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दिवाली पर दिल्ली की हवा में घुला जहर, 34 स्टेशन पहुंचे रेड जोन में... AQI ने बढ़ाई चिंता

दिवाली की रात पटाखों से दिल्ली की हवा ज़हरीली हो गई. कुल 38 में से 36 जगहों पर हवा “बहुत खराब” से “गंभीर” स्तर पर रही. सुप्रीम कोर्ट की तय समय सीमा के बाद भी पटाखे फूटेय प्रदूषण में वाहनों और फैक्ट्रियों का बड़ा योगदान रहा, जिससे शहर की हवा सांस लेने लायक नहीं रही.

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दिवाली पर पटाखों से दिल्ली की हवा बिगड़ी (Photo: Reuters)
दिवाली पर पटाखों से दिल्ली की हवा बिगड़ी (Photo: Reuters)

दिवाली की रात जब आकाश रंग–बिरंगे पटाखों से जगमगा रहा था, उसी समय हवा में ज़हर भी घुलने लगा. सोमवार रात दिल्लीवालों ने पूरे जोश से पटाखे फोड़े, नतीजतन हवा जहरीली हो गई. दिल्ली के ज़्यादातर इलाकों में हवा की गुणवत्ता “रेड ज़ोन” यानी “बहुत खराब” से “गंभीर” स्तर पर पहुंच गई.

सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही आदेश दिया था कि सिर्फ “ग्रीन पटाखे” जलाए जा सकते हैं और वो भी रात 8 से 10 बजे तक. लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और थी. लोगों ने सारी पाबंदियों को नज़रअंदाज़ कर देर रात तक पटाखे जलाए. नतीजा यह हुआ कि हवा में ज़हरीले कणों (PM2.5 और PM10) की मात्रा बढ़ गई और हवा सांस लेने लायक नहीं रही.

दिल्ली के 38 प्रदूषण निगरानी केंद्रों में से 36 ने हवा को “रेड ज़ोन” में दर्ज किया. इसका मतलब है कि शहर का लगभग हर कोना धुएं और धूल में घिर गया. रात 10 बजे पूरे शहर का औसतन एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 344 था. जो “बहुत खराब” माना जाता है. कुछ इलाकों में हालात इतने गंभीर थे कि वज़ीरपुर (423), द्वारका (417), अशोक विहार (404) और आनंद विहार (404) में AQI “गंभीर” श्रेणी में पहुंच गया.

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हर सांस में ज़हर क्यों?

दिल्ली की हवा को लेकर चिंता नई नहीं है. सर्दियां शुरू होते ही हवा का बहाव कम हो जाता है, जिससे धूल और धुआं शहर के ऊपर जम जाता है. दिवाली के पटाखे इस पहले से ही खराब हवा में और ज़हर घोल देते हैं. हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण हमारे फेफड़ों, गले और आंखों पर सीधा असर डालते हैं.

सोमवार को दर्ज किए गए आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली की हवा में 15.6 फीसदी प्रदूषण वाहनों के धुएं से आया, और करीब 23.3 फीसदी फैक्ट्रियों और अन्य स्रोतों से. यानी शहर की सड़कों पर गाड़ियों और औद्योगिक इलाकों से निकलता धुआं पटाखों की आग में घी डालने जैसा साबित हुआ.

जब त्योहार जश्न के साथ चिंता भी लाए

दिवाली रोशनी, खुशियों और परिवार के मिलन का त्योहार है, लेकिन अब यह दिल्ली के लिए एक ऐसे दिन में बदल गया है जब लोग अगले दिन मास्क लगाए बिना बाहर निकलने से डरते हैं. हर साल यही कहानी दोहराई जाती है. अदालतें सीमाएं तय करती हैं, सरकारें गाइडलाइन जारी करती हैं, लेकिन पटाखों के शोर और धुएं के आगे सब कुछ बेअसर हो जाता है.

जब दीवाली के बाद पराली जलाने का दौर शुरू होता है, तो हालात और बिगड़ते हैं. हवा में धुआं, वाहनों की भीड़, और ठंडी हवा का रुकना मिलकर शहर को गैस चैंबर बना देते हैं.

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यह भी पढ़ें: दिल्ली-NCR की जहरीली हुई हवा! दिवाली से पहले कर लें ये 5 आसान काम, वरना प्रदूषण कर देगा बेहाल!

सरकार की कोशिशें और सीमाएं

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और “कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट” (CAQM) ने रविवार को ही “ग्रैप” का दूसरा चरण लागू कर दिया था. इसका मकसद था कि अगर हवा और बिगड़े, तो सख्त कदम उठाए जा सकें — जैसे निर्माण कार्य पर रोक, ट्रकों की एंट्री सीमित करना और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना.

इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी की रिपोर्ट में पहले ही चेतावनी दी गई थी कि दिवाली के बाद हवा की हालत “गंभीर” हो सकती है. उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई. मंगलवार और बुधवार को प्रदूषण का स्तर और ऊपर जाने की संभावना जताई गई है.

दिल्ली के लोगों की ज़िंदगी पर असर

दिल्ली में रहने वाले लोग अब जानते हैं कि दिवाली के बाद खिड़कियां बंद करना और एयर प्यूरीफायर चलाना ज़रूरी है. स्कूलों में बच्चे सांस की दिक्कत और खांसी-जुकाम की शिकायतें करने लगते हैं. बुज़ुर्ग और अस्थमा के मरीजों की हालत और बिगड़ जाती है.

दिल्ली का यह वार्षिक प्रदूषण चक्र न तो सिर्फ पर्यावरण का मसला है और न केवल कानून पालन का - यह अब जनस्वास्थ्य का संकट बन चुका है. हर साल अस्पतालों में सांस की तकलीफ वाले मरीजों की संख्या बढ़ती है.

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प्रदूषण बोर्ड के अनुसार:

0–50 AQI अच्छा

51–100 संतोषजनक

101–200 मध्यम

201–300 खराब

301–400 बहुत खराब

401–500 गंभीर माने जाते हैं.
 

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