बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन गैंग के दो सदस्यों की ओर दायर अपील को खारिज कर दिया, जिन्होंने 2010 में जेजे अस्पताल के पास गोलीबारी कर दो लोगों की हत्या कर दी थी. राजन गैंग के सदस्यों ने भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम के एक करीबी सहयोगी को मारने की कोशिश में कांग्रेस नेता भाई जगताप के प्राइवेट सेक्रेटरी सहित दो अन्य लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
दाऊद के साथी पर फायरिंग
फायरिंग की वारदात 13 फरवरी 2010 को हुई थी. उस जगह पर चार लोग आए थे, जहां दाऊद का सहयोगी आसिफ खान जेजे रोड पुलिस स्टेशन की सीमा में पड़ने वाली फूल गली में बैठा था. चारों लोगों ने आसिफ खान पर गोलियां चलाईं, जो वहां से भागने में सफल रहा.
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हालांकि, जगताप के प्राइवेट सेक्रेटरी शकील मोदक और उनके दोस्त आसिफ कुरैशी, जो खान से मिलने गए थे, फायरिंग में गंभीर रूप से घायल हो गए और मौके पर ही उनकी मौत हो गई. सड़क किनारे चल रही गंगूबाई एकनाथ सोनावणे भी गोलीबारी में घायल हो गईं. आरोप है कि राजन के गुर्गे उम्मेद ने गोली चलाने का आदेश दिया था, क्योंकि आसिफ खान दाऊद का काफी करीबी था.
बरी हो गया था छोटा राजन
मुंबई सेशन कोर्ट ने सबूतों के अभाव में राजन और दो अन्य को बरी कर दिया. जबकि दो शूटर मोहम्मद अली शेख और प्रणय राणे को दोषी करार दिया गया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. इसके बाद दोनों ने अपील दायर की और फिलहाल वे मुंबई सेंट्रल जेल में बंद हैं.
अपीलकर्ताओं को 23 अक्टूबर 2010 को पीएसआई अनिल गंगावणे ने गिरफ्तार किया था, जो क्राइम ब्रांच में थे. हिरासत में प्रणय राणे ने वारदात में इस्तेमाल होने वाले हथियार के बारे में जानकारी दी थी. इसके बाद हथियार को चार जिंदा कारतूसों के साथ बरामद किया गया था. इसके बाद दोहरे हत्याकांड के जांच अधिकारी को 12 अक्टूबर 2010 को आरोपियों की हिरासत मिली तो पूरी जांच में तेजी आ गई.
आसिफ खान की गवाही पर सवाल
विशेष सरकारी वकील प्रदीप घरात ने बताया कि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला आसिफ खान की गवाही पर टिका है, जिसे हमले में सीने पर गोली लगी थी. उसने अदालत में हमलावरों की पहचान की थी और खान के अलावा तीन अन्य चश्मदीद गवाह भी थे. आरोपियों की ओर से पेश हुए वकील नितिन सेजपाल और अक्षता देसाई ने कहा कि जब पुलिस ने आसिफ खान का बयान दर्ज किया तो वह बेहोश था और वह हमलावरों के चेहरे नहीं देख पाया क्योंकि वो मौके से भाग गया था. यह भी कहा गया कि गोली लगने के बाद एक अन्य चश्मदीद गंगूबाई भी बेहोश हो गई थी.
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और डॉ. नीला गोखले की बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने हथियार की बरामदगी, मेडिकल जांच करने वाले डॉक्टर और जांच अधिकारी के सबूत के आधार पर अपीलकर्ताओं के अपराध को संदेह से परे साबित करने में काफी हद तक सफलता हासिल की है. साथ ही कानून के मुताबिक दोषसिद्धि सिर्फ एक चश्मदीद की गवाही के आधार पर हो सकती है और ऐसा कोई कानून या सबूत नहीं है जो इसके विपरीत कहता हो. बशर्ते कि गवाह विश्वसनीयता की कसौटी पर खरा उतरता हो. सिर्फ तभी जब कोर्ट पाता है कि चश्मदीद पूरी तरह से अविश्वसनीय गवाह है, तो उसकी गवाही को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाता है और किसी भी तरह की पुष्टि उस दोष को ठीक नहीं कर सकती.
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बेंच ने कहा कि मौजूदा मामले में चार चश्मदीद गवाह हैं. अगर गंगूबाई की गवाही को खारिज कर दिया जाए, जो गोली लगने के बाद बेहोश हो गई थी, तो भी बाकी तीन चश्मदीद गवाहों से भरोसा पैदा होता है. ट्रायल कोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा और दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए बेंच ने कहा, 'यहां दिया गया फैसला और आदेश तर्कसंगत और कानूनी रूप से सही है.'
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का मूल्यांकन किया जाता है, तो अपीलकर्ताओं के अपराध को संदेह से परे साबित करता है. चश्मदीदों की गवाही, पुष्टि करने वाले सबूत आदि की विश्वसनीयता के बारे में ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियों में किसी भी दखल की जरूरत नहीं है. अभियोजन पक्ष ने कानूनी, स्वीकार्य और ठोस सबूतों के आधार पर अपीलकर्ताओं के खिलाफ शक के दायरे से बाहर अपना मामला स्थापित किया है.