
पितृ पक्ष में गया का नाम हर किसी की जुबान पर होता है. माना जाता है कि यहां अपने पितरों के श्राद्ध और पिंडदान से मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसा तीर्थ भी है, जहां सिर्फ मातृ श्राद्ध होता है? ये सिद्ध स्थान गुजरात के पाटन जिले का सिद्धपुर है. यहां सिर्फ मां के लिए पिंडदान और श्राद्ध किए जाते हैं. यही वजह है कि इसे लोग ‘मातृगया’ भी कहते हैं.
क्यों खास है सिद्धपुर?
सिद्धपुर का सबसे अहम तीर्थ है हर्ष बिंदु सरोवर, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये भगवान विष्णु के आंसुओं से बना. मान्यता है कि यहीं पर परशुराम ने अपनी माता का श्राद्ध किया था. यही नहीं, कपिल मुनि ने भी अपनी माता देवहूति का पिंडदान यहीं किया था. धार्मिक मान्यता के अनुसार देवहूति दुनिया की पहली मां थीं, जिनका श्राद्ध यहां हुआ.
सिद्धपुर को पवित्र बनाने वाले सिर्फ मिथक नहीं हैं, बल्कि यहां की परंपराएं भी हैं. मोक्ष पीपल नाम से प्रसिद्ध एक वटवृक्ष के नीचे पुत्र अपनी मां के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं और यही वह जगह है, जहां सदियों से उत्तर भारत से आए ब्राह्मण परिवार मातृ श्राद्ध कराते आ रहे हैं.
सिर्फ मां के श्राद्ध की अनोखी परंपरा
कुल वृक्ष नाम से एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म चलाने वाले प्रमोद मिश्रा बताते हैं कि सिद्धपुर का ये बिंदु सरोवर अहमदाबाद से लगभग 115 किलोमीटर दूर है. यहां दक्षिण से लेकर उत्तर भारत तक से लोग आते हैं. यहां 30 परिवार ऐसे हैं, जो पीढ़ियों से मातृ श्राद्ध की परंपरा निभा रहे हैं. इन ब्राह्मणों को ‘औदिच्य’ कहा जाता है, जिसका मतलब है उत्तर से आए लोग. आज भी यहां वंशावली लिखने की परंपरा वैसी ही जीवित है जैसी गया में है. पुरोहित अपनी बहियों से बता देते हैं कि आपके परिवार से पहले कौन-कौन यहां मातृ श्राद्ध कर चुका है. प्रमोद मिश्रा आगे बताते हैं कि गुरु गोलवलकर से लेकर अमिताभ बच्चन तक यहां अपनी मां का पिंडदान कर चुके हैं.

स्थानीय पुरोहितों की जुबानी
सिद्धपुर के वरिष्ठ पुरोहित भरत पुरोहित कहते हैं कि यहां आने वाले लोगों की भावनाएं बहुत अलग होती हैं. पिता के लिए श्राद्ध की परंपरा हर जगह है, लेकिन मां के लिए एक अलग स्थल होना लोगों के दिल को छूता है. यहां सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी अपनी मां, नानी, दादी या परदादी के श्राद्ध के लिए आती हैं.
यहीं के पुरोहित अनिल शुक्ला बताते हैं कि हमारे पास उत्तर और दक्षिण भारत से हजारों लोग हर साल आते हैं. पर एक दिक्कत है कि ट्रेनें यहां से होकर गुजरती हैं लेकिन रुकती नहीं. अगर सरकार यहां एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनों का स्टॉपेज दे दे, तो सिद्धपुर का महत्व और बढ़ सकता है. गया में जैसी सुविधा है, वैसी ही यहां भी होनी चाहिए क्योंकि ये मातृगया है.
श्राद्ध की परंपरा
यहां मातृ श्राद्ध की विधि भी खास है. ब्राह्मण यजमान के लिए चावल से पिंड बनता है जबकि अन्य जातियों के लिए जौ का पिंड तैयार किया जाता है. पुरोहित मंडल के अनुसार यहां 200 से ज्यादा ब्राह्मण परिवार जुड़े हैं, जो सालभर श्राद्ध-तर्पण कराते हैं. सिद्धपुर का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक स्तर पर भी बहुत गहरा है. अक्सर बेटे अपनी मां से सबसे गहरा रिश्ता मानते हैं. जब मां इस दुनिया से चली जाती है तो यहां आकर मातृ पिंडदान करना उनके लिए श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक बन जाता है.