राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधायिका से पारित विधेयकों पर स्वीकृति का फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट के तीन महीने की समय सीमा तय करने पर राष्ट्रपति ने चीफ जस्टिस को 14 सवालों वाला संदर्भ भेजा है.
केंद्र ने राष्ट्रपति संदर्भ मामले की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें पेश करते हुए कहा है कि राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा, शक्तियों के नाजुक पृथक्करण को बिगाड़ देगी. इससे संवैधानिक अव्यवस्था भी जन्म लेगी.
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से दायर लिखित दलीलों में सुप्रीम कोर्ट को आगाह किया गया है कि राज्यपालों और राष्ट्रपति पर राज्य विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए निश्चित समय-सीमा लागू करना, जैसा कि अदालत ने अप्रैल के एक फैसले में कहा था, सरकार के एक अंग द्वारा उन शक्तियों को अपने हाथ में लेने के समान होगा जो उसके पास निहित नहीं हैं, जिससे शक्तियों का नाजुक पृथक्करण बिगड़ जाएगा और "संवैधानिक अव्यवस्था" पैदा होगी.
पांच जजों की स्पेशल बेंच करेगी मामले की सुनवाई
पांच जजों की विशिष्ट पीठ में ये सुनवाई 19 अगस्त, मंगलवार से शुरू होगी. CJI बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर की विशेष पीठ सुनवाई करेगी. राज्य विधेयकों को मंजूरी के लिए जब राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तब वो उस पर विचार करने के लिए अपने पास रख लेते हैं. तो क्या अदालत राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा और प्रक्रियाएं निर्धारित कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पर मांगा रेफरेंस
राष्ट्रपति के द्वारा इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से मांगे गए रेफरेंस पर CJI जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की विशेष पीठ 19 अगस्त को सुनवाई करेगी. दरअसल राष्ट्रपति के द्वारा तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में सुनवाई करते हुए अप्रैल में दिए गए उस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पर रेफरेंस मांगा है. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक के लिए नहीं रोक सकता.
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राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से जुड़े सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि जब राज्यपाल के पास कोई बिल आता है तो उनके पास क्या विकल्प होता है? और क्या राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है?