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बीजेपी के मंत्रियों से जनता नाखुश? महाराष्ट्र-हरियाणा के बाद झारखंड में दिखाई जगह

झारखंड चुनाव में मुख्यमंत्री रघुवर दास भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. इसके अलावा स्पीकर और तीन मंत्री भी बाजी हार गए हैं. इन दिग्गजों का हारना एक बार फिर महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव की याद दिलाता है, जहां बीजेपी सरकार के कई मंत्री अपनी सीट बचाने में असफल रहे थे.

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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास

  • झारखंड में सीएम रघुवर दास भी चुनाव हारे
  • हरियाणा चुनाव में हारे थे कुल सात मंत्री
  • महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे को भी मिली थी शिकस्त

झारखंड की सत्ता से भारतीय जनता पार्टी आउट हो गई है और जनता ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया है. झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. इतना ही नहीं, नतीजे इतने निराशाजनक रहे कि मुख्यमंत्री रघुवर दास भी अपनी सीट नहीं बचा पाए हैं. इसके अलावा स्पीकर और तीन मंत्री भी बाजी हार गए. इन दिग्गजों का हारना एक बार फिर महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव की याद दिलाता है, जहां बीजेपी सरकार के कई मंत्री अपनी सीट बचाने में असफल रहे थे.

महाराष्ट्र और हरियाणा में इसी साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे. 24 अक्टूबर को जब दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए प्रत्याशित नहीं रहे. हरियाणा में बीजेपी पूर्ण बहुमत से दूर रह गई. सरकार बनाने का संकट पैदा हो गया. सरकार बनाने के लिए बीजेपी को जननायक जनता पार्टा (JJP) का समर्थन लेना पड़ा और उसके नेता दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाना पड़ा. ये हालात तब पैदा हुए, जब मनोहर लाल खट्टर के कई मंत्री ही अपनी सीट बचाने में फेल हो गए.

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हरियाणा में हारे कुल 7 मंत्री

मनोहर लाल खट्टर की पूर्ण बहुमत वाली सरकार में मंत्री रहे सात नेता विधानसभा चुनाव हार गए. खट्टर के मंत्रियों में राम बिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु सिंह, ओम प्रकाश धनखड़, कविता जैन, कृष्ण लाल पंवार, मनीष कुमार ग्रोवर और कृष्ण कुमार चुनाव हार गए. दिलचस्प बात ये है कि महज 90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में सात सीटों पर बीजेपी सरकार के मंत्रियों को ही जनता ने नकार दिया. सिर्फ इतना ही नहीं, ये वो मंत्री थे, जिनका न सिर्फ रसूख था, बल्कि भारी-भरकम विभाग भी संभाल रहे थे. हरियाणा की तरह ही महाराष्ट्र में बीजेपी को ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा.

महाराष्ट्र में स्पीकर और 7 मंत्रियों को मिली शिकस्त

महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने का कारनामा किया, लेकिन वह बहुमत से काफी दूर रह गई. इससे भी बड़ा झटका ये लगा कि देवेंद्र फडणवीस सरकार में मंत्री रहे कई चेहरे भी हार गए. हालांकि, इनमें कुछ मंत्री शिवसेना कोटे के भी थे. महाराष्ट्र चुनाव में स्पीकर और 7 मंत्रियों को शिकस्त मिली. इनमें चार मंत्री बीजेपी के थे. जबकि स्पीकर और तीन मंत्री शिवसेना के थे. बीजेपी कोटे से देवेंद्र फडणवीस कैबिनेट में मंत्री रहे पंकजा मुंडे, राम शिंदे, बाला भेगडे और अनिल बोंडे को शिकस्त मिली. पंकजा मुंडे को परली सीट से उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे ने ही पराजित किया. जबकि शिवसेना कोटे से फडणवीस सरकार में मंत्री रहे अर्जुन खोतकर, विजय शिवतारे, अनिल बोंडे और जयदत्त क्षीरसागर चुनाव हारे. इनके अलावा स्पीकर रहे शिवसेना नेता विजय औटी भी अपनी सीट बचाने में सफल नहीं हो सके.

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इस तरह महाराष्ट्र चुनाव गठबंधन में लड़ने वाली बीजेपी-शिवसेना कोटे के आधे-आधे मंत्रियों को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. अब झारखंड में भी बीजेपी को महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे झटके लगे हैं.

सीएम, स्पीकर भी नहीं बचा पाए सीट

बीजेपी के रघुवर दास ने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड भले ही अपने नाम किया हो, लेकिन सीएम रहते हुए ही जब वो जनता के बीच चुनावी मैदान में उतरे तो वो बुरी तरह फेल हो गए. रघुवर ने जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव लड़ा. दिलचस्प बात ये है कि रघुवर के सामने उनकी कैबिनेट में मंत्री रहे और बागी निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय थे, जिन्होंने रघुवर दास को करारी शिकस्त दी. रघुवर के अलावा विधानसभा स्पीकर और तीन मंत्रियों की सीट भी जनता के गुस्से की भेंट चढ़ गई.

विधानसभा स्पीकर दिनेश उरांव ने सिसई सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वो हार गए. इनके अलावा राज पलिवार, रामचंद्र सहिस और डॉ. लुईस मरांडी को भी शिकस्त का सामना करना पड़ा.

इन तीन राज्यों के चुनावी नतीजों से साफ है कि जनता ने जहां बीजेपी को झटका दिया है, वहीं उससे भी ज्यादा बीजेपी सरकारों में मंत्री रहे नेताओं को खारिज किया है. हालांकि, मंत्रियों का चुनाव हारना अचरज की बात नहीं है, लेकिन लगातार हो रहे चुनावों में मंत्रियों का बड़ी संख्या में हारना जरूर सवाल खड़े करता है कि जनता मंत्रियों के कामकाज से भी खुश नहीं है और यही वजह है कि उन्हें खारिज किया जा रहा है.

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