
मुंबई की बारिश ने शहर को अस्त-व्यस्त कर दिया है. सड़कों पर पानी भर गया, पब्लिक ट्रांसपोर्ट ठप हो गया और हजारों लोग फंस गए. दूसरी तरफ, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर हाल ही में अचानक आई बाढ़ से जूझ रहे हैं. अगस्त का आधा महीना भी खत्म नहीं हुआ और इन लगातार आपदाओं ने एक बार फिर दिखा दिया कि भारत किस कदर चरम मौसमी हालात के सामने कमजोर है – और इसकी कीमत कितनी भारी है.
पिछले 25 सालों में प्राकृतिक आपदाओं ने भारत को 12.6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान पहुंचाया है. ये आंकड़े स्विस री ग्रुप (Swiss Re Group) की रिपोर्ट से आए हैं, जो दुनिया की बड़ी री-इंश्योरेंस और इंश्योरेंस कंपनियों में से एक है. यानी औसतन हर साल करीब 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान सिर्फ आपदाओं की वजह से होता है.
कब-कब कितना नुकसान हुआ?
हर साल नुकसान अलग-अलग रहा है, लेकिन कुछ साल सबसे ज्यादा तबाही लेकर आए.
2001 – भुज भूकंप: ₹67,695 करोड़
2005 – मुंबई बाढ़: ₹89,829 करोड़
2014 – चक्रवात हुडहुड और जम्मू-कश्मीर बाढ़: ₹1.45 लाख करोड़ (सबसे महंगा साल)
2019 – चक्रवात फानी और अन्य बाढ़ें: ₹85,428 करोड़
2023 – चक्रवात बिपरजॉय और मिचाउंग, हिमाचल व सिक्किम की बाढ़: ₹1.05 लाख करोड़

बाढ़ और चक्रवात सबसे महंगे साबित
डेटा के मुताबिक, पानी से जुड़ी आपदाएं जैसे बाढ़ और चक्रवात भारत की जेब पर सबसे ज्यादा भारी पड़ीं. पिछले 20 सालों में आपदाओं से हुए कुल आर्थिक नुकसान का 67% सिर्फ बाढ़ से हुआ. वहीं, प्राकृतिक आपदाओं से हुई मौतों में से 66% मौतें बाढ़ के कारण हुईं.
वजह: शहरों का फैलाव और तेज बारिश
रिपोर्ट ने साफ किया है कि बिना सोचे-समझे हो रहा शहरीकरण इस हालात को और खराब कर रहा है.
2000 से अब तक भारत का बना-बनाया इलाका लगभग दोगुना हो गया है.
झीलें, तालाब, नाले और ग्रीन एरिया खत्म हुए, जिससे पानी का निकलना मुश्किल हो गया.
नतीजा: शहर बाढ़ की चपेट में ज्यादा आने लगे.
इसके अलावा, वैज्ञानिक जर्नल नेचर (Nature) में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, मध्य और पश्चिम भारत में अत्यधिक बारिश वाले इवेंट्स तीन गुना बढ़े हैं. यानी अब कम समय में बहुत तेज बारिश होना आम होता जा रहा है.