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न्यूक्लियर ब्लैकमेल खत्म, दुश्मनों की पहचान... भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद उप-महाद्वीप में बदलाव के 5 बड़े कारण

पाकिस्तानी सेना का मानना था कि भारत अपनी पारंपरिक सैन्य श्रेष्ठता का इस्तेमाल करके आतंकवादी हमलों के लिए उसे सजा नहीं देगा क्योंकि उसे डर था कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. यह विश्वास तब और मजबूत हुआ जब 1993, 2006 और 2008 में मुंबई पर हुए कई आतंकवादी हमलों में कोई सजा नहीं मिली.

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ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी ने किया था आदमपुर एयरबेस का दौरा
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी ने किया था आदमपुर एयरबेस का दौरा

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान करीब एक महीने पहले भारतीय फाइटर जेट और मिसाइल लॉन्चर्स ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया है. भारत ने जवाबी हवाई और ज़मीनी हमलों की एक सीरीज में आतंकवादी अड्डों पर हमला किया और पाकिस्तानी एयरबेस और रडार को भी तबाह कर दिया. भारत ने 6 दशक से ज्यादा पुराने सिंधु जल समझौते को भी पहली बार सस्पेंड कर रखा है. ऑपरेशन सिंदूर को 1998 के पोखरण-2 परमाणु परीक्षण के बाद भारत का सबसे बड़ा रणनीतिक कदम माना जा रहा है और इसके पीछे 5 बड़ी वजह हैं.

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पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लैकमेल खत्म

पाकिस्तान ने 1980 के दशक में भारत से पहले ही सीक्रेट तरीके से परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर ली थी. भारत ने 1974 में एक न्यूक्लियर डिवाइस टेस्ट किया था लेकिन वह डिवाइस हथियार नहीं था. यह उपमहाद्वीप की एक पहेली है कि भारत ने पहले परीक्षण तो किया लेकिन उसने हथियार बनाना बाद में शुरू किया. 1980 के दशक के आखिर में खुफिया जानकारी से यह पता चला कि पाकिस्तानी परमाणु हथियार कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा है. तब तक पाकिस्तानी सेना ने परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर ली थी और उसके बाद अपनी मानसिकता बदल दी.

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पाकिस्तानी सेना का मानना था कि भारत अपनी पारंपरिक सैन्य श्रेष्ठता का इस्तेमाल करके आतंकवादी हमलों के लिए उसे सजा नहीं देगा क्योंकि उसे डर था कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. यह विश्वास तब और मजबूत हुआ जब 1993, 2006 और 2008 में मुंबई पर हुए कई आतंकवादी हमलों में कोई सजा नहीं मिली. उनकी बात को 2001-02 में ऑपरेशन पराक्रम ने भी पुष्ट किया, जब भारत ने संसद पर हमले का जवाब देने के लिए अपनी पूरी सेना को सीमाओं पर तैनात कर दिया, लेकिन छह महीने बाद उन्हें वापस बुला लिया. इस गतिरोध के कारण कमोडोर सी उदय भास्कर जैसे विद्वानों ने 'परमाणु हथियारों से प्रेरित आतंकवाद' या NWET का नाम दिया है. यह नीति अब अपने अंत तक पहुंच गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने दिखाया है कि भारत अब पाकिस्तान के परमाणु हथियारों या उसके न्यूक्लियर ब्लैकमेल से परेशान नहीं है. इसके अलावा एक और फैक्ट है जिसका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को साफ तौर पर किया था.

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PAK स्टेट और नॉन-स्टेट का फर्क मिटा

पाकिस्तानी सेना ने हमेशा से ही नॉन-स्टेट एक्टर को स्टेट के मददगार के रूप में इस्तेमाल किया है. 1947 में पड़ोसी मुल्क ने जम्मू-कश्मीर पर हमले करने के लिए उत्तर-पश्चिम सीमांत इलाकों से कबायलियों का इस्तेमाल किया. 1965 में जम्मू-कश्मीर में विद्रोह भड़काने के लिए आदिवासियों के वेश में विशेष बलों की घुसपैठ कराई. 1999 में कारगिल की ऊंचाइयों पर कब्जा करने के लिए उग्रवादियों के वेश में अपनी नॉर्दन लाइट इन्फैंट्री की घुसपैठ कराई. 1980 के दशक से ही पाक सेना और इसकी ISI ने अफगान युद्ध (1979-1988) की आड़ में अपने टेरर इंफ्रास्ट्रक्चर स्किल को मजबूत किया जो अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ वेस्ट की तरफ से फंड किया गया प्रॉक्सी वॉर था. जब अफगान युद्ध खत्म हुआ, तो पाकिस्तान ने ऑपरेशन साइक्लोन के बचे हुए इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया. पाकिस्तानी सेना ने हमेशा यह दिखावा किया कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन 'गैर-सरकारी तत्व' यानी नॉन-स्टेट एक्टर हैं, जिन पर स्टेट का कोई कंट्रोल नहीं है.

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बाद में जब टीटीपी जैसे आतंकवादी संगठन उसके खिलाफ हो गए, तो पाकिस्तान ने इन हमलों का इस्तेमाल विक्टिम कार्ड खेलने के लिए किया. हर बार जब भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को पोसने का आरोप लगाने की कोशिश की, तो इस्लामाबाद ने कहा कि वह भी आतंकवाद का शिकार है. पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में दो दशक के आतंक के खिलाफ युद्ध (2001-2021) में पश्चिम को धोखा देने के लिए इस रणनीति का इस्तेमाल किया. इसने अमेरिका को धोखा दिया कि वह उनके साथ है जबकि वह तालिबान को सीक्रेट ट्रेनिंग और पनाह दे रहा था. 9/11 के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की मिलिट्री एकेडमी काकुल से सिर्फ एक किलोमीटर दूर एक सुरक्षित घर में छिपा हुआ था.

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भारत के लिए यह मुखौटा 16 अप्रैल, 2025 को उतरा. उस दिन पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने टू-नेशन थ्योरी की वकालत करते हुए एक बेहद भड़काऊ और सांप्रदायिक भाषण दिया था. जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को 26 पर्यटकों की पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना ने मारे गए आतंकवादियों का सैन्य सम्मान के साथ जनाजा निकाला. आतंकवादी खुलेआम राजनेताओं के साथ मंचों पर दिखाई दिए हैं. अब इनकार करने का मुखौटा उतर चुका था. आगे से भारत में किसी भी आतंकवादी हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना को दोषी माना जाएगा. 

आतंकवाद को पालना अब महंगा सौदा

आतंकवाद पाकिस्तानी सेना के लिए कम लागत वाला विकल्प था. वर्षों से ट्रेनिंग कैंप और आतंकी ढांचे को चलाने पर कुछ करोड़ रुपये खर्च करके, इसने जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना की पूरी डिवीज़न को जकड़ लिया. पाकिस्तानी सेना का मानना था कि जम्मू-कश्मीर में जकड़ी गई भारतीय सेना की हर डिवीज़न, पारंपरिक युद्ध में उसके खिलाफ़ तैनात की जाने वाली डिवीज़न से एक कम थी. पाकिस्तान की सेना ने भारत पर लगातार हमले जारी रखे. जब लश्कर जैसे आतंकी संगठन आत्मनिर्भर हो गए और जनता के चंदे से अपने संगठन चलाने लगे, तो पाकिस्तानी सेना और उसकी ISI पर वित्तीय बोझ और कम हो गया.

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भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के अंदर आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप और सैन्य ठिकानों को नष्ट कर दिया. एक दिवालिया पाकिस्तान, जो हाथ-पर-हाथ रखकर अपना जीवन जी रहा है, उसे यह तय करना होगा कि उसे अपनी कीमती विदेशी मुद्रा कहां खर्च करनी चाहिए, ज्यादा लड़ाकू विमानों और मिसाइलों के इंपोर्ट पर या अपने लोगों को खिलाने पर. आतंकवाद को प्रायोजित करना अब कम लागत वाला विकल्प नहीं रह गया है.

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क्या ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को खत्म कर देगा? इसकी संभावना नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पाकिस्तानी सेना जीत को बहुत अलग तरीके से परिभाषित करती है, जैसा कि विद्वान सी क्रिस्टीन फेयर ने एक बार तर्क दिया था. पाकिस्तानी सेना की हार तब नहीं होती जब वह अपना आधा देश खो देती है और उसका सैन्य ढांचा तबाह हो जाता है. पाकिस्तानी सेना की हार तभी होती है जब वह लड़ाई बंद कर देती है.

पाकिस्तानी सेना वास्तव में एक बहुत बड़ा बिजनेस कॉर्पोरेशन है. सेना एक व्यापारिक साम्राज्य, निर्माण कंपनियां, आवास निगम, सुरक्षा एजेंसियां और रसद फर्म चलाती है, जिससे प्रमुख मिलिट्री एलीट क्लास को फायदा मिलता है. इस व्यापारिक साम्राज्य का अनुमान 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा है. एक राज्य के भीतर यह स्वायत्त राज्य इतनी गहराई से जड़ जमाए हुए है कि इसके लिए वास्तव में एक शब्द है- मिलबस या मिलिट्री बिजनेस, जिसे पाकिस्तानी स्कॉलर आयशा सिद्दीका ने गढ़ा है. पाकिस्तानी आर्मी चीफ इस निगम के एमडी और सीईओ भी हैं. ऑपरेशन सिंदूर ने जो किया है, वह पाकिस्तान के आर्मी चीफ को भारत के खिलाफ आतंकी हमला करने से पहले लागत-लाभ विश्लेषण करने के लिए मजबूर करता है, मतलब क्या यह हमला भारत की जवाबी कार्रवाई की लागत से ज़्यादा मेरे लिए कुछ हासिल करेगा?

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भारत में स्वदेशी हथियारों को बढ़ावा 

मोदी सरकार का एक फोकस स्वदेशी हथियारों पर था. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसके अच्छे नतीजे भी देखने को मिले, जब स्वदेशी रूप से विकसित हथियार गेम चेंजर साबित हुए. ऑपरेशन सिंदूर का मुख्य आकर्षण रूस की तरफ से डिजाइन और स्वदेशी रूप से निर्मित Su-30MKI और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल थे. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास यह कॉम्बिनेशन है, एक लड़ाकू जेट जो 200 किलोग्राम वारहेड के साथ एक भारी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ले जा सकता है. यह मिसाइल ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना तेज है, इसलिए यह सामान्य मिसाइलों की तुलना में नौ गुना ज्यादा गतिज ऊर्जा के साथ लक्ष्य पर हमला करती है. 

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यह कॉम्बिनेशन भारत की तरफ से खोजा गया था. ब्रह्मोस एयरोस्पेस, IAF और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के भारतीय इंजीनियरों ने इसे तैयार किया. स्वदेशी रूप से विकसित इंट्रीग्रेटेड एयर कमांड और कंट्रोल सिस्टम (IACCS) ने भारत के सभी एयर डिफेंस सिस्टम को एक नेटवर्क में पिरोया, जिसने पाकिस्तान के हर हमले को नाकाम कर दिया. भारत के स्टार्टअप ने भी ड्रोन की सप्लाई की, जिनका इस्तेमाल भारतीय सेना ने पाकिस्तानी टारगेट के खिलाफ हमलों में किया. ऑपरेशन सिंदूर के सबक स्वदेशी डिफेंस इकोसिस्टम को और बढ़ावा देंगे, जिससे घरेलू सैन्य औद्योगिक परिसर के निर्माण में तेजी आएगी.

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दोस्तों और दुश्मनों की पहचान

युद्ध के कोहरे में सबसे बड़ी चुनौती यह पहचानना है कि आपके दोस्त और दुश्मन कौन हैं. भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर ने कुछ हद तक इस धुंध को साफ कर दिया है. तुर्की, अजरबैजान और चीन का गठजोड़ हमेशा से ही पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है. यह और भी स्पष्ट हो गया क्योंकि तीनों ही देश कूटनीतिक और सैन्य समर्थन के साथ पाकिस्तान के साथ खड़े हुए थे.

एक बड़बोले डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने ही व्यापार को एक लीवर के रूप में इस्तेमाल करके भारत को पाकिस्तान पर गोलीबारी बंद करने के लिए मजबूर किया, वह नई दिल्ली के इस विश्वास को और मजबूत करेगा कि अमेरिकी हथियार शर्तों के साथ आते हैं. रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने बताया कि भारत कभी भी अमेरिकी लड़ाकू विमान नहीं खरीदेगा, क्योंकि वे आपको कभी भी उन युद्धों में लड़ने की इजाजत नहीं देंगे जो वे नहीं चाहते हैं.

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