नेहरू तारामंडल की निदेशक एन रत्नाश्री ने बताया कि यह सदी का सबसे बड़ा और सबसे गहरा पूर्ण चंद्रग्रहण था.
भारत में पूर्ण चंद्रग्रहण की शुरुआत भारतीय समयानुसार 12 बजकर 52 मिनट और 30 सेकंड पर हुई और यह 2 बजकर 32 मिनट, 42 सेकंड तक चला
इससे पहले जुलाई, 2000 में इससे लंबा चंद्रग्रहण लगा था.
सदी के सबसे लंबे चंद्रग्रहण का सुविवि के विज्ञान भवन की लैब में वैज्ञानिक अध्ययन किया गया.
इस साल के पहले व सदी के सबसे लंबी अवधि के चंद्रग्रहण को लेकर वैज्ञानिक जगत में विशेष उत्सुकता रही तथा इस वृहत खगोलीय घटनाक्रम को देखकर उसके अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों की टीमें प्रयोगशालाओं में तैनात हो गई.
वैज्ञानिकों ने अपनी आंखों से आधुनिक मशीनों द्वारा इस खगोलीय घटनाक्रम को देखा तथा इसके प्रभाव व दुष्प्रभाव का गहनता से अध्ययन किया.
दो अन्य सूर्यग्रहण 1 जुलाई और 25 नवंबर को लगेगा. वर्ष का दूसरा पूर्ण चंद्रग्रहण 1 दिसंबर को दिखाई देगा.
देर रात तक भोपालवासी आसमान पर आस भरी निगाहों से टकटकी लगाए रहे लेकिन हाथ निराशा ही हाथ लगी.
ग्रहण नहीं दिखना शुभ: पंडितों व जानकारों के अनुसार चंद्रग्रहण का नजारा नहीं दिखने से ग्रहण के दुष्प्रभावों में कमी आएगी.
वाराणसी के अंक ज्योतिष गुरू डा. अशोक मिश्रा ने बताया कि न्यूमरोलाजी के अनुसार यह चन्द्र ग्रहण 1,5, और 9 अंक वालों के लिए शुभ नहीं था.
इस सदी के सबसे बड़े चंद्रग्रहण को देखने की उत्सुकता सभी को थी. सुबह बादलों ने उत्सुकता पर पानी फेरने की कोशिश की, लेकिन रात तक आसमान साफ हो गया था.
यह इस वर्ष के छह में से तीसरा ग्रहण है. 4 जनवरी और 2 जून को दो सूर्यग्रहण लग चुके हैं.
रात 12.52 बजे से 1.05 बजे के बीच चांद का रंग तांबे के रंग का हो गया. इसके बाद वह पूरी तरह गायब हो गया और घुप अंधेरा छा गया.
रात 10.54 बजे शुरू हुआ चंद्रग्रहण इंदौर के आसमान पर बादल छाए होने से कुछ देर तक साफ नजर नहीं आया.
राजधानी सहित पूरा देश 100 मिनट तक चले सदी के इस सबसे लंबे और बेहद अंधियारे चंद्रग्रहण का साक्षी बना.
चंद्र ग्रहण तब लगता है जब सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा के दौरान धरती, चांद और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया में छिप जाता है.
जब चंद्रमा का कुछ ही भाग छाया में होता है, उसका उतना अंधकारमय भाग चाप के आकार में कटा हुआ दिखाई पड़ता है. इसे खंड ग्रहण या आंशिक ग्रहण कहते हैं.
जब पृथ्वी की छाया समस्त सम्मुख भाग पर पड़ती है और चंद्रमा का सम्पूर्ण भाग अंधकारमय हो जाता है, पूर्ण ग्रहण होता है.
पूर्णिमा को जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी की स्थिति होती है, पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है जिससे चंद्रमा का छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है और पृथ्वी से नहीं दिखाई पड़ता है. इसे चंद्रग्रहण कहते हैं.
चंद्र ग्रहण तब लगता है जब सूर्य के चारों ओर अपनी परिक्रमा के दौरान धरती, चांद और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया में छिप जाता है.
यह चंद्रग्रहण पूरे 100 मिनट तक देखा गया. भारत सहित दुनियाभर के देशों के लोग आकाश की इस अद्भुत खगोलीय घटना के साक्षी बने.
गैर सरकारी संगठन 'साइंस पॉपुलराइजेशन एसोसिएशन ऑफ कम्युनिकेटर्स एंड एजुकेटर्स' (स्पेस) ने भी पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी में इस चंद्रग्रहण को देखने की विशेष व्यवस्था की थी.
दिल्ली में नेहरू तारामंडल ने चंद्रग्रहण देखने के लिए विशेष इंतजाम किए थे.
पश्चिम एशिया, आस्ट्रेलिया और फिलीपींस में सूर्योदय से ठीक पहले चंद्रग्रहण देखा गया.
दक्षिण अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका और यूरोप से यह चंद्रग्रहण शुरू हुआ था जो पूर्वी एशिया में समाप्त हुआ.
यह साल 2011 का पहला चंद्रग्रहण था, दूसरा चंद्रग्रहण 10 दिसम्बर को होगा.
चंद्रग्रहण के दौरान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मौसम साफ रहा और लोग इस नजारे को देखने में कामयाब रहे.
भारत में आंशिक चंद्रग्रहण 11.52 बजे से रात 3.32 बजे तक जारी रहा.
भारत में बुधवार रात 12.52 बजे यह चंद्रग्रहण शुरू हुआ था और इसे रात 2.32 बजे तक देखा जा सका.
पूर्णिमा की अगली ही रात अपने पूरे शबाब के साथ तारों के साथ आंख मिचौली खेलते चंद्रमा की उजली सतह पर धीरे-धीरे पृथ्वी की छाया पड़ने लगी और उसका रंग पहले सुर्ख और फिर स्याह हो गया
बुधवार की देर रात से लेकर गुरुवार तड़के तक लोगों ने सदी के सबसे लम्बे और काले चंद्रग्रहण का नजारा देखा.