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'AQI और फेफड़ों की बीमारियों के बीच कोई सीधा कनेक्शन नहीं...', राज्यसभा में पर्यावरण राज्य मंत्री का जवाब

सरकार ने संसद में कहा है कि उच्च AQI और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाला कोई ठोस डेटा नहीं है, हालांकि वायु प्रदूषण को सांस से जुड़ी बीमारियों को बढ़ाने वाला एक अहम कारण माना गया है. यह जानकारी पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने बीजेपी सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी के सवाल के जवाब में दी.

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पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने स्वीकार किया कि वायु प्रदूषण सांस से जुड़ी बीमारियों को बढ़ाने वाले कारकों में से एक है. (Photo: PTI)
पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने स्वीकार किया कि वायु प्रदूषण सांस से जुड़ी बीमारियों को बढ़ाने वाले कारकों में से एक है. (Photo: PTI)

सरकार ने कहा है कि अधिक एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI स्तर और फेफड़ों की बीमारियों के बीच सीधे संबंध को साबित करने वाला कोई ठोस डेटा मौजूद नहीं है. सरकार ने गुरुवार को यह जानकारी संसद को दी. राज्यसभा में लिखित जवाब में पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने हालांकि यह स्वीकार किया कि वायु प्रदूषण सांस से जुड़ी बीमारियों और उनसे संबंधित रोगों को बढ़ाने वाले कारकों में से एक है.

बीजेपी सांसद ने पूछा सवाल

कीर्ति वर्धन सिंह बीजेपी सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी के सवाल का जवाब दे रहे थे. बाजपेयी ने पूछा था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि अध्ययन और मेडिकल जांचों से यह सामने आया है कि दिल्ली एनसीआर में लंबे समय तक खतरनाक AQI स्तर के संपर्क में रहने से लंग फाइब्रोसिस जैसी बीमारी हो रही है, जिसमें फेफड़ों की क्षमता स्थायी रूप से कम हो जाती है.

'क्या सरकार के पास लोगों को बीमारियों से बचाने का समाधान?'
 
बीजेपी सांसद ने यह भी जानना चाहा था कि क्या दिल्ली एनसीआर के लोगों में फेफड़ों की इलास्टिसिटी लगभग 50 फीसदी तक घट गई है. अच्छे AQI वाले शहरों में रहने वाले लोगों की तुलना में ऐसा बताया जा रहा है.

इसके अलावा उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार के पास दिल्ली एनसीआर के लाखों निवासियों को पल्मोनरी फाइब्रोसिस, सीओपीडी, एम्फाइसीमा, फेफड़ों की क्षमता में कमी और लगातार घटती लंग इलास्टिसिटी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए कोई समाधान है.

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पर्यावरण राज्य मंत्री ने दिया जवाब

अपने जवाब में मंत्री ने कहा कि वायु प्रदूषण से जुड़े मुद्दों पर प्रोग्राम मैनेजर, मेडिकल अधिकारियों और नर्सों, नोडल अधिकारियों, सेंटिनल साइट्स, आशा जैसे फ्रंटलाइन वर्कर्स, महिलाओं और बच्चों जैसे संवेदनशील समूहों तथा ट्रैफिक पुलिस और नगर निगम कर्मियों जैसे पेशेवर रूप से प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले लोगों के लिए विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार किए गए हैं.

उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों को लेकर सूचना, शिक्षा और कम्युनिकेशन मटेरियल अंग्रेजी, हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किया गया है. इसके साथ ही नेशनल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ के तहत भी विभिन्न संवेदनशील समूहों के लिए विशेष आईईसी सामग्री तैयार की गई है.

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