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उमर अबदुल्ला ने क्यों नहीं पहना 'कांटों का ताज', जानें 5 कारण

जम्मू-कश्मीर के घटनाक्रम के बाद राज्य में मुख्य विपक्षी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और राज्य के पूर्व सीएम उमर अबदुल्ला ने राज्यपाल एनएन वोहरा से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद उमर ने कहा कि वह पीडीपी को समर्थन देकर सरकार बनाने नहीं जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी को सरकार चलाने का जनादेश नहीं मिला है.

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उमर अबदुल्ला (फोटो- Getty)
उमर अबदुल्ला (फोटो- Getty)

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जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने अचानक पीडीपी से समर्थन वापस लेकर करीब तीन साल से चले आ रहे गठबंधन को तोड़ दिया. बीजेपी ने इसे राष्ट्रहित में लिया गया फैसला बताया है. बीजेपी की पार्टनर पीडीपी को भी बीजेपी के इस फैसले की भनक नहीं थी. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है.

इस घटनाक्रम के बाद राज्य में मुख्य विपक्षी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और राज्य के पूर्व सीएम उमर अबदुल्ला ने राज्यपाल एनएन वोहरा से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद उमर ने कहा कि वह पीडीपी को समर्थन देकर सरकार बनाने नहीं जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी को सरकार चलाने का जनादेश नहीं मिला है.

हालांकि, उमर की यह बात उनके पिछले स्टैंड से अलग है. 2014 में राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आने के बाद उमर अबदुल्ला ने बीजेपी और पीडीपी दोनों के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की थी. हालांकि उनकी बात किसी से नहीं बनी. आइए जानते हैं कि उमर अबदुल्ला के अब पीडीपी के साथ मिलकर सरकार न बनाने की क्या वजहें हो सकती हैं.

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1- PDP-BJP का कांटों का ताज क्यों पहनें

बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन इसलिए तोड़ा, क्योंकि इस सरकार के शासनकाल में अधिकांश समय राज्य अशांत ही रहा. बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद से राज्य में हालात और खराब हो गए हैं. ऐसे में उमर अबदुल्ला का बीजेपी और पीडीपी का बनाया कांटों का ताज पहनना बेवकूफी ही होती. सरकार में आने पर उन्हें पिछली सरकार के कामों की आलोचना भी झेलनी पड़ती.

2- अपनी जमीन गंवाने का खतरा

नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर की राजनीति में ही सक्रिय है. यहां पीडीपी उसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी है. उमर अबदुल्ला राज्य के पिछले सीएम थे. ऐसे में उनका पीडीपी से हाथ मिलाना अपने प्रतिद्वंद्वी के सामने सरेंडर करने से कम नहीं होता. ऐसा एक गठबंधन उत्तर प्रदेश में देखने को मिला, जहां बीजेपी के खिलाफ सपा और बसपा ने हाथ मिलाया है. ऐसे गठबंधन में एक पार्टी को अपनी जमीन गंवाने के लिए तैयार होना पड़ेगा. उमर जम्मू में ऐसा नहीं करना चाहते. 

3- जिसे कोसा उसके साथ कैसे जाएं

उमर अबदुल्ला सरकार बनने के बाद से ही आए दिन बीजेपी और पीडीपी सरकार के खई फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं. इसमें वह पाकिस्तानी सीमा पर बढ़ती आतंकी घटनाओं, केंद्र सरकार के फैसले, सेना के कई एनकाउंटर और मेजर गोगोई के कश्मीरी युवकों को मानव ढाल बनाने जैसे फैसलों की भी आलोचना कर चुके हैं. ऐसे में वे जिस सरकार की आलोचना करते रहे हैं, उनका पीडीपी के साथ जाना उनकी राजनीति के लिए सही नहीं होता. राज्य में जमीनी स्तर पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता भी इसके लिए तैयार नहीं हो पाते.

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4- UPA/महागठबंधन में अपनी जगह क्यों गंवाएं

नेशनल कॉन्फ्रेंस यूपीए की पार्टनर रही है. कांग्रेस ने 2008 में राज्य विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन भी किया था. इसके बाद ही उमर अबदुल्ला राज्य के सबसे युवा सीएम बने थे. इस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस 2019 में लोकसभा चुनावों के लिए बन रहे महागठबंधन का भी हिस्सा है. उमर अबदुल्ला कुछ समय पहले दिल्ली में सोनिया गांधी की डिनर पार्टी में शामिल हुए थे. पीडीपी ने 2008 में यूपीए से अपना नाता तोड़ लिया था. ऐसे में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले उमर अबदुल्ला पीडीपी के साथ जाकर महागठबंधन से बाहर नहीं होना चाहते.  

5- आधे समय के लिए सत्ता में क्यों आएं

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल के लिए होता है. PDP-BJP की सरकार मार्च 2015 में बनी थी. ऐसे में यहां पर सरकार को करीब ढाई साल हो गए हैं. छह महीने के लिए राज्यपाल शासन होगा तो राज्य में करीब-करीब आधे समय के लिए सरकार का समय बचता. नेशनल कॉन्फ्रेंस के गणित के हिसाब से पीडीपी-बीजेपी की सरकार के अलोकप्रिय शासन को संवारने के लिए इतना समय काफी नहीं होता. उमर की राजनीति के लिए इससे बेहतर यही है कि मौजूदा सरकार की विफलताओं को गिनाते हुए नए चुनावों की तैयारी करें.

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इन वजहों से ही उमर कहा है कि वह राज्य में राज्यपाल शासन का समर्थन करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने राज्य में जल्द चुनावों की मांग की है. उमर को उम्मीद है कि आलोचना के केंद्र में रही पीडीपी-बीजेपी सरकार के बाद वह फिर से राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका में आ सकते हैं. सरकार में रही बीजेपी ने राज्य सरकार के शासनकाल को असफल बनाकर उमर का काम आसान कर दिया है. वह शुरू से ही इस गठबंधन पर सवाल उठाते रहे हैं.

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