राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR ) ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले पर आपत्ति जाहिर की है. आयोग ने इस संबंध में महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध किया है कि वो जल्द से जल्द बॉम्बे हाई कोर्ट के हैरान करने वाले फैसले के खिलाफ अपील दायर करे.
असल में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन हमले से संबंधित एक मामले में फैसला दिया है कपड़े के ऊपर से बच्ची का ब्रेस्ट दबाना, इस दौरान शारीरिक संपर्क न होना मतलब 'स्किन टू स्किन का कॉन्टैक्ट न होना पॉक्सो कानून (Protection of Children from Sexual Offences act) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता है. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा था कि केवल नाबालिग का सीना छूना यौन हमला नहीं कहलाएगा. यौन हमला तब कहलाएगा, जब आरोपी पीड़ित के कपड़े हटाकर या कपड़ों में हाथ डालकर फिजिकल कॉन्टैक्ट करे.
जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की एकल बेंच ने फैसला सुनाते हुए आरोपी के कन्विक्शन में बदलाव किया. आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा-8 के तहत बरी कर दिया गया, जिसमें उसे तीन साल की न्यूनतम सजा मिल सकती थी. बहरहाल, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने नागपुर बेंच के इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार से अपील दायर करने की मांग की है.
वहीं दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने भी इस फैसले को हैरान करने वाला बताया है. बयान जारी कर उन्होंने कहा कि यह फैसला परेशान करने वाला है. यह लगभग बलात्कारियों को नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न के लिए लाइसेंस देने जैसा है. किसी लड़की को छूने की छूट कैसे दी जा सकती है? यह फैसला गलत है और इस पर तत्काल पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. हमें देश में कड़े कानूनों की आवश्यकता है जो एक निवारक के रूप में कार्य करते हैं. महिला सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है और हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं. सुस्त न्याय प्रणाली महिला सुरक्षा के लिए हानिकारक है.
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क्या है मामला
यह मामला 2016 का है. दोषी सतीश बंदू रागड़े 12 वर्षीय बच्ची को अपने घर ले गया था और उसने बच्ची का ब्रेस्ट दबाया. जब बच्ची घर नहीं लौटी तो उसकी मां उसे ढूंढ़ने के लिए निकली. मां ने बच्ची को रागड़े के घर पाया. बाद में बच्ची ने मां को बताया कि रागड़े उसे अमरूद देने के बहाने से अपने घर ले गया था और उसने उसकी ब्रेस्ट दबाया. इसमें मां ने तुरंत पुलिस केस दर्ज कराया था. इस मामले में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी करार दिया था. आरोपी ने निचली अदालत के फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में चुनौती दी थी.