केरल विधानसभा ने विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के खिलाफ सोमवार को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने यह प्रस्ताव सदन में पेश किया, जिस पर विपक्ष ने कुछ संशोधन सुझाए. सरकार ने इनमें से कई को स्वीकार किया और फिर प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ.
प्रस्ताव में कहा गया कि केंद्रीय चुनाव आयोग का मतदाता सूची को SIR प्रक्रिया से गुजारने का कदम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की एक चालाकी भरी पुनरावृत्ति लगता है. बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया ने इस आशंका को और गहरा कर दिया है.
'जल्दी में SIR को लागू करना नीयत पर सवाल खड़े करता है'
प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि बिहार की मतदाता सूची में संशोधन को बहिष्करण की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है. मतदाता सूची से नामों को बिना किसी ठोस कारण के हटाया गया है और आशंका जताई जा रही है कि यही तरीका अब राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनाया जा सकता है.
प्रस्ताव में कहा गया है कि SIR जैसी प्रक्रिया जल्दबाजी में लागू करना लोगों की इच्छा को नकारने के बराबर है. निकट भविष्य में राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं और उसके बाद विधानसभा चुनाव. ऐसे समय में SIR को जल्दबाजी में लागू करना इनकी नीयत पर सवाल खड़े करता है.
'वोटिंग के लिए मांगे जा रहे माता-पिता की नागरिकता के दस्तावेज'
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि SIR के तहत 1987 के बाद जन्मे लोगों से मतदान के लिए अपने माता-पिता की नागरिकता दस्तावेज जमा करने की मांग की जा रही है, जबकि 2003 के बाद जन्मे लोगों के लिए माता और पिता दोनों के दस्तावेज जरूरी हैं. यह प्रावधान वयस्क मताधिकार का उल्लंघन है और संविधान के अनुच्छेद 326 के खिलाफ है.