वक्फ कानून से जुड़े मामले पर देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के मामले में सरकार और मुस्लिम समुदाय के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है. अदालत ने वक्फ कानून की धारा 3 और धारा 4 पर रोक लगा दी है. सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि हमारे पास पूरे कानून पर रोक लगाने का अधिकार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला कानून की संवैधानिकता पर नहीं है. अदालत ने वक्फ संपत्ति पर राजस्व से संबंधित कानून पर रोक लगा दी है. साथ ही, वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य न हों और वक्फ बोर्ड का सीईओ जहां तक संभव हो मुस्लिम समुदाय से हो, लेकिन गैर-मुस्लिम सीईओ बनाने पर रोक नहीं लगाई.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने धारा 3(आर), 2(सी), 3(सी) और 23 पर रोक लगाने का आदेश पारित किया है. इस तरह से अदालत ने कुछ मामलों में मुसलमानों को राहत दी तो कुछ मामलों में सरकार को. ऐसे में मुसलमानों को वक्फ कानून में किस पर आपत्तियाँ थीं और किस पर उन्हें राहत मिली है, आइए समझते हैं...
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के किन प्रावधानों पर रोक लगाई?
धारा 3(आर): यह शर्त कि किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने के लिए कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना चाहिए. अदालत ने कहा कि जब तक नियम नहीं बनते, यह शर्त मनमानी हो सकती है और स्थगित रहेगी. कोर्ट ने उस पर वक्फ करने की पांच साल की लिमिट पर रोक लगा दिया है.
धारा 2(सी) का उपबंध: जब तक नामित अधिकारी की रिपोर्ट दाखिल नहीं होती, संपत्ति को वक्फ संपत्ति न माना जाए. कोर्ट ने इस प्रावधान को स्थगित कर दिया है.
धारा 3(सी): कलेक्टर को संपत्ति अधिकार तय करने का अधिकार देना शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है. अंतिम निर्णय तक संपत्ति अधिकार प्रभावित नहीं होंगे और वक्फ को कब्ज़े से वंचित नहीं किया जाएगा.
गैर-मुस्लिम सदस्यों की सीमा: वक्फ बोर्ड में 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे और कुल संख्या 4 से अधिक नहीं हो सकती. इसके अलावा, धारा 23 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड का सीईओ जहाँ तक संभव हो सके, वह मुस्लिम हो.
'वक्फ बाय यूज़' पर नहीं मिली राहत
वक्फ जमीनों को लेकर जो पुराना कानून था, वह कहता था कि अगर कोई जमीन लंबे समय से वक्फ द्वारा ही इस्तेमाल की जा रही है तो उसे वक्फ का माना जा सकता है. तब अगर जरूरी कागज़ात नहीं भी होते थे, तब भी उस जमीन को वक्फ का मान लिया जाता था. लेकिन, अब जब नया कानून आया है, इसमें इस शब्द को ही हटा दिया गया है.
अगर कोई प्रॉपर्टी वक्फ की नहीं है तो उसे संदिग्ध माना जाएगा. यह तर्क नहीं दिया जा सकेगा कि क्योंकि पहले से ही इस प्रॉपर्टी पर वक्फ काम कर रहा था, तो इस पर अधिकार भी उनका ही रहेगा. मुस्लिम समुदाय 'वक्फ बाई यूज़' को बनाए रखने के पक्ष में था, जिसके लिए वक्फ कानून में रोक लगाने की मांग कर रहा था. कोर्ट ने इस पर कोई बदलाव नहीं किया. किसी वक्फ संपत्ति का अगर कागज़ात नहीं होगा तो वह वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी.
वक्फ के ढांचे पर मुस्लिम पक्ष को राहत
मुस्लिम समुदाय की तरफ से दूसरी सबसे बड़ी आपत्ति राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित थी. याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि पदेन सदस्यों के अलावा, केवल मुसलमानों को ही इन निकायों का प्रबंधन करने की अनुमति दी जानी चाहिए. मुस्लिमों का कहना था कि वक्फ बोर्ड और परिषद में सिर्फ मुस्लिम सदस्य होने चाहिए.
मुस्लिम समुदाय की इस आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड में 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे और राज्य के लिए 3 से अधिक नहीं होना चाहिए. इस तरह, वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में सेंट्रल बॉडी में चार और राज्य में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम न हों. इस तरह वक्फ बोर्ड के ढांचे में मुस्लिम समाज का बहुमत होगा. नए कानून में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या निर्धारित नहीं थी, लेकिन कोर्ट ने इसे तय कर दिया है.
पांच साल के मुसलमानों पर लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई ने कहा कि हम वक़्फ करने के लिए वाकिफ के 5 साल तक इस्लाम में ईमान रखने यानी इस्लामिक प्रैक्टिस की न्यूनतम अवधि की अनिवार्यता पर रोक लगा रहे हैं. सरकार चाहती थी कि कोई अगर मुसलमान वक्फ करता है तो उसे पांच साल का प्रैक्टिस मुस्लिम होना चाहिए. सरकार के इस प्रावधान पर मुस्लिम समुदाय को विरोध था, अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मुस्लिम समुदाय को राहत दी है.
कलेक्टर की जांच पर क्या लगी रोक?
मुसलमानों को वक्फ कानून में कलेक्टर की जांच करने पर आपत्ति थी. वक्फ कानून में एक प्रावधान था जिसमें कहा गया था कि अगर कलेक्टर जांच करता है कि कोई संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो ऐसी संपत्ति को जांच के दौरान वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा. अगर कलेक्टर को शक है कि कोई ज़मीन सरकारी है, तो जाँच होने तक उसे वक्फ की ज़मीन नहीं माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने यह माना है कि किसी कानून की संवैधानिकता का अनुमान हमेशा उसके पक्ष में होता है. कोर्ट ने वक्फ अधिनियम के उस प्रावधान पर भी रोक लगाई जिसमें जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया गया था है कि क्या वक्फ के रूप में घोषित संपत्ति कहीं सरकारी संपत्ति है और इसके परिणामस्वरूप उस प्रॉपर्टी की स्थिति पर आदेश जारी करेगा.
कोर्ट ने कहा कि हमने 1923 के अधिनियम से लेकर अब तक की विधायी पृष्ठभूमि का अध्ययन किया है. हमने प्रत्येक धारा को लेकर प्राथमिक स्तर पर चुनौती पर विचार किया, और पक्षों को सुनने के बाद यह पाया कि पूरे अधिनियम के प्रावधानों पर रोक लगाने का मामला सिद्ध नहीं हुआ है. कोर्ट ने कहा कि कार्यवाही के अंतिम होने तक, संपत्तियों के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे. जब तक स्वामित्व का निर्धारण नहीं हो जाता, तब तक किसी भी वक्फ को संपत्ति से बेदखल नहीं किया जाएगा.
वक्फ कानून पर नहीं लगी रोक
सीजेआई जस्टिस गवई ने कहा कि सिर्फ Rarest of Rare यानी दुर्लभतम स्थिति में ही समग्र क़ानून पर रोक का आदेश दिया जा सकता है. पीठ ने कहा कि पूर्वधारणा हमेशा विधायिका से पारित क़ानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है. न्यायालय का हस्तक्षेप केवल दुर्लभतम मामलों में ही किया जाता है.
पीठ ने कहा कि हमने क़ानून के सभी प्रावधानों को देखा है. हमने बहस सुनी थी कि क्या पूरे संशोधन अधिनियम पर रोक लगाई जाए या नहीं. सीजेआई ने कहा कि वक़्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था 1923 से थी.
अदालत के फैसले से सभी पक्षकार खुश
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मुस्लिम पक्षकारों ने भी सराहा और कानून के समर्थक हस्तक्षेप याचिकाकर्ताओं ने भी संतोषजनक बताया. निर्णय सुनने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस नेता और शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि अंतरिम निर्णय बहुत राहत देने वाला है। वक्फ की संपत्तियों पर अब कोई खतरा नहीं.
वहीं, इस संशोधित कानून के समर्थक अश्विनी उपाध्याय और बरुन ठाकुर ने कहा कि पूरा कानून लागू है. तीन प्रावधानों में से दो को अधिकतम रूप से बरकरार रखा गया है. तीसरे प्रावधान यानी इस्लाम की कम से कम पांच साल प्रैक्टिस के बाद ही वक्फ करने के अधिकार पर ही पूर्ण रोक है.