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खुद हटे तो फायदे में रहेंगे? जस्टिस वर्मा के पास महाभियोग से बचने का अब 'इस्तीफा' ही एकमात्र रास्ता!

दिल्ली के तुगलक क्रेसेंट स्थित न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आधिकारिक निवास में 14 मार्च को आग लगने की घटना हुई थी. उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी मध्य प्रदेश की यात्रा पर थे. घर पर केवल उनकी बेटी और वृद्ध मां मौजूद थीं. अग्निशमन कर्मियों द्वारा आग बुझाने के दौरान एक स्टोर रूम में जलते हुए नकदी के बंडल बरामद हुए. बाद में एक वीडियो भी सामने आया जिसमें बोरे में भरी नकदी जलती हुई दिख रही थी.

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कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा. (PTI Photo)
कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा. (PTI Photo)

घर में नकदी बरामद होने के आरोप में फंसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के पास अब महाभियोग से बचने का एकमात्र रास्ता इस्तीफा ही बचा है. अगर जस्टिस वर्मा खुद से इस्तीफा देते हैं तो उनकी पेंशन भी बच जाएगी. इस साल मार्च में जस्टिस वर्मा के घर से 15 करोड़ नकदी बरामद हुई थी. सुप्रीम कोर्ट की इंटरनल इन्क्वायरी कमेटी ने उन्हें दोषी माना था. जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से मना कर दिया है, जिसके बाद उन्हें पद से हटाने के लिए संसद के मॉनसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने की तैयारी चल रही है. 

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कानून के जानकारों के मुताबिक, किसी भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को भ्रष्टाचार या कदाचार के आरोपों की वजह से पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान में है. इन आरोपों और आंतरिक जांच रिपोर्ट के साथ किसी भी सदन में सांसदों के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए जस्टिस वर्मा इस्तीफे की घोषणा कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में उनके मौखिक बयान को ही उनका इस्तीफा मान लिया जाएगा.

खुद इस्तीफा दिया तो क्या फायदा?

जानकारों का कहना है कि जस्टिस वर्मा अगर खुद से इस्तीफा देते हैं तो उन्हें हाईकोर्ट के रिटायर जज के समान पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे. अगर वो ऐसा नहीं करते हैं और महाभियोग के जरिए उन्हें हटाया जाता है तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभ नहीं मिल सकेंगे.

संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार हाईकोर्ट का जज राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए अपने हस्ताक्षर सहित लिखित रूप में भी अपना पद त्याग सकता है. इसके लिए किसी के अनुमोदन की जरूरत नहीं है.

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महाभियोग के लिए क्या करना होगा?

संविधान के मुताबिक संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों को प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने होते हैं. लोकसभा में 100 सदस्यों को इस प्रस्ताव का समर्थन करना जरूरी है. न्यायाधीश (जांच) अधिनियम 1968 के अनुसार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आरोपी जज को हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो उस सदन के अध्यक्ष या सभापति तीन सदस्यीय समिति का गठन करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, किसी भी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक जाने माने कानूनी जानकारी की समिति उन आधारों की जांच करेगी, जिन पर आरोपी जज को हटाने के लिए महाभियोग चलाने की मांग की गई है.

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले सप्ताह कहा भी था कि जस्टिस वर्मा का मामला इस स्थापित प्रक्रिया से थोड़ा अलग है. क्योंकि तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना के आदेश से गठित एक आंतरिक समिति पहले ही रिपोर्ट पेश कर चुकी है. उसमें जस्टिस यशवंत वर्मा को भ्रष्टाचार का दोषी माना गया है. सरकार अब इस पर विचार कर रही है कि इस स्थिति में क्या किया जाए. संसद में अलग से समिति बनाई जाए या फिर पिछली समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही आगे बढ़ा जाए. इस मसले पर भी स्पीकर फैसला लेंगे.

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इतिहास में जजों के खिलाफ कब आया महाभियोग

इतिहास पर नजर डालें तो अब से पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी रामास्वामी और कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सौमित्र सेन को पहले महाभियोग की कार्यवाही का सामना करना पड़ा था. लेकिन उन्होंने महाभियोग प्रस्ताव पारित होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. 

संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है। अगर महाभियोग प्रस्ताव पास होता है तो संसद के नए भवन में महाभियोग की यह पहली कार्यवाही होगी।

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