कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वायनाड लोकसभा सीट छोड़ने का फैसला किया है. वह अपने रायबरेली से सांसद बने रहेंगे. पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रियंका गांधी वायनाड सीट पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस की आधिकारिक प्रत्याशी होंगी. बता दें कि राहुल गांधी ने हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में अपनी दोनों सीटों- वायनाड और रायबरेली पर प्रभावशाली अंतर से जीत हासिल की थी. नई दिल्ली में पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने चर्चा के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस फैसले की घोषणा की.
राहुल गांधी जब 2019 में गांधी परिवार के गढ़ रहे अमेठी में बीजेपी के स्मृति ईरानी से हार गए थे, तब वायनाड ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनकर भारत की संसद में भेजा था. फिर राहुल ने मुश्किल की घड़ी में अपना साथ देने वाले वायनाड को छोड़कर रायबरेली को क्यों चुना? दरअसल, यह निर्णय पार्टी की रणनीति का संकेत देती है. 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित कांग्रेस आक्रामक रुख अपना रही है. लेखक और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने आजतक से कहा, 'कांग्रेस का यह फैसला एक मजबूत और सोचा-समझा राजनीतिक संदेश है'.
किदवई के मुताबिक कांग्रेस 2029 के आम चुनावों से पहले के समय का अच्छा उपयोग करना चाहती है. नरेंद्र मोदी 2014 और 2019 के मुकाबले राजनीतिक रूप से कमजोर स्थिति में हैं, क्योंकि केंद्र में इस बार पूर्ण बहुमत की नहीं बल्कि गठबंधन सरकार है. राहुल और प्रियंका गांधी दोनों को संसद में रखकर विपक्ष को धार देने का यह प्रयास कांग्रेस कर रही है'. राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रचार अभियान का नेतृत्व किया. उन्होंने केरल के वायनाड के बजाय उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद रहना क्यों चुना, हम इसके पांच कारण आपको बता रहें हैं...
1) यूपी में खोई जमीन पाने की उम्मीद
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतीं. 2019 में उसे सिर्फ रायबरेली सीट पर जीत मिली थी. इंडिया ब्लॉक ने यूपी में 43 सीटें जीतीं, जिनमें से 37 समाजवादी पार्टी ने जीतीं. यह एनडीए के लिए एक बड़ा झटका था, जिसने 2019 में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटें जीती थीं. 2024 के चुनाव में, एनडीए सिर्फ 36 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि बीजेपी को 33 सीटें हासिल हुईं. वोट शेयर के मामले में सबसे बड़ी हार मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को हुई. इसका वोट शेयर 19% से घटकर 9% रह गया.
ये वोट मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस को भी मिले। अगर एसपी ने बीएसपी के वोट शेयर का 6-7% हासिल किया, तो कांग्रेस को 2-3% का फायदा हुआ. कांग्रेस को उम्मीद है कि वह उत्तर प्रदेश में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोटों का फायदा उठा सकती है. राहुल गांधी द्वारा वायनाड के बजाय रायबरेली सीट चुनने का पहला कारण यही नजर आता है.
2) रणनीति बदलाव और आक्रामक रुख
2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे से उत्साहित कांग्रेस ने अपना रुख बदल लिया है. राहुल गांधी का रायबरेली संसदीय सीट को बरकरार रहना और वायनाड सीट छोड़ना उस आक्रामक दृष्टिकोण का संकेत है. रशीद किदवई के मुताबिक, 'कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है. अब उसने रक्षात्मक से आक्रामक रुख अपनाया है. वायनाड एक रक्षात्मक दृष्टिकोण था. क्योंकि राहुल 2019 में अमेठी से अपनी संभावित हार को देखते हुए वहां पहुंचे थे. उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव नीतजों के देखकर ही राहुल ने वायनाड के बजाय रायबरेली को चुना है'.
राहुल गांधी वायनाड के सांसद के रूप में दक्षिण और प्रियंका उत्तर की कमान संभाल रही थीं, जो कांग्रेस की पुरानी रणनीति थी. इस बार के लोकसभा चुनाव परिणाम से सीख लेकर कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल ली है. किदवई कहते हैं, 'महाराष्ट्र, राजस्थान और यूपी में अच्छे प्रदर्शन से कांग्रेस को एक उम्मीद जगी है और इसके परिणामस्वरूप उसकी रणनीति में बदलाव आया है. यह सफल होगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा. भाजपा को चुनौती देनी है तो लड़ाई वहां लड़नी होगी जहां भगवा पार्टी वह मजबूत है न कि दक्षिण से. बीजेपी हिंदी हार्टलैंड में काफी मजबूत है. दक्षिण में वह अब भी जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है. लेकिन अब तक बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाई है.
3) देश में कांग्रेस के पुनर्जीवित होने के लिए यूपी जरूरी
कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. इसलिए, जब क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के वोट बेस में सेंध लगाना शुरू किया, तो इसकी गिरावट सबसे पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में दिखाई दी. केंद्र की सत्ता पर भी उसकी पकड़ ढीली होने लगी. अगर कांग्रेस को अपने दम पर केंद्र की सत्ता में आना है तो उसे खुद को उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवित करना होगा. उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतना कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत है, भले ही उसे यह जीत समाजवादी पार्टी के साथ होने से मिली हो. कांग्रेस के लिए दूसरा अच्छा संकेत यह है कि जाट नेता जयंत चौधरी और उनके राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के एनडीए खेमे में होने के बावजूद, यूपी और हरियाणा में जाट वोटर पार्टी की ओर झुके हैं.
4) दिल जीतने के लिए, कांग्रेस को हार्टलैंड जीतना होगा
दिल जीतने के लिए कांग्रेस को हार्टलैंड जीतना होगा. यहीं पर उसे अकेले और क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ गठबंधन में भाजपा से मुकाबला करना होगा. हार्टलैंड के नौ प्रमुख राज्यों में कांग्रेस को अपना प्रदर्शन सुधारना होगा, क्योंकि लोकसभा की 543 में से 218 सांसद इन्हीं 9 राज्यों से पहुंचते हैं. कांग्रेस ने इस बार उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा और राजस्थान में भी बेहतर प्रदर्शन किया है. रशीद किदवई कहते हैं, 'कांग्रेस हिंदी पट्टी में अपनी संभावनाएं तलाश रही है और इसीलिए राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश से आगे बढ़ाया जा रहा है'. यूपी में अधिक सीटें जीतकर, कांग्रेस बिहार में भी प्रभाव डाल सकती है, जहां वह राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ गठबंधन में है.
5) प्रियंका गांधी के वायनाड जाने से केरल भी सध जाएगा
केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे और कांग्रेस यहां सत्ता में आ सकती है. केरल की जनता या तो सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ या कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को चुनती आ रही है. राज्य की जनता ने 2021 में एलडीएफ को सत्ता में वापस लाकर अधिकांश राजनीतिक पंडितों को आश्चर्यचकित कर दिया. 2024 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई (एम) का प्रदर्शन खराब रहा और उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. कांग्रेस ने 2024 में 20 लोकसभा सीटों में से 14 सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी आईयूएमएल ने दो सीटें जीतीं.
कांग्रेस इस बात को लेकर आश्वस्त है कि चाहे राहुल गांधी ने वायनाड को बरकरार रखा हो या नहीं, केरल में 2026 में उसे जीत हासिल होगी. भाई राहुल की जगह प्रियंका गांधी के वायनाड से चुने जाने पर राज्य विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के कैम्पेन को भी गति मिलेगी. रशीद किदवई प्रियंका गांधी-वाड्रा के बारे में कहते हैं, 'केरल में, जहां 2026 में चुनाव होने हैं, प्रियंका की वायनाड में मौजूदगी से पार्टी को मदद मिलने की उम्मीद है'.