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राजस्थान में कई पहाड़ियां गायब, झारखंड में कोयले का काला खेल... अवैध खनन को लेकर ऑपरेशन सरकार-2 में खुलासा

'ऑपरेशन सरकार-2' में आजतक ने राजस्थान और झारखंड में अवैध खनन के सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया है. जयपुर में अरावली की पहाड़ियां गायब हो रही हैं, वहीं झारखंड में ₹20,000 करोड़ का अवैध कोयला कारोबार फल-फूल रहा है.

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राजस्थान से झारखंड तक फैला हुआ है खनन माफियाओं का नेक्सस  (Photo: Screengrab)
राजस्थान से झारखंड तक फैला हुआ है खनन माफियाओं का नेक्सस (Photo: Screengrab)

राजस्थान की राजधानी जयपुर से लेकर अलवर तक खनन माफियाओं का दुस्साहस चरम पर है. जयपुर में अरावली की 100 मीटर ऊंची पहाड़ियां पूरी तरह गायब की जा चुकी हैं. खनन माफियाओं का कॉन्फिडेंस इतना हाई है कि जैसे कोई उनका कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता है. जयपुर में अवैध खनन से अरावली की पूरी पहाड़ी ही गायब हो चुकी है और खनन माफिया कहते हैं कि पाताल तक भी खोदना पड़ा तो, खोद देंगे.

वहीं अलवर में खनन माफियाओं का सिक्का इतना बुलंद है कि अवैध खनन के बाद पत्थरों से लदे हुए, ओवर लोडेड डंपर थाने के सामने से गुज़रते हैं, मजाल है पुलिस उन्हें रोक ले. बड़ी बात ये भी है कि अलवर में अवैध पत्थरों से भरे इन डंपर वालों ने अपनी नंबर प्लेट से नंबर तक मिटा रखे हैं. अलवर में जब रात हो जाती है, तो यहां अवैध खनन का खेल शुरु होता है, और अवैध खनन के बाद, पत्थरों से ओवर लोडेड ट्रक की आवाजाही तेज होती है.

अगर इन डंपरों के सामने कोई आ भी जाए. तो शायद ये उसे भी कुचल डालें. बड़ी बात तो ये है कि अवैध पत्थरों से भले ये ट्रक अलवर के रामगढ़ नौगांवा क्षेत्र के पुलिस थाने के सामने से बेधड़क, बेखौफ गुज़रते हैं. इतनी डंपरों की नंबर प्लेट पर, नंबर भी मिटा दिये जाते हैं. जब आजतक की टीम ने, जब इन डंपरों को रोककर, बात करने की कोशिश की, तो ये डंपर बिना ब्रेक लगाए, निकलते चले गए. थाने के सामने से गुज़रते डंपर को चेक करने वाला एक पुलिसवाला नहीं है. जबकि डंपरों की नंबर प्लेट मिटी हुई हैं. तो क्या ये सब पुलिस और खनन माफियाओं की मिलीभगत से नहीं चल रहा है? स्थानीय लोग, इन ट्रकों से परेशान हैं, लेकिन कोई एक्शन नहीं होता.

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दावों की विपरीत है हकीकत

अवैध खनन के लिए बदनाम अलवर में अवैध खनन माफिया खुलेआम अवैध खनन की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. अरावली को बचाने के लिए बड़े-बड़े दावे होते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है. मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार अरावली बचाने के लिए अवैध खनन माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी. लेकिन अलवर में कार्रवाई करने के लिए पहुंची खनन विभाग की टीम केवल खानापूर्ति करके वापस लौट गई.

बड़ी बात तो ये है कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में अवैध खनन का खुल्ला खेल चल रहा है, जहां से राजस्थान की सरकार चलती है. सारे अधिकारियों, सारे अफसरों की नाक के नीचे अरावली को खोखला किया जा रहा है.

जयपुर में किस तरह से वैध खनन का एक उदाहरण है कलावाड़ का इलाका, जहां 100 मीटर से ऊंची पहाड़ी है और उसे खोदा जा रहा है. ऊंची ऊंची अरावली की पहाड़ियों को काटा जा रहा है. वन विभाग, माइनिंग विभाग और पुलिस प्रशासन की मिलीभगत की वजह से ये ये खनन हो रहा है. लोगों ने कहा एनजी़टी की टीम भी आई लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. अरावली की परिभाषा को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच अरावली में अवैध खनन के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. पिछले 20 सालों में जितने वैध खनन अनुमति दी गई, उससे दो गुना से ज़्यादा तो अवैध खनन के मामले पकड़े गए हैं.

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अकेले पिछले दो साल में अरावली के 19 जिलों में 1478 अवैध खनन के मामले पकड़े गए हैं. 2024-25 में ही अरावली में अब तक 530 अवैध खनन के मामले पकड़े गए हैं. कांग्रेस और बीजेपी के राज में राजस्थान में 7 साल के 7173 अवैध खनन के मामले दर्ज हुए है उसमें 4181 अवैध खनन के मामले अरावली क्षेत्र में दर्ज किए गए हैं. बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस राज में सरकार अवैध माइनिंग करवाती थी. 5 साल में कांग्रेस सरकार ने अरावली में 2703 अवैध खनन के मामले दर्ज हुए हैं जबकि बीजेपी सरकार ने दो साल में ही अरावली में अवैध खनन के 1478 मामले दर्ज किए जा चुके हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को लेकर, अपने ही आदेश पर रोक लगा दी है. आपको बता दें कि 20 नवंबर को जारी आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर से छोटी पहाड़ियों पर खनन के आदेश दिये थे. लेकिन अब 21 जनवरी 2026 तक खनन पर रोक लगा दी गई है.

अनुमानित आंकड़ों के हिसाब से अरावली में वैध खानों का गणित कुछ ऐसा है-

-11,000 से अधिक खानें 20 जिलों में आवंटित -

-10,000 खानें 100 मीटर से कम ऊंचाई पर संचालित

-1,008 खानें 100 मीटर से अधिक ऊंचाई पर संचालित

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- 747 खानें संचालित 100 मीटर से अधिक ऊंचाई पर संचालित

- 261 खानें नवीनीकरण में 100 मीटर से अधिक ऊंचाई पर संचालित

- 9,500 के आसपास खानें संचालित 100 मीटर से नीचे संचालित

-10,000 खानें करीब 900 वर्ग किमी क्षेत्र में संचालित

अब आगे अरावली की पहाड़ियों को लेकर, सुप्रीम कोर्ट का क्या आदेश आता है, और उसके बाद खनन..... माफियाओं पर सरकार कैसा और किस तरह का एक्शन लेती है, ये देखने वाली बात होगी.

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झारखंड में कोयला खनन का सिंडिकेट

खनन ही नहीं बल्कि देशभर में खनन माफियाओं के अलग-अलग सिंडिकेट काम कर रहे हैं, झारखंड में भी कोयला के खनन माफियाओं का गठजोड़ दशकों से एक्टिव है. वक्त बदला, सरकारे बदली लेकिन आजतक झारखंड के खनन माफियाओं का सिंडिकेट नहीं टूटा. सरकारी मुलाजिमों, सफेदपोशों और खनन माफियाओं का गठजोड़ आजतक बदस्तूर जारी है.क्योंकि झारखंड की कोयला खदाने, खनन सिंडिकेट के लिए नोट छाप ने की टकसाल है.

देश के कुल खनिज का 40% का भंडार झारखंड में है. लिहाजा वैध के साथ अवैध खनन ने यहां एक समांतर उद्योग का रूप ले लिया है. एक अनुमान के मुताबिक 20,000 करोड़ से भी ज्यादा का टर्नओवर है. कोयले के अवैध कारोबार के काले साम्राज्य में सबकुछ काला है लेकिन इसको संचालित करने वाले सफेदपोश है. माफिया और सिस्टम का ऐसा गठजोड़ की ईडी, सीबीआई और सीआईडी भी इसे दशकों से तोड़ नहीं पाई है.

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आजतक की टीम ने रामगढ़ के कुजू के बंद कोयले की खदान का दौरा किया, जहां वैध रूप से खनन का काम बंद हो चुका है, लेकिन आज भी अवैध खनन का खेल जारी है. सरकार को पता है, स्थानीय प्रशासन को अवैध खनन की पूरी जानकारी हैं, लेकिन कोयला माफियाओं के खेल पर आजतक रोक नहीं लगाई जा सकी.

सत्ता पक्ष और विपक्ष की तरफ से हमेशा कोयले के अवैध खनन पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल चलता रहता हैं, लेकिन अवैध खनन की असली कीमत झारखंड की जनता चुका रही है, क्योंकि झारखंड की प्राकृतिक संपदा पर डाका डाला जा रहा है, एक तरफ सरकार के राजस्व पर चोट तो दूसरी तरफ कुदरत पर सीधा प्रहार.

अवैध खनन को लेकर जिला प्रशासन की अनदेखी और जिम्मेदारों की चुप्पी, कई सवाल उठता है. सवाल यही है कि अवैध खनन का सच सब जानते हैं, खनन माफियाओं के सिंडिकेट के बारे में सब जानते है तो अब तक शिकंजा क्यों नहीं कसा जा सका, तो इसका जवाब है-कोयले के अवैध खनन से हर दिन क करोड़ों की काली कमाई, वही काली कमाई जिसमें सफेदपोशों से लेकर सरकारी मुलाजिमों का हिस्सा तय है.

सबका कमीशन फिक्स

 झारखंड का धनबाद भी अवैध कोयला कारोबार की राजधानी बन चुका है. अवैध खनन से रोज़ाना करोड़ों रुपए की लूट हो रही है. आंकड़ों की मानें तो, जितनी राजस्व की लूट धनबाद में हो रही है, उससे पूरा झारखंड रोशनी से जगमगा सकता है. अवैध कोयला सिंडिकेट ने धनबाद को ऐसा गिरफ्त में लिया है कि प्रतिदिन यहां से अवैध खनन के बाद, अवैध कोयले से लोड होकर, 500 ट्रक रोज़ाना ज़िले से बाहर निकलते हैं. और ये सब धनबाद प्रशासन के संरक्षण में हो रहा है. बाकायदा अवैध खनन और अवैध कोयला एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने के लिए पुलिस और प्रशासन के रेट फिक्स हैं.

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धनबाद में बीसीसीएल और ईसीएल की कोयला खदानें हैं, लेकिन धनबाद में कोयला तस्करी इस कदर बढ़ गई है कि बीसीसीएल भी चिंतित है. झारखंड में बड़े पैमाने पर, अवैध खनन और कोयले की चोरी हो रही है. आलम ये है.....कि धनबाद ज़िले की कोई ऐसी सड़क होगी, जहां दिन रात, कारों, ट्रैक्टरों, ट्रकों से अवैध कोयला की ढुलाई ना होती हो. अवैध खनन माफिया, ज़मीन के नीचे से जान हथेली पर रखकर, कुआं बनाकर कोयला निकलवाते हैं. एक खदान में, 30 से 40 की संख्या में लोग अंदर जाकर, कोयले के अवैध खनन कर रहे हैं.

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