये संशोधन के मुताबिक कोई एनआरआई मतदान में हिस्सा ले सकता है बशर्ते कि वह मतदान के दिन निर्वाचन क्षेत्र में उपस्थित हो. अभी तक जो नियम था उसके मुताबिक छह महीने से ज्यादा समय तक देश से बाहर रहने वाले लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिये जाते हैं.