
सूरत की दो बातों के लिए दुनिया भर में पहचान है- टैक्सटाइल और हीरा उद्योग. इसी वजह से सूरत को सिल्क सिटी और डायमंड सिटी के नाम से भी जाना जाता है. रोजगार की तलाश में बिहार, यूपी, ओडिशा, बंगाल जैसे सुदूर राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर सूरत आकर डेरा डालते हैं. यहां तिनका तिनका जोड़कर वो नई दुनिया बसाते हैं, साथ ही गृह राज्यों में घर पर छूटे बाकी सगे-संबंधियों की आर्थिक मदद भी करते हैं. लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी की दस्तक के बाद इन प्रवासी मजदूरों के लिए जैसे सब कुछ बदल गया.
अचानक आई कोरोना की आफत और फिर लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों की और लौटने को मजबूर कर दिया. पिछले साल के आखिरी महीनों में कोरोना को लेकर स्थिति कुछ सुधरती दिखाई दी तो ये वापस अपने काम वाले शहरों में आ गए. कुछ संभलना शुरू ही किया था तो कोरोना ने और विकराल रूप धारण कर फिर सिर उठा लिया. एक बार फिर पिछले साल वाला संकट इन प्रवासी मजदूरों के सामने है. लॉकडाउन का खौफ, काम न हुआ तो बिना पैसे कैसे गुजारा होगा. इसी सब के बीच बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों ने फिर अपने गृह राज्यों की और लौटना शुरू कर दिया है.
संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में सूरत भी शामिल है. फिलहाल यहां नाइट कर्फ्यू है. लेकिन प्रवासी मजदूरों को आशंका है कभी भी यहां पूर्ण लॉकडाउन लगाया जा सकता है. ऐसा हुआ तो पिछले साल की तरह घर लौटते वक्त जिन मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा था, एक बार फिर वही दिन देखने को मजबूर होना पड़ेगा. वैसे भी एक साल से अधिक वक्त तक सब कुछ पटरी से उतरा होने की वजह से सूरत के व्यापारियों की भी हालत खस्ता है.
रिक्शा चालक ने कही ये बात
सूरत के उधना रेलवे स्टेशन से दानापुर एक्सप्रेस पकड़ने के लिए प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में जुट रहे है. इनमें से अधिकतर मूल रूप से यूपी-बिहार के रहने वाले हैं. सूरत, उधना नवसारी, सचिन और यहां तक कि वापी में रहने वाले प्रवासी मजदूर भी सूरत और आसपास के रेलवे स्टेशनों से ट्रेन पकड़ते हैं. प्रवासी मजदूरों को रेलवे स्टेशन तक लाने वाले रिक्शा चालक जयेश भाई का कहना है, "काम कुछ हो नहीं रहा है और ऊपर से महामारी बढ़ रही है. इसलिए फिर मजदूर भाई अपने गांव लौटने लगे हैं. उनको डर है कि फिर से लॉक डाउन लग गया तो क्या करेंगे."

सहरसा के रहने वाले धीरेंद्र कुमार और गया के रहने वाले संजय रात की ट्रेन पकड़ने के लिए दोपहर से ही उधना रेलवे स्टेशन पर आकर बैठ गए. धीरेंद्र कहते हैं कि रात को लॉकडाउन होता है और ऐसे में स्टेशन आने के लिए वाहन नहीं मिला तो हमारी ट्रेन छूट जाएगी. साथ में थैलियों में रास्ते के लिए खाने का सामान भी जुटा रखा है. धीरेंद्र और संजय का कहना है कि फैक्ट्री में काम कम हो गया है. घर से रिश्तेदारों का भी दबाव है जल्दी लौट आओ, पता नहीं आगे क्या हो.
क्या कहते हैं स्टेशन मास्टर
प्रवासी मजदूरों की भीड़ उमड़ने पर संक्रमण से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा? इस सवाल के जवाब में उधना के स्टेशन मास्टर सुजीत कुमार कहते हैं, "ट्रेन में हम उतने ही यात्रियों को बैठने की अनुमति देते हैं जिनके पास कंफर्म टिकट है. वेटिंग टिकट की फिलहाल अनुमति नहीं है. ऐसा इसलिए है ताकि सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे. ट्रेन अलग-अलग दिन पर चल रही है ताकि लोग टिकट बुक करा कर यात्रा कर सकें."
दानापुर एक्सप्रेस रात सवा आठ बजे रवाना होती है. उधना से बिहार के दानापुर जाने वाली ट्रेन अपने साथ आजमगढ़, मऊ गाजीपुर, सहरसा, पटना, गया के प्रवासी मजदूरों को भी अपने साथ ले जाती है. सोमवार को शाम ढलते ही प्रवासी मजदूरों का रेला स्टेशन पर दिखा. कोई पटरी पार करते तो कोई सीढ़ियों से उतरते हुए अपने-अपने डब्बों की ओर हड़बड़ाहट में भागता दिखा. बच्चे, महिलाएं हर कोई हाथ में थैले और अन्य सामान उठाए ट्रेन पकड़ने की जल्दी में दिखा.
लॉकडाउन लगा तो क्या खाएंगे
गाजीपुर की रहने वाली मंजू ने कहा, "घर में शादी है और जाना जरूरी है इसलिए अभी निकल रहे हैं. हां बीमारी का डर तो है लेकिन हम ख्याल रखेंगे और पूरी सावधानी बरतते जाएंगे." सुधीर अपने साथियों के साथ सहरसा जा रहे हैं. सुधीर का कहना है, "बीमारी फैल रही है और फिर लॉकडाउन लग सकता है ऐसे में हम क्या खाएंगे. पिछले साल बड़ी मुश्किल से अपने गांव पहुंचे थे. अब फिर दोबारा डर लग रहा है."

गोपाल अपनी पत्नी के साथ पटना जा रहे हैं. गोपाल की पत्नी ने कहा, "घर नहीं जाएं तो क्या यहां भूखा मरें. कौन हमारा ख्याल रखेगा. खाना कौन देगा. जब काम धंधा बंद हो रहा है और लॉकडाउन लगने वाला है तो फिर करें तो क्या करें." बहरहाल, पिछले साल के दिनों को याद करते हुए हर प्रवासी मजदूर की यही कोशिश है कि समय रहते अपने घर पहुंच जाए. इन प्रवासी मजदूरों के सामने इस वक्त सबसे बड़ा सवाल वजूद बचाने का है. इनका कहना है कि ‘जान बची रहेगी बाबू, तभी आगे कुछ कर पाएंगे न.’