कोरोना के क्रिटिकल केस में इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाले टोसीलीजुमेब और रेमडेसिविर इंजेक्शन के पिछले कई दिनों से सूरत के बाजार में न मिलने की खबर आ रही थी. मरीजों की शिकायत थी कि इंजेक्शन मिल भी रहा है तो उसकी कीमत से 5 या 10 गुना ज्यादा तक वसूली जा रही है. दूसरी ओर इंजेक्शन की कालाबाजारी को रोकने के लिए केंद्र की ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी ने राज्य की अलग-अलग टीमों को जानकारी दी थी. इसके बाद अथॉरिटी की ओर से इन इंजेक्शन की कालाबाजारी को लेकर चलाए गए ऑपरेशन में एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश हुआ है. इस रैकेट के तार अहमदाबाद के सिविल कोविड अस्पताल तक से जुड़े बताए जा रहे हैं.
सूरत की एक महिला फार्मासिस्ट के जरिए मरीजों को उनके जरूरत के हिसाब से 50 हजार से 1 लाख रुपये तक रकम वसूल कर एक इंजेक्शन बेचने का बड़ा घोटाला सामने आया है. फूड एंड ड्रग्स कमिश्नर डॉ. एच. जी. कोशिया के मुताबिक सूरत में टोसीलीजुमेब इंजेक्शन की कालाबाजारी की खबर मिली थी. इसके बाद एक दवाई के व्यापारी को नकली ग्राहक बनाकर सूरत के सार्थक फार्मा नाम की होलसेल एजेंसी में भेजा गया. वहां उन्हें इस इंजेक्शन की कीमत 4500 के बदले कई गुना ज्यादा बताया गया. इस मामले में जब डीजीसीआई ने जांच की तो इसके तार अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के फार्मासिस्ट तक जुड़े मिले. कमिश्नर डॉ. कोशिया का कहना है कि इस मामले में अब वे अहमदाबाद सिविल अस्पताल में भी इसकी जांच कर कार्रवाई करेंगे.
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कोरोना के मरीजों को दिए जाने वाले इंजेक्शन टोसीलीजुमेब को 5 मई को इलाज के लिए मंजूरी दी गई थी. गुजरात सरकार ने 5 हजार इंजेक्शन का ऑर्डर दिया था, जिसमें 2900 सरकारी अस्पतालों में जबकि 2100 प्राइवेट अस्पतालों में दिए गए थे. आने वाले वक्त में कोरोना मरीजों को परेशानी न हो, इसे देखते हुए राज्य सरकार की ओर से 20 हजार इंजेक्शन खरीदने का फैसला किया गया है. इसके बाद रेमडेसिविर इंजेक्शन का भी 1800 स्टॉक मंगवाया गया था.